भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकर अजीत डोभाल चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनाने के निर्णय को धरातल पर उतारने वाली कमिटी के अध्यक्ष हो सकते हैं। इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार मोदी सरकार की नई सुरक्षा नीति के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल को इंटेलिजेंस और आंतरिक सुरक्षा के लिए रक्षा योजना से संबंधित सभी मुद्दों पर निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने प्रशासन संरचना में सुधार सहित राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) पर प्रमुख जिम्मेदारियां भी दे रखी हैं।
बता दें कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनाने के निर्णय को सही आकार देने वाली कार्यान्वयन समिति बनेगी जो एनएसए डोभाल की अध्यक्षता में होने की संभावना है। यह समिति सीडीएस के लिए जिम्मेदारी के क्षेत्र पर फैसला करेगी तथा पहले सीडीएस अधिकारी को भी चुनेगी जो इस बड़ी जिम्मेदारी को संभालेंगे।
बीते कुछ सालों की बात की जाए तो एनएसए अजीत डोभाल देश की रक्षा और सुरक्षा से संबंधित सभी मामलों के केंद्र में बने हुए हैं। इससे पहले अजीत डोभाल की अध्यक्षता में एक नई समिति, रक्षा योजना समिति (DPC) बनाने की घोषणा की गई थी। यह एक स्थायी निकाय है और इसके सदस्यों के रूप में चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (वर्तमान में वायु सेना प्रमुख), अन्य सेना प्रमुख, विदेश सचिव, रक्षा सचिव और वित्त मंत्रालय के व्यय सचिव है। यह एक ऐसी प्रणाली है जो एकीकृत योजना बनती है, जिससे उभरते जटिल अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने में देश सक्षम होता है।
सीडीएस की स्थापना के लिए कार्यान्वयन समिति का प्रमुख बनाए जाने का केंद्र सरकार का यह फैसला आश्चर्य के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल से ही एनएसए हैं और समय–समय पर अजीत डोभाल की जिम्मेदारियां उनके कुशल कार्यशैली की वजह से बढ़ती गयी। बता दें कि स्वतन्त्रता दिवस के दिन भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रक्षा क्षेत्र में चीफ आफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की घोषणा कर भारतीय सैन्य शक्ति को और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में उठाया था। भारत की विस्तृत भूमि, लंबी सीमाओं, तटरेखाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियों को सीमित संसाधनों से निपटने तथा, एकीकृत रक्षा प्रणाली के लिए चीफ ऑफ डिफेंस पद की बहुत जरूरत थी। सेना के तीनों अंगों में सुधार और इंटीग्रेशन के लिए भी इस पद यानी CDS की जरूरत है।
बता दें कि 1968 केरल बैच के आईपीएस अफसर अजीत डोभाल अपनी नियुक्ति के चार साल बाद साल 1972 में इंटेलीजेंस ब्यूरो से जुड़ गए थे। अजीत डोभाल ने करियर में ज्यादातर समय खुफिया विभाग में ही काम किया है। वर्ष 1989 में अजीत डोभाल ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से चरमपंथियों को निकालने के लिए ‘ऑपरेशन ब्लैक थंडर‘ का नेतृत्व किया था। ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान उन्होंने एक जासूस की भूमिका निभाई और भारतीय सुरक्षा बलों के लिए महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी उपलब्ध कराई, जिसकी मदद से सैन्य ऑपरेशन सफल हो सका था। कहा जाता है कि वह सात साल तक पाकिस्तान में खुफिया जासूस रहे। साल 2005 में एक तेज तर्रार खुफिया अफसर के रूप में स्थापित अजीत डोभाल इंटेलीजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर पद से रिटायर हो गए। अजीत डोभाल 33 साल तक नार्थ–ईस्ट, जम्मू–कश्मीर और पंजाब में खुफिया जासूस रहे हैं, जहां उन्होंने कई अहम ऑपरेशन किए हैं। 30 मई, 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अजीत डोभाल को देश के 5वें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में नियुक्त किया था तब से वह इस पद पर बने हुए हैं।