भारतीय मीडिया अपने आप एक विचित्र है। स्थिति कैसी भी हो, मीडिया को अपने काम से काम तो कभी नहीं रखना है। वुहान वायरस के समय भी कुछ ऐसे चैनल हैं, जिनके लिए उनका निजी एजेंडा ज़्यादा महत्वपूर्ण है, और इंडिया टुडे इसी बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
विश्व वुहान वायरस से जूझ रहा है, और भारत को इस महामारी को नियंत्रण में रखने के अलावा इस फैलाने पर तुले जाहिलों को नियंत्रण में रखना है। पर इंडिया टुडे को इस बात की अधिक चिंता है कि उनकी टीआरपी में कोई कमी ना दिखे, चाहे इसके लिए सार्वजनिक तौर पर सफेद झूठ ही क्यों न बोलना पड़े।
हाल ही के बार्क रेटिंग्स के अनुसार रिपब्लिक टीवी ने एक बार फिर शीर्ष स्थान प्राप्त किया है। परन्तु इंडिया टुडे का मानना है कि ये झूठ है। इसे सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक पोस्टर भी ट्वीट किया, जिसमें लिखा था।
परन्तु बात यहीं खत्म नहीं होती। इंडिया टुडे के चर्चित पत्रकार राहुल कंवल डींगें हांकते हुए ट्वीट करते हैं, “श्रोताओं को चिल्लाना नहीं, असली खबर पसंद आ रही हैं। नाटक को इग्नोर करें। न्यूज़ देखिए, शोर नहीं। जिन श्रोताओं के कारण यह संभव हुआ है, उन्हें धन्यवाद”।
Competition has gone crazier than usual because the rug has been pulled from under their feet. Viewers are rejecting shouting fests and choosing to watch real news. Ignore the theatrics. Watch: Real news. Not noise. To each one of our viewers who make this possible, thank you 🙏 pic.twitter.com/qOsTtJamo7
— Rahul Kanwal (@rahulkanwal) April 23, 2020
अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने का इससे लीजेंड्री उदाहरण मिलेगा कहीं भला? अगर आप बार्क यानी ब्रॉडकास्ट ऑडिएंस रिसर्च काउंसिल की रिपोर्ट को ध्यान से पढ़ें, तो आपको समझ आएगा कि कैसे रिपब्लिक इंडिया टुडे से दस कदम आगे चल रहा है।
Here is the data for week 15. For more info, visit https://t.co/E78GODcmvK #BARCTweet pic.twitter.com/LLplZtmZ4S
— BARCIndia (@BARCIndia) April 23, 2020
तो आखिर किस आधार पर राहुल कंवल और इंडिया टुडे ने ऐसे अजीबोगरीब दावे किए है? दरअसल, उन्होंने प्राप्त डेटा में से एक पैरामीटर उठाकर लोगों की आंखों में धूल झोंकने का प्रयास किया।
इंडिया टुडे ने बड़े शहरों के डेटा पर ही अधिक ध्यान केंद्रित किया, जबकि रिपब्लिक टीवी सम्पूर्ण भारत की रेटिंग्स के अनुसार शीर्ष स्थान पर काबिज है।
On BARC’s rating software you can change parameters & pick data from markets where you’re leading. Republic TV chooses All India (Urban+Rural) Males 22+ individuals for ratings whereas India Today picks Males 22+AB in (only)megacities. Clearly @republic is the genre leader. https://t.co/3ryIQgYbBC pic.twitter.com/QzamtIX47M
— Riccha Dwivedi (@RicchaDwivedi) April 23, 2020
इंडिया टुडे को सिर्फ बड़े शहरों में एक चुनिंदा ऑडिएंस देखती है, जबकि रिपब्लिक पूरे भारत में लोकप्रिय है। जब सोशल मीडिया पर अनेकों यूज़र ने इंडिया टुडे की पोल खोली, तो अपने बचाव में राहुल कंवल ने ऐसी बचकानी दलीलें दी।
राहुल महोदय ट्वीट करते हैं, “कुछ लोग पूछते हैं कि हम मेगा सिटी डेटा पर ध्यान क्यों दे रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि बड़े शहरों में अंग्रेज़ी को अधिक महत्व दिया जाता है, जैसे हिंदी बहुल इलाकों में हिंदी न्यूज को। यही तो तुलना का स्वीकृत मानक है”।
इसी को कहते हैं, रस्सी जल गई पर बल नहीं गया। ऐसी हेकड़ी भला कहीं और मिलेगी क्या? कंवल मियां, कृपया ये बताने का कष्ट करेंगे कि आपसे किसने कहा कि अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनल केवल बड़े शहरों में ही देखा जाता है?
What bizarre logic is this? Hindi News channels will obviously not take Tamil Nadu’s viewership data into consideration. But to presume that English news is consumed only in megacities is delusional. https://t.co/YxK57DidIY
— Riccha Dwivedi (@RicchaDwivedi) April 23, 2020
अगर आप व्यूअरशिप रेटिंग पर ध्यान दे, तो रिपब्लिक के कुल इंप्रेशन में से केवल 618 इंप्रेशन बड़े शहरों तक सीमित है, और टाइम्स नाउ के 815 में से 333 वीकली इंप्रेशन बड़े शहरों से आते हैं, जिससे स्पष्ट हो जाता है कि अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनल बड़े शहरों से ज़्यादा छोटे शहरों और जिलों में देखें जाते हैं।
पर राहुल कंवल को इससे क्या? उन्हें तो बस अपने चैनल के रेटिंग को बढ़ा चढ़ाकर पेश करने से मतलब है, तरीका चाहे जो हो।
Sir we can only compare where distribution reach is roughly equal and not in markets where our channel isn’t visible. Fact is, where viewers have a choice, they are picking @IndiaToday over all others. That’s a powerful statement from audiences
— Rahul Kanwal (@rahulkanwal) April 23, 2020
परन्तु इस चैनल की इतनी बेकार मार्केट रीच क्यों है? ये बात काफी चिंताजनक है, क्योंकि रिपब्लिक टीवी को स्थापित हुए अभी 5 वर्ष भी नहीं हुए है। ये तो वही बात हो गई – नाच ना जाने आंगन टेढ़ा।
जब इंडिया टुडे चैनल के पास सब कुछ था, तब उन्होंने अपनी पोजीशन मजबूत करने के बारे में नहीं सोचा। अब जब रिपब्लिक ने बाजी मारी है, तो इंडिया टुडे किसी छोटे बच्चे की तरह बचकानी हरकतों पर उतर आया है। इसे देख एक कहावत याद आती है, चौबे जी चले छब्बे जी बनने, दूबे जी बनके लौटे।