दिन 26 जनवरी, गणतन्त्र दिवस का उत्सव और राजपथ पर होने वाली परेड समाप्त हो चुकी थी। तभी लाल किले के आस-पास गहमा-गहमी बढ़ने लगी और कृषि कानून का विरोध करने वाले किसानों का जत्था, गाड़ियों में भर-भरकर जमा होने लगा। ट्रैक्टर रैली के नाम पर कई राज्यों विशेषकर पंजाब से किसानों को जुटाया गया था। धीर-धीरे लाल किले पर उपद्रव ने उग्र रूप लेना आरंभ कर दिया। देखते ही देखते यह उपद्रव भयानक रूप ले चुका था और किसानों के नाम पर प्रदर्शन करने वाले लाल किला की ओर बढ़े और उसकी प्राचीर पर चढ़ने लगे। कुछ लोग एक कदम आगे बढ़ते हुए तिरंगे को क्षति पहुंचाने के लिए ध्वज खंभे पर चढ़ गए और उन्होने अपना धार्मिक ध्वज वहाँ लहरा दिया। किसी गणराज्य के किए गणतन्त्र दिवस के अवसर पर ऐसी वीभत्स घटना का होना शर्मनाक है। इससे न सिर्फ भारत को अंतराष्ट्रीय स्तर पर शर्मसार होना पड़ा, बल्कि किसान आंदोलन का वास्तविक प्रयोजन भी सभी के सामने आ गया था।
खालिस्तानियों द्वारा किए गए इस कुकृत्य पर सिर्फ यह पता लगाने के लिए कि आखिर किसने राष्ट्रीय ध्वज से भी ऊपर खालिस्तानी ध्वज को फहराया, पुलिस को गहन जांच पड़ताल करनी पड़ी । ऐसा नहीं है कि वहाँ मौजूद सभी सिख खालिस्तानियों की उस हरकत से सहमत होंगे! असहमत होने के बावजूद किसी ने कोई आवाज नहीं उठाई और न ही उस घटना के बाद किसी के नाम का खुलासा किया। यही समस्या है,
जिसे सिख समुदाय को संबोधित करना है।
इसमें कोई संदेह नहीं है खालिस्तानी विचारधारा का मकसद ही सिखों को भड़काना है और भारत को सामाजिक स्तर पर अस्थिर करना है। इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि सिखों की भारत के प्रति राष्ट्रवाद की भावना अप्रतिम है। अब यहाँ समस्या यह है कि एक सामान्य सिख जिसका खालिस्तानी विचारधारा से कोई लेना देना नहीं है, वह भी क्यों ऐसी घटनाओं को देख चुप रह जाता है?
इस कारण से कट्टरता को धारण किए हुए खालिस्तानियों की हिमाकत बढ़ती चली जाती है। इससे यह विचारधारा समाज में अंदर तक व्याप्त होती चली जाती है जिससे बाद में निपटना कठिन नहीं नामुमकिन होगा। यही नहीं इससे सामाजिक द्वेष बढ़ेगा और सिखों के लिए विरोध पैदा करेगा। आज सभी यह कहते हैं कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता है लेकिन वास्तविकता से सभी परिचित हैं। उसी प्रकार से जब भी खालिस्तान और लाल किला जैसी देश को शर्मशार करने वाली घटनाओं की बात होगी, एक सामान्य देशप्रेमी सिख और उसके पंथ को इस चर्चा में घसीटा जाएगा।
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ऐसे में यह आवश्यक है कि मध्यमवर्गीय सिख अपने आप को इन कट्टर खालिस्तानियों के खिलाफ जागरूक करे। यदि टोकरी में ये सड़ा हुआ सेब रहा और उसे नहीं हटाया गया तो वह सभी सेबों के सड़ने का कारण बनेगा। भारत एक ऐसा देश हैं जहां सभी पंथों के लिए सामान्य मानक हैं और भारत ऐसा भी देश हैं जहां सभी देश विरोधी और भारत तोड़ने वालों के लिए सामान्य मानक हैं। खालिस्तानी विचारधारा देश के टुकड़े करने पर ही आधारित है जिसकी साँसे पाकिस्तान से चल रही हैं।
जिन सिख गुरुओं ने अपने पगड़ी की रक्षा के लिए अपने प्राण तक दे दिये, ये खालिस्तानी उसी पंथ से गलबहियाँ कर रहे हैं। एक सामान्य सिख को यह चिंतन अवश्य करना चाहिए और अपने आस-पास ऐसी विचारधारा रखने वालों के खिलाफ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सामने आना चाहिए जो उनके पंथ को विश्व भर में बदनाम करने पर तुले हुए हैं। खालिस्तान का सपना खालिस्तानियों के लिए मृगतृष्णा के समान है और यह उन्हें भी पता है कि यह बस एक भ्रम है। परंतु इसका परिणाम पूरे पंथ को भुगतना पड़ सकता है, जैसा आज इस्लाम के साथ होता है।
पंजाब और सेना में उसका योगदान पंजाब
सिखों का गृह राज्य अक्सर राष्ट्र की तलवार सेना के रूप में जाना जाता है। पंजाब देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सेना में सेवारत अधिकारियों के अलावा सैनिकों की संख्या में दूसरे नंबर पर आता है। रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2021 तक पंजाब में सेना के जवानों की संख्या 89,088 थी। यह सेना के रैंक और फ़ाइल का 7.7 प्रतिशत है, भले ही राष्ट्रीय जनसंख्या में इसका हिस्सा 2.3 प्रति है।
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सिखों को समझने और समझाने की आवश्यकता है
जिस तरह से कट्टर और फ़्रौड विचारधारा को कॉल आउट करने की बात हो रही है उसके तामाम उदाहरण हिन्दू धर्म में देखने को मिल जाएंगे। जब भी कोई ऐसा व्यक्ति हुआ है जिसने हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए आडंबरों का सहारा लिया, उसे समय-समय पर हिंदुओं के गुस्से सामना करना पड़ा है। हाल के उदाहरण में देखा जाए तो डासना मंदिर के पुजारी यति नरसिंगानन्द ने भड़काऊ बयान दे अपने अनुयाई तो जमाकर लिए लेकिन जैसे ही उनकी देश की महिला मंत्रियों के लिए कुत्सित मानसिकता, योगी आदियानाथ के प्रति अपशब्द कहने का खुलासा हुआ, उन्हें जनता के रोष का सामना भी करना पड़ा और आज वह अप्रासंगिक हैं। उसी तरह, यही चीज़ राम रहीम के लिए भी कही जा सकती है। यह तो बस कुछ उदाहरण हैं। अगर सिखों को इतिहास के पन्नों से सिख लेकिन हैं तो उन्हें KPS GILL की ओर अपना ध्यान ले जाना होगा। उन्होंने जिस प्रकार से जट सिखों को खालिस्तानी जट सिखों के खिलाफ एक किया और खालिस्तानी फन को ऐसा कुचला कि उसे दोबारा खड़ा होने में दो दशक लग गए।
एक बार फिर से पाकिस्तान की मदद और अन्य देशों की सहानुभूति से यह विष देश की रगों में बह रहा है, कैंसर का स्वरूप ले रहा है। इसे समाप्त करने के लिए स्वयं देश भक्त सिखों को ही सामने आना होगा जिससे इस कैंसर को उसके नवजात स्वरूप में मर्दन किया जा सके।