राजनीति में कब पासा पलट जाए यह कहना नामुमकिन है। राजनीति में कौन अपने राजनीतिक चाल को किस दीर्घावधि के लिए चला रहा यह भी कहना नामुमकिन हैं। पुत्रमोह के लिए किस बड़े नेता द्वारा कितना बड़ा चाल चला जा रहा है, यह भी पता लगाना लगभग मुश्किल ही होता है। जब भी उत्तर प्रदेश के चुनाव आते हैं, ऐसी दूरदर्शिता देखने को मिलती है। इस बार के चुनाव में योगी आदित्यनाथ की सरकार को मात देने के लिए दुश्मन-दुश्मन एक हो रहे हैं, ऐसे में परिवार वाले कैसे दूर रह सकते थे। इसी बीच समाजवादी पार्टी का आंतरिक कलह भी एक नए आयाम पर पहुंचने वाला है। खबर है कि शिवपाल यादव दोबारा से अपनी नई पार्टी का विलय सपा में कर सकते हैं।
सपा में शामिल हो सकते हैं शिवपाल
देखा जाए तो आंतरिक कलह के कारण शिवपाल यादव को समाजवादी पार्टी से निकाल दिया गया था और अब नेताजी स्वयं उनका विलय कराना चाहते हैं, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अखिलेश और शिवपाल के बीच दरार हुई नहीं थी बल्कि उन दोनों के बीच दरार बनाई गई थी, वह भी मुलायम सिंह यादव द्वारा! इसका कारण कुछ और नहीं, बल्कि शिवपाल का पार्टी में बढ़ता कद था जिससे वह पार्टी के अगले मुखिया बनने की राह पर थे। इससे अखिलेश पीछे रह जाते, जिसे देखते हुए पुत्र मोह में नेताजी ने एक ऐसा जाल बुना जिसे The Great Game भी कहा जा सकता है कि एसपी में अंतरिक कलह आरंभ हो गया और फिर सत्ता अखिलेश को मिल गई।
दरअसल, मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाने वाले राज्यसभा सांसद सुखराम सिंह यादव का दावा है कि जल्द ही अखिलेश और शिवपाल के बीच चल रहा मनमुटाव खत्म हो जाएगा। राज्यसभा सांसद सुखराम यादव ने कहा है कि चुनाव से पहले नेताजी यानी कि मुलायम सिंह यादव, अखिलेश और शिवपाल के बीच मध्यस्थता करा कर गठबंधन करवाएंगे। वहीं, दूसरी ओर शिवपाल भी समाजवादी पार्टी में वापस जाने के लिए उतावले दिख रहे हैं।
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मुलायम सिंह यादव का मास्टर गेम
आज अगर मुलायम सिंह यादव द्वारा शिवपाल को वापस बुलाने के लिए मजबूर होना पड़ा है, तो इसका कारण सपा की घट चुकी साख और बीजेपी का बढ़ता जनाधार है। मुलायम को शिवपाल की कमी खल रही है और यह उन्हें भी अच्छे से पता है कि शिवपाल ही वो नेता थे, जिनकी पकड़ जमीनी स्तर पर सबसे अधिक थी। रैलियों के आयोजन से पैसा वसूली और पार्टी के बाहुबल को प्रदर्शित करने का जिम्मा भी शिवपाल पर ही था! जो व्यक्ति इस तरह से जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं से जुड़ा हुआ है, उसका स्पष्ट रूप से पार्टी में कद भी बढ़ता जायेगा। शिवपाल के साथ यही हुआ और वह धीरे-धीरे अखिलेश के लिए खतरा बन गए।
जिसके बाद मुलायम सिंह यादव ने अपना ग्रेट गेम खेलना आरंभ किया। इस कलह के बीज बहुत पहले बोए गए थे, जब सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने 2012 के विधानसभा चुनावों में जीत के बाद राज्य सरकार का नेतृत्व करने के लिए अखिलेश को शिवपाल से आगे कर दिया था। हालांकि, तब शिवपाल ने अपनी नाराजगी को अच्छी तरह छिपा लिया और जो काम मिला उसे करते रहे। तब अखिलेश ने उन्हें आकर्षक मंत्रीपद दिए थे।
चाचा-भतीजे के संबंधों के बीच रोड़ा साल 2015 में सैफई महोत्सव के उद्घाटन के दिन आया। तब शिवपाल ने अखिलेश यादव के तीन करीबी सहयोगियों को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए निष्कासित कर दिया। नतीजतन, राज्य के तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव पारिवारिक उत्सव में शामिल नहीं हो सके थे। तभी राजनीति गलियारों में दरार की अटकलें उड़ने लगीं। हालांकि, पार्टी ने मुलायम के कहने पर निष्कासित नेताओं को बहाल कर लिया और स्थिति पर जल्द ही काबू पाने का ढोंग भी किया गया।
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अमर सिंह ने लगा दिया संवाद पर ग्रहण
उसके बाद एक बाद एक ऐसी घटना हुई, जिसमें चाचा और भतीजा दोनों ने अपने आप को पार्टी के सबसे बड़े नेता के रूप में पेश करने की कोशिश की। शिवपाल यादव, बाहुबली अपराधी मुख्तार अंसारी और उनकी पार्टी को सपा के पाले में लेकर आए लेकिन तभी अखिलेश यादव ने फैसले का विरोध किया और विलय रद्द करा दिया। शिवपाल ने बहुत कोशिश की, यहां तक कि अपने इस्तीफे की धमकी भी दी। ऐसे में मुलायम ने बीच बचाव किया और कहा कि अगर शिवपाल चले गए तो पार्टी बिखर जाएगी, जिसके बाद अखिलेश शांत हो गए।
हालांकि, जब तक संवाद होता है, मनमुटाव को समाप्त करने का एक अवसर भी होता हैं। अब इसी कहानी में स्वर्गीय अमर सिंह ने दोनों गुटों के बीच संवाद पर ग्रहण लगाने का काम किया। इन दोनों गुटों के बीच मनमुटाव चल ही रहा था कि अमर सिंह को पार्टी में 6 वर्षों के बाद शामिल कर लिया गया। इस फैसले का अखिलेश ने जोरदार विरोध किया था।
बताया जाता है कि अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव के बैठक की खबरों के बीच, सपा संरक्षक ने अखिलेश यादव को पद से हटा दिया और उनकी जगह शिवपाल यादव को राज्य इकाई के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। जिसके बाद अखिलेश यादव ने जवाबी कार्रवाई करते हुए आकर्षक पीडब्ल्यूडी विभाग सहित सभी प्रमुख विभागों को शिवपाल से छीन लिया।
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तब नाराज शिवपाल ने सैफई में डेरा डाला और यहीं से मुलायम सिंह ने अपनी 3-डी शतरंज की चालें चलना शुरू कर किया। सिलसिलेवार प्रेस कांफ्रेंस में मुलायम यादव, शिवपाल के पास बैठे और सबको विश्वास दिलाया कि ये दोनों अखिलेश के कारण पीड़ित हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या शिवपाल पार्टी छोड़ देंगे, मुलायम ने टिप्पणी की थी और कहा था कि “शिवपाल पार्टी और सरकार दोनों में होंगे। वह यूपी में पार्टी की देखभाल करेंगे। मैंने और राम गोपाल यादव ने फैसला लिया है।”
अखिलेश को कर दिया था पार्टी से निष्कासित
पार्टी सुप्रीमो का समर्थन सुनिश्चित करने के बाद शिवपाल ने मुख्यमंत्री के खिलाफ अपनी नाराजगी जताते हुए कहा था कि “जो नेताजी (मुलायम) को स्वीकार्य है वह मुझे भी स्वीकार्य है।” यह एक विशेष रूप से चतुर चाल थी, क्योंकि शिवपाल यादव, मुलायम को निशाना नहीं बना सकते थे, वह भी तब जब नेताजी बगल में बैठे हों। तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव द्वारा उम्मीदवारों की सूची जारी करने के बाद मुलायम सिंह यादव ने ने उन्हें 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था। हालांकि, एक दयालु पिता के समान, मुलायम सिंह ने जल्दी से अपने फैसले को पलट दिया और एक दिन बाद ही अपने बेटे को बहाल कर दिया।
उसके बाद जल्द ही अखिलेश यादव ने राज्य के पार्टी विधायकों को अपनी ओर कर लिया और खुद को राज्य इकाई के नेता के रूप में अपनी ताजपोशी की और शिवपाल को कहीं का नहीं छोड़ा। एक ही रात में शिवपाल यादव और अमर सिंह दोनों इतिहास बन गए। शिवपाल को यह सोचकर पार्टी से अलग होने के लिए मजबूर होना पड़ा कि अखिलेश ने उनके राजनीतिक करियर के अंत की कहानी बुनी है। उनके लिए एक और युक्ति जो उल्टा पड़ गई, वह यह थी कि उन्होंने मुलायम की दूसरी पत्नी के बच्चों को शामिल करके परिवार के भीतर मुलायम की पकड़ को कमजोर करने के लिए एक आंतरिक खेल खेलने की कोशिश की थी।
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जबकि पार्टी कार्यकर्ताओं का व्यापक रूप से मानना था कि मुलायम और अखिलेश कभी अलग नहीं होंगे, मां से भाइयों और बहनों का पारिवारिक विवाद शामिल करना शिवपाल का गलत कदम था। उन्होंने मुलायम सिंह यादव के व्यक्तिगत मुद्दों को राष्ट्रीय समाचार बना दिया था! भले ही राजनीतिक मंच पर अखिलेश द्वारा मुलायम सिंह यादव के साथ अशिष्ट व्यवहार किया गया था, लेकिन मुलायम किसी और को पार्टी की बागडोर नहीं देना चाहते थे, विशेष रूप से ऐसा व्यक्ति जो आंतरिक पारिवारिक मामलों को बाहर लाता हो!
यह मुलायम सिंह यादव ही थे, जिन्होंने बेहद ही सूक्ष्म तरीके से अखिलेश और शिवपाल के बीच दरार पैदा कर दी थी, जिससे समाजवादी पार्टी की बागडोर उनके भाई नहीं बल्कि पुत्र के हाथों में जाए।