लगभग तीन दशक पहले 1991 में, भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को फैबियन समाजवाद से पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में बदलना शुरू कर दिया था। यह परिवर्तन बहुत ही अजीबोगरीब प्रकृति का था, क्योंकि यह मुख्य रूप से विदेशी कंपनियों द्वारा संचालित था जिनकी भारतीय बाजार तक पहुंच थी। अमेरिकी, ब्रिटिश और जापानी कंपनियों ने अपना सामान और सेवाएं बेचने के लिए भारत में अपनी दुकानें स्थापित की। चीनी कंपनियों ने अपने माल के जरिए भारतीय बाजार को भर दिया। हालांकि, इस बदलाव में कहीं न कहीं भारतीय कंपनियां गायब थी। रिलायंस जैसे समूहों को छोड़कर, शायद ही कोई घरेलू कंपनी थी जो तेजी से बढ़ी हो। लेकिन मोदी सरकार के पिछले सात वर्षों में, रिलायंस समूह, टाटा समूह, अदानी समूह और वेदांता समूह सहित कई घरेलू व्यापार समूहों ने न सिर्फ खुद को घरेलू बाजार में स्थापित किया है, बल्कि वैश्विक दिग्गजों के साथ प्रतिस्पर्धा भी कर रहे हैं। इसके अलावा, देश में अब 90 से अधिक यूनिकॉर्न स्टार्टअप हैं, जो सॉफ्टवेयर से लेकर सौंदर्य उत्पादों तक के क्षेत्रों में उभर रहे हैं। DPIIT मान्यता प्राप्त स्टार्टअप की कुल संख्या 50,000 से अधिक है और आज हमारा देश दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है।
स्थानीय व्यवसाय का उद्भव
पिछले सात वर्षों में मोदी सरकार ने पूंजीवाद को स्वदेशी बनाया है। पहले के दशकों में, पूंजीवाद ज्यादातर विदेशी कंपनियों द्वारा संचालित था, जिन्होंने भारतीय बाजार तथा भारतीय श्रम का शोषण किया और अंततः धन को अपने देश ले गए। परंतु मोदी युग में पूंजीवाद के स्वदेशी संस्करणों के माध्यम से बनाई गई संपत्ति देश में रहेगी तथा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के रूप में सरकार के खजाने में योगदान देगी। इससे सरकार को बुनियादी ढांचे के निर्माण और कल्याणकारी व्यय पर अधिक खर्च करने का मौका मिलेगा। भारत को रक्षा, अर्धचालक जैसे क्षेत्रों में बड़ी स्वदेशी कंपनियों की जरूरत है। साथ ही, देश को महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में भी आत्मनिर्भर होने की जरूरत है। रूस-यूक्रेन संघर्ष यदि कोई बात सिखाता है, तो वह यह है कि आज की अस्थिर वैश्विक व्यवस्था में आत्मनिर्भरता ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है। मोदी सरकार ने इसी आत्मनिर्भरता पर बल देते हुए स्वदेशी पूंजीवाद का निर्माण कर रही है। इसमें न सिर्फ हमारी कंपनिया अर्धचालक और Semi Conductor चिप जैसे जटिल उत्पादन पर ध्यान दे रही हैं, बल्कि सरकार उनके लिए PLI जैसे योजनाएं भी चला रही हैं।
रक्षा क्षेत्र-सबसे बड़ा हितैषी
आत्मनिर्भर भारत के लिए रक्षा क्षेत्र को एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई है। इस क्षेत्र में भारत के पूंजीवाद को पूर्ण रूप से स्वदेशी बनाने की क्षमता है। वर्तमान में, भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सैन्य और हथियार उपभोक्ता देश है। वर्ष 2016-20 के बीच, हमने दुनिया भर में आयातित कुल हथियारों का 9.5 प्रतिशत आयात किया। जैसा कि टीएफआई द्वारा रिपोर्ट किया गया है, मेक इन इंडिया के तहत केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस साल की शुरुआत में 2021-22 के बजट के तहत रक्षा मंत्रालय के आधुनिकीकरण कोष का लगभग 64 प्रतिशत यानी लगभग 70,000 करोड़ रुपये की राशि घरेलू क्षेत्र से खरीद के लिए निर्धारित किया है। रक्षा उपकरणों के स्वदेशी डिजाइन और विकास को बढ़ावा देने तथा पूंजीगत उपकरणों की खरीद के लिए भारतीय श्रेणी को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है।
राष्ट्रवाद का पूंजीवाद से गठबंधन
गौरतलब है कि 21वीं सदी के भारतीय पूंजीवाद का नेतृत्व भारतीय कंपनियों द्वारा किया जाना चाहिए न कि पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा। अमेरिकी कंपनियों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि अंत में वे सिर्फ अमेरिकी राष्ट्र के लिए वफादार हैं। इसलिए भारतीय कंपनियों को महत्वपूर्ण क्षेत्रों में वैश्विक नेता बनना चाहिए और हमारा पूंजीवाद ऐसा होना चाहिए जो राष्ट्र को पहले रखे न कि यूरोप के उपभोक्तावादी पूंजीवाद के सिद्धान्त को। मोदी सरकार के तहत विकसित स्वदेशी पूंजीवाद देश को विश्व गुरु बना देगा, जो हजारों साल पहले भारत हुआ करता था।