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चुनावी विश्लेषण: बड़ी जीत के साथ मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए तैयार है भाजपा

भाजपा के प्रयासों पर ध्यान दें तो यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि चुनावी जीत भाजपा की झोली में ही आने वाली है

Devesh Sharma द्वारा Devesh Sharma
30 December 2022
in राजनीति, समीक्षा
BJP ticks all the boxes for Madhya Pradesh elections 2023

SOURCE TFI

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मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में अब एक साल से भी कम का समय रह गया है। ऐसे में प्रदेश का राजनैतिक माहौल गर्म होने लगा हैं, तो वहीं राजनैतिक दल भी अपनी-अपनी चुनावी रणनीतियां तय करने में जुट गए हैं। हालांकि सत्ता की चाबी जनता किसे सौंपने वाली है ये तो भविष्य ही बताएगा लेकिन एक बात तय है कि 2023 का चुनावी (Madhya Pradesh Election 2023) मुकाबला आसान नहीं होने वाला है। मैदान में भाजपा पूरी शक्ति के साथ  उतरेगी जैसा कि वह हर चुनाव में करती है लेकिन इस बार उसकी रणनीति क्या होगी जिससे वो कांग्रेस को भी चारों खाने चित कर दे और मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज भी हो जाए, आइए इसे विस्तार से समझते हैं।

और पढ़ें- चुनावी विश्लेषण: बड़ी जीत के साथ मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए तैयार है भाजपा

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2018 व 2020 के चुनाव को समझना होगा

दरअसल, 2023 के अंत में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव (Madhya Pradesh Election 2023) होने वाले हैं और अटकलों से परे मध्यप्रदेश की राजनीति को ध्यान से देखें तो पाएंगे कि भाजपा हमेशा से कांग्रेस पर भारी रही है। 2018 को छोड़ दें तो मध्य प्रदेश में पिछले 15 साल से भाजपा का शासन है। हालांकि, चौथी बार भी शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे। हाल की बात करें तो अभी भाजपा की स्थिति मजबूत है और आने वाले विधानसभा चुनाव को वो जीतती ही दिख रही है। हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसे जानने और मध्य प्रदेश में आने वाले 2023 के विधानसभा चुनाव को समझने के लिए वहां के सीटों का समीकरण और 2018 व 2020 के चुनाव को समझना होगा।

राज्य में कुल 230 विधानसभा सीटें हैं जिसमें से अभी भाजपा के पास 126, कांग्रेस के पास 96 और बसपा के पास 2 सीटें हैं। लेकिन 2018 में ये आंकड़े कुछ अलग थे, 2018 में लगभग डेढ़ दशक बाद जनता ने कांग्रेस को 114 सीटों के साथ बहुमत से सिर्फ एक सीट कम दी थी, वहीं भाजपा को 109 सीटें मिली थीं। कांग्रेस ने बसपा और निर्दलीय विधायकों को साथ लेकर सरकार तो बना ली लेकिन ज्यादा दिन चला न सकी, क्योंकि कांग्रेस की आपसी गुटबाजी ने चंबल संभाग के क्षेत्र में पकड़ रखने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को अलग-थलग करने का प्रयास किया लेकिन सिंधिया ने कांग्रेस को ही तोड़ दिया। सिंधिया कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए और अपने साथ 22 विधायकों को ले गए जिसके बाद कांग्रेस की सरकार अल्पमत में पहुंच गई।

इसके बाद कुल 28 सीटों पर नवंबर 2020 में उप चुनाव हुए थे जिसमें से 19 सीटें भाजपा के खाते में और 9 सीटें कांग्रसे के खाते में गई थीं। 2020 के उपचुनाव के बाद पुनः शिवराज सिंह चौहान(मामा) की वापसी हुई। देखा जाए तो 2018 में भाजपा सरकार बनाने से कुछ ही दूर थी लेकिन उसने अंततः 2020 में सरकार बना ही ली। यहां एक बात गौर करने योग्य यह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बाद चंबल संभाग की सीटों पर भाजपा की पकड़ और मजबूत हो गई है जिसका लाभ आने वाले समय में देखने के लिए भी मिलेगा।

और पढ़ें- चुनावी विश्लेषण: कांग्रेस का ‘राजस्थान गढ़’ भी जाने वाला है

मध्य प्रदेश के जातीय समीकरण

अब मध्यप्रदेश के जातीय समीकरण को भी समझना होगा। मध्यप्रदेश में सबसे अधिक 42 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या है, 23 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति, 14 प्रतिशत ब्राह्मण और लगभग 13 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति के लोगों की है। लेकिन अब प्रश्न यह है कि जातीय समीकरण भाजपा के पाले में कैसे है?

सबसे पहले 42 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग की बात की जाए तो मध्यप्रदेश सरकार द्वारा दिया गया 14 प्रतिशत आरक्षण इन्हें भाजपा की ओर आकर्षित करने का काम करेगा। लेकिन मध्य प्रदेश में हमेशा से ही एससी-एसटी दोनों ही समुदाय सत्ता हासिल करने का रास्ता माने जाते रहे हैं क्योंकि इन दोनों वर्गों के लिए प्रदेश की 36 फीसदी यानी 82 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं, जिनमें से 35 सीट अनुसूचित जाति और 47 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। 2018 के चुनाव में अनुसूचित जनजाति की 47 सीटों में से 31 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं, वहीं दूसरी ओर भाजपा को 16 सीट मिली थीं। जबकि 35 अनुसूचित जाति वर्ग की 17 सीटों पर कांग्रेस और 18 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी।

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भाजपा के प्रयास

हालांकि एससी-एसटी की सीटें 2018 में भाजपा के हाथ से फिसलती हुई दिखी थीं लेकिन भाजपा एससी-एसटी वर्ग को अपने साथ लेने के लिए लंबे समय से प्रयास कर रही है जिसमें कई अलग-अलग योजनाएं चलाना हो या जनजाति समाज में भगवान माने जाने वाले बिरसा मुंडा को लेकर पीएम मोदी द्वारा कार्यक्रम करना। यही नहीं एससी वर्ग को अपने साथ लाने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने संत रविदास जयंती पर प्रदेश भर में बड़ा आयोजन किया था।

2003 से 2013 के बीच एससी-एसटी वर्ग भाजपा के साथ ही था लेकिन 2018 के चुनाव में इस वर्ग ने नाराजगी के चलते कांग्रेस का साथ दिया था। लेकिन अब भाजपा के द्वारा किए जा रहे प्रयासों को देख कर लगता है कि आने वाले समय में एससी-एसटी वर्ग भाजपा के साथ जाएगा। वहीं अगर ब्राह्मण और अन्य दूसरे समुदाओं की बात की जाए तो ये शुरुआत से भाजपा के साथ ही रहे हैं।

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भाजपा की जमीनी पकड़

मध्य प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां भाजपा लगभग 15 साल से सरकार चला रही है और जमीन पर भी अच्छी तरह से पकड़ बनाए हुए है। शिवराज सिंह चौहान इस राज्य का लंबे समय से नेतृत्व कर रहे हैं और चार बार सीएम पद पर रह चुके हैं। हालांकि पार्टी के अंदर शिवराज सिंह चौहान के लिए विरोध में स्वर उठते हुए दिख रहे हैं लेकिन मध्य प्रदेश में अभी भी जामीनी स्तर पर शिवराज सिंह चौहान ही एक बड़ा चेहरा दिखायी देते हैं।

2014 और 2019 लोकसभा चुनाव को देखा जाए तो मध्यप्रदेश में कुल 29 सीटें हैं जिसमें से 2014 के चुनाव में 29 में से 27 और 2019 में 28 सीटें भाजपा को मिली थीं। यही नहीं अभी हाल ही में हुए मध्य प्रदेश निकाय चुनाव भी भाजपा की वापसी की ओर इशारा करते हैं। उदाहरण के लिए 11 नगर निगमों में से 7 में भाजपा के मेयर बने थे। इसके आलावा मध्य प्रदेश में कांग्रेस की गुटबाजी भी भाजपा को लाभ पहुंचाएगी। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश में दिग्गविजय सिंह और कमलनाथ इनके दो गुट हैं जो आपस में ही लड़ते रहते हैं इसलिए आने वाले समय में इसका लाभ भी भाजपा को ही  मिलेगा।

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आने वाले विधानसभा चुनाव (Madhya Pradesh Election 2023) के परिप्रेक्ष्य में यदि चुनावी आंकड़ों और भाजपा के प्रयासों पर ध्यान दें तो यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि चुनावी जीत भाजपा की झोली में ही आने वाली है लेकिन फिर भी एक बड़ी जीत और स्थिर सरकार के लिए आवश्यक है कि वह अपनी रणनीतियों को पहले से और अधिक मजबूत करे।

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Tags: भाजपामध्य प्रदेश विधानसभा चुनावशिवराज सिंह चौहान
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