सक्षम फाउंडेशन के सम्पूर्ण रामायण 2024 के भव्य आयोजन का मुख्य आकर्षण राम वन गमन पथ की मिट्टी की प्रदर्शनी रही। यह आयोजन 9, 10, 11 अक्टूबर 2024 को जवाहरलाल नेहरू इंडोर स्टेडियम, नई दिल्ली में सम्पन्न हुआ। भारत भूमि को मां कहा जाता है। राम का उद्घोष है कि “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” अर्थात जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। इस जन्मभूमि की भावना में भारत की मिट्टी को अत्यंत महत्त्व दिया जाता है। वनगमन के दौरान अयोध्या (उत्तर प्रदेश) से निकलने के बाद क्रमशः प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), चित्रकूट (उत्तर प्रदेश), सतना (मध्य प्रदेश), पंचवटी (नासिक, महाराष्ट्र), सर्वतीर्थ (नासिक, महाराष्ट्र), पर्णशाला (खम्मम, तेलंगाना), सीताराम मंदिर (खम्मम, तेलंगाना), शबरी आश्रम (बेलगांव, कर्नाटक), ऋष्यमूक पर्वत (हम्पी कोपल, कर्नाटक), रामेश्वरम (रामनाथपुरम, तमिलनाडु), धनुषकोटि (रामनाथपुरम, तमिलनाडु) इन स्थानों की मिट्टी का एक साथ प्रदर्शन और इन स्थानों के महत्व की व्याख्या सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भारतीय चेतना को प्रदर्शित करती है।
राम द्वारा उत्तर से दक्षिण तक पैदल यात्रा कर संपूर्ण भारत को एकता के सूत्र में पिरोने का अनुपम प्रयास किया गया था। यही सनातन की सांस्कृतिक एकता का परिचायक है। इसी भाव को पुनः जागृत करने का सुंदर प्रयास इस भाव के मार्गदर्शक श्री राजीव पाठक (प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य, भाजपा, दिल्ली) ने राम वनगमन पथ की मिट्टी को एकत्र कर किया है। राजीव का यह प्रयास देखकर मन में ऐसा भाव जागृत होता है मानो राम के वन गमन पथ की यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ हो।
14 वर्ष, 10000 km की यात्रा, 248 स्थलों पर विश्राम
श्रीराम ने अयोध्या से श्रीलंका तक 14 वर्षों में लगभग 10,000 किलोमीटर की यात्रा की, जिसमें 248 प्रमुख स्थानों पर उन्होंने विश्राम किया या महत्वपूर्ण कार्य किए। ये स्थान आज राम की वन यात्रा के रूप में धार्मिक महत्व रखते हैं। 2015 में केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने ‘रामायण सर्किट’ विकसित करने की घोषणा की थी। इस परियोजना के तहत राम वन-गमन मार्ग और इससे जुड़े स्थलों पर गहन शोध करने वाले डॉ. राम अवतार शर्मा ने अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने आयकर विभाग की राजभाषा सेल में असिस्टेंट डायरेक्टर की नौकरी छोड़कर पिछले ढाई दशकों से इस अभियान पर कार्य किया है। डॉ. शर्मा ने प्रामाणिक रूप से 10,000 किलोमीटर लंबे राम वन-गमन मार्ग और भगवान राम से जुड़े 248 स्थलों की पहचान की है। उनके शोध को सबसे पहले नरसिम्हा राव सरकार ने स्वीकृति दी थी। राम के वन-गमन मार्ग और उन स्थलों पर, जहाँ श्रीराम ने विश्राम किया था, डॉ. शर्मा ने उनकी खोज और विकास के लिए उल्लेखनीय प्रयास किए हैं। उन्होंने कुछ वर्षों पहले ‘श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान’ की स्थापना की, जिसके माध्यम से वे भगवान राम के वन-गमन मार्ग के साथ-साथ अन्य यात्राओं का भी मार्ग नक्शे पर उभारने का कार्य कर रहे हैं। उनके इन प्रयासों के परिणामस्वरूप 2015 में केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने न केवल रामायण सर्किट की घोषणा की, बल्कि डॉ. शर्मा को रामायण सर्किट सलाहकार समिति का अध्यक्ष भी नियुक्त किया।
राजीव पाठक स्वयं भी भारतीय पर्यटन मंत्रालय के इस कार्यक्रम से जुड़े रहे। रामायण सर्किट में कुल 21 महत्वपूर्ण स्थल शामिल हैं: पहले पांच उत्तर प्रदेश में, छठा, सातवां और आठवां मध्य प्रदेश में, नौवां और दसवां छत्तीसगढ़ में, ग्यारहवां, बारहवां और तेरहवां महाराष्ट्र में, चौदहवां और पंद्रहवां आंध्र प्रदेश में, सोलहवां केरल में, सत्रहवां कर्नाटक में, अठारहवां से बीसवां तमिलनाडु में, और अंतिम इक्कीसवां श्रीलंका में स्थित है।
सक्षम फाउंडेशन की इस प्रदर्शनी में जिन प्रमुख स्थानों की धूलि प्रदर्शित की गई, उनके विवरण निम्नवत हैं:
शृंगवेरपुर (सिंगरौर)
श्रीराम ने गोमती नदी पार करने के बाद प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) से लगभग 20-22 किलोमीटर दूर शृंगवेरपुर पहुँचकर निषादराज गुह से मुलाकात की। यह स्थान गंगा नदी के तट पर स्थित था, जहाँ राम ने केवट से गंगा पार कराने का अनुरोध किया था। शृंगवेरपुर का उल्लेख रामायण में मिलता है और इसे महाभारत में ‘तीर्थस्थल’ कहा गया है। वर्तमान में इसे सिंगरौर के नाम से जाना जाता है।
प्रयाग
कुरई से आगे बढ़ते हुए श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ प्रयाग पहुँचे, जिसे वर्तमान में इलाहाबाद के नाम से जाना जाता है। यहाँ गंगा और यमुना का संगम है, जो हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है। श्रीराम ने संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और चित्रकूट की ओर प्रस्थान किया। प्रयाग में स्थित प्रमुख स्थलों में वाल्मीकि आश्रम, मांडव्य आश्रम, और भरतकूप शामिल हैं।
चित्रकूट
संगम से यमुना नदी पार करने के बाद श्रीराम चित्रकूट पहुँचे, जहाँ उनके वनवास के महत्वपूर्ण प्रमाण मिलते हैं। चित्रकूट वही स्थान है जहाँ भरत अपने पिता दशरथ की मृत्यु के बाद श्रीराम को मनाने और उन्हें अयोध्या वापस लाने के लिए आते हैं। राम अपनी चरण पादुका भरत को देते हैं, जिसे भरत अयोध्या ले जाकर राज्य की प्रतीक के रूप में स्थापित करते हैं।
सतना
अत्रि आश्रम से आगे बढ़ते हुए श्रीराम मध्य प्रदेश के सतना पहुँचे, जहाँ ‘रामवन’ स्थित है। यहाँ से आगे उन्होंने नर्मदा और महानदी के किनारे 10 वर्षों तक विभिन्न ऋषियों के आश्रमों का भ्रमण किया। दंडकारण्य क्षेत्र में यात्रा करते हुए वे विराध, सरभंग, और सुतीक्ष्ण मुनियों के आश्रमों में गए। सतना के आगे, पन्ना, रायपुर, बस्तर और जगदलपुर में भी भगवान राम के वनवास से संबंधित कई महत्वपूर्ण स्थल और स्मारक हैं, जैसे मांडव्य आश्रम, श्रृंगी आश्रम, और राम-लक्ष्मण मंदिर।
पंचवटी, नासिक
दंडकारण्य के मुनियों के आश्रमों में कुछ समय बिताने के बाद, श्रीराम ने कई नदियों, तालाबों, पहाड़ों, और वनों को पार करते हुए नासिक के पंचवटी क्षेत्र में अगस्त्य मुनि के आश्रम की ओर प्रस्थान किया। यह स्थान गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। त्रेतायुग में श्रीराम, लक्ष्मण, और सीता ने वनवास का एक हिस्सा पंचवटी में बिताया था, जो उस समय जनस्थान या दंडक वन के अंतर्गत आता था। पंचवटी नासिक से लगभग 32 किलोमीटर दूर त्र्यंबकेश्वर के निकट स्थित है, जो गोदावरी का उद्गम स्थल है। अगस्त्य मुनि ने श्रीराम को अपने आश्रम में शस्त्र भेंट किए।
सीताहरण का स्थान, सर्वतीर्थ
नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच, और खर-दूषण के वध के बाद, रावण ने सीता का हरण किया और गिद्धराज जटायु का वध भी किया। जटायु की मृत्यु नासिक से 56 किलोमीटर दूर इगतपुरी तहसील के ताकेड़ गाँव के ‘सर्वतीर्थ’ नामक स्थान पर हुई। इस स्थान को ‘सर्वतीर्थ’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहाँ मरणासन्न जटायु ने श्रीराम को सीता माता के बारे में जानकारी दी थी। रामजी ने यहीं जटायु का अंतिम संस्कार किया और उनके साथ अपने पिता का श्राद्ध-तर्पण भी किया। यही वह स्थान है जहाँ लक्ष्मण रेखा खींची गई थी।
पर्णशाला, भद्राचलम (तेलंगाना)
पर्णशाला, जिसे ‘पनशाला’ या ‘पनसाला’ भी कहा जाता है, भद्राचलम में गोदावरी नदी के तट पर स्थित प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह स्थान रामायण में उस घटना के लिए प्रसिद्ध है जहाँ सीता जी का रावण द्वारा हरण हुआ था। कुछ मान्यताओं के अनुसार, रावण ने यहाँ अपना पुष्पक विमान उतारा और सीता जी को विमान में बिठाकर ले गया। यहाँ पर एक प्राचीन राम-सीता मंदिर भी स्थित है, जो इस घटना का स्मरण कराता है।
शबरी का आश्रम, पम्पा सरोवर (केरल)
श्रीराम और लक्ष्मण ने सीता जी की खोज के दौरान तुंगभद्रा और कावेरी नदियों को पार किया था। जटायु और कबंध से मिलने के बाद वे ऋष्यमूक पर्वत पहुँचे, लेकिन रास्ते में पम्पा नदी के किनारे स्थित शबरी के आश्रम में भी गए थे। यह स्थान वर्तमान में केरल में है और पम्पा नदी के किनारे स्थित है। शबरी ने भगवान राम का स्वागत बेर खिलाकर किया था, जिसकी कथा आज भी प्रसिद्ध है। हम्पी, जो वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के रूप में वर्णित है, पम्पा नदी के किनारे स्थित है।
ऋष्यमूक पर्वत, हनुमान से भेंट (कर्नाटक)
मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए श्रीराम ऋष्यमूक पर्वत पहुँचे, जहाँ उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की। यहीं श्रीराम ने सीता जी के आभूषण देखे और बाली का वध करने का संकल्प लिया। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, ऋष्यमूक पर्वत वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। इसी पर्वत पर श्रीराम की हनुमान से पहली मुलाकात हुई थी, और हनुमान ने श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता करवाई थी। यह स्थान कर्नाटक के हम्पी जिले के बेल्लारी में स्थित है, और इसके पास ही तुंगभद्रा नदी बहती है। यहाँ मतंग पर्वत भी है, जहाँ मतंग ऋषि का आश्रम था।
रामेश्वरम (तमिलनाडु)
रामेश्वरम समुद्र तट एक शांतिपूर्ण स्थान है, जो हिंदू तीर्थ स्थल के रूप में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यहाँ भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग, जिसे श्रीराम ने स्थापित किया था, आज भी श्रद्धालुओं द्वारा पूजित होता है।
धनुषकोडी (तमिलनाडु)
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, श्रीराम ने तीन दिनों की खोज के बाद समुद्र में वह स्थान ढूँढ निकाला जहाँ से श्रीलंका तक आसानी से पहुँचा जा सकता था। इस स्थान पर नल और नील की मदद से उन्होंने पुल का निर्माण कराया, जिसे आज रामसेतु के नाम से जाना जाता है। धनुषकोडी, जो रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित है, इस पुल का प्रारंभिक बिंदु है। यह स्थान श्रीलंका से केवल 18 मील दूर है। रामसेतु, जिसे अंग्रेजों ने ‘एडम्स ब्रिज’ कहा, 30 मील लंबा और सवा मील चौड़ा है। श्रीलंका सरकार ने इस डूबे हुए पुल पर भू-मार्ग बनाने का प्रस्ताव रखा था, जबकि भारत सरकार इसे नौवहन मार्ग के रूप में विकसित करने का प्रयास कर रही है, जिसे ‘सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट’ का नाम दिया गया है।
चूंकि राम भारत के प्राण हैं, इसीलिए उनके पदयात्रा की मिट्टी को एक साथ देखना सांस्कृतिक एकीकरण के साथ-साथ हर एक सनातनी को भावुक करने का भी अवसर है। इस महनीय प्रयास हेतु सक्षम फाउंडेशन के समस्त पदाधिकारियों को भूरिशः बधाई।
(इस लेख को लिखने वाले डा. आलोक कुमार द्विवेदी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय से दर्शनशास्ञ में पीएचडी हैं। वर्तमान में वह KSAS, लखनऊ में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। यह संस्थान अमेरिका स्थित INADS, USA का भारत स्थित शोध केंद्र है। डा. आलोक की रुचि दर्शन, संस्कृति, समाज और राजनीति के विषयों में हैं।)