किसी भी देश की ताकत का आंकलन उसकी मजबूत सेना से किया जा सकता है। जिस देश की सेना जितनी मजबूत होगी वो विश्व में उतना ही ताकतवर बनता चला जाएगा। बात आज विश्व की सबसे शक्तिशाली सेना की करें तो इसमें अमेरिका का नाम शीर्ष पर आता है। अमेरिकी सेना कई उन्नत और अत्याधुनिक हथियारों से लैस है, जिसके जरिए वो दुनिया के किसी भी देश का सामना करने की क्षमता रखता है। परंतु अब इसी विश्व की सबसे शक्तिशाली सेना को मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है, वो है अमेरिकी सेना में सैन्यबल की कमी। यानि अमेरिका के पास कई एक से बढ़कर एक हथियार तो है, परंतु इन्हें संचालित करने के लिए सैनिकों की कमी हो रही है।
दरअसल, हाल ही में खबर आई है कि अमेरिकी सेना को भर्ती के लिए “अभूतपूर्व चुनौतियों” का सामना करना पड़ रहा है। अमेरिका अपनी सेना में भर्ती के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पा रहा। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार इस वित्तीय वर्ष के खत्म होने में केवल ढाई ही महीनों का वक्त बता है, परंतु ऐसे में भी अमेरिका केवल भर्ती लक्ष्य का 50 प्रतिशत ही हासिल कर पाया है। जिस कारण यह संभावना जताई जा रही है कि अमेरिकी संख्या हजारों की संख्या में अपना भर्ती लक्ष्य हासिल से चूक जाएगी। आर्मी के वाइस चीफ ऑफ स्टाफ आर्मी जनरल जोसेफ मार्टिन ने कहा कि यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इस वर्ष सेना की कुल संख्या 4,66,400 होगी, जो अपेक्षित 4,76,000 से कम रहेगी।
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अमेरिकी सेना में भर्ती की कमी के पीछे कई कारण बताए जा रहे है। एक तो है अमेरिकी युवाओं का अनफिट होना और दूसरा अमेरिकी युवाओं में सेना में सेवा करने की दिलचस्पी कम होना। मार्टिन के अनुसार अमेरिका में केवल 23% सैन्य-आयु के पुरुष और महिलाएं ही सेवा करने के लिए योग्य हैं। इसके अलावा ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अमेरिकी युवा अपने देश की सुरक्षा के लिए इच्छुक नजर नहीं आ रहे है। आर्मी सेक्रेटरी की प्रवक्ता क्रिस्टीन वर्माउथ ने एक बयान में कहा- “ऑल-वॉलंटियर फोर्स की स्थापना के बाद से सेना हमारे सबसे चुनौतीपूर्ण भर्ती माहौल का सामना कर रही है। यह एक साल की चुनौती नहीं है। हम इसे रातों-रात हल नहीं करेंगे।“ अमेरिकी सेना वर्ष 2030 तक अपनी 25 प्रतिशत सैनिकों को रोबोट में बदलने के लिए तैयार थीं, परंतु उसकी गिरती अर्थव्यवस्था इसमें बड़ा रोड़ा बन रही है। इन समस्याओं से अमेरिका इतनी आसानी से निपट नहीं सकता। ऐसे में विश्व को विश्व में अमेरिकी सेना कमजोर पड़ सकती है।
देखा जाए तो अमेरिका दुनियाभर में मौजूद अपने 800 सैन्य ठिकानों से अपनी उपस्थिति भी कम करने की भी तैयारी में है। इनमें से एक है मध्य पूर्व शामिल है। इस क्षेत्र से अगर अमेरिका धीमी वापसी की तैयारी करता है, तो इसका मतलब यह होगा कि वे गुट अरब देशों के रूप में काम नहीं करेगा। एक अरब-नाटो भी पनप रहा है, जो क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने का काम करेगा। भारत के संदर्भ में देखें तो मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से अरब देशों के साथ भारत के संबंध बेहतर हुए है। इसका सबसे नवीनतम उदाहरण है I2U2 का गठन। एक नए क्वाड देशों का गठन किया गया, जिसमें भारत के साथ अरब देश इजरायल और यूएई भी शामिल है। इन क्वाड संगठन के माध्यम से भारत अपनी पकड़ अरब देशों पर और मजबूत करने का काम करेगा।
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रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की चेतावनी के बावजूद अमेरिका नाटो के विस्तार पर निरतंर जोर दे रहा है। ऐसे में अमेरिका को जवाब देने और नाटो के विस्तार का मुकाबला करने के लिए रूस की तरफ से पहल करने के प्रयास किए जा सकते है, जिसमें भारत भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभेएगा। भारत और रूस के बीच संबंधों कैसे है, यह हर कोई जानता है। ऐसे में अगर अमेरिकी सेना कमजोर पड़ती है, तो यह भारत के लिए स्वयं को मजबूत करने के बेहतर अवसर प्रदान कर सकता है।
हालांकि इस दौरान भारत के लिए एकमात्र चिंता का विषय है, उसके पड़ोसी देश जो भारत के विरुद्ध आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास करते रहते है। अमेरिकी सेना लंबे समय तक हमारे पड़ोसी देशों में अपनी सेना भेजने के सक्षम नहीं हो पाएगा, जिससे पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देश अपने यहां आतंकवाद को बढ़ावा देने के प्रयास कर सकते है। इसका परिणाम यह होगा कि इससे भारतीय सीमा पर घुसपैठ को कोशिशें भी बढ़ सकती है।
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