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साम्यवादी, इस्लामी, रूपांतरण माफिया प्रभावित केरल में केवल आदि शंकराचार्य ही हिंदू धर्म की समीक्षा कर सकते हैं

'आदि शंकराचार्य के बड़े योगदान के लिए आने वाली पीढ़ियां हमेशा उनकी ऋणी रहेंगी'

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
3 September 2022
in चर्चित, मत
PM Modi
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हाल ही में केरल यात्रा पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई महत्वपूर्ण स्थलों की यात्रा की। बृहस्पतिवार को ही उन्होंने ‘आदि शंकर जन्म भूमि क्षेत्रम’ में प्रार्थना की जो केरल के एर्णाकुलम जिला में स्थित कलाडी गांव में आदि शंकराचार्य की जन्म स्थली है।

पीएम मोदी का ट्वीट बहुत कुछ कहता है

नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, “मैं श्री आदि शंकर जन्मभूमि क्षेत्रम जाकर बहुत धन्य महसूस कर रहा हूं। यह निश्चित तौर पर एक खास जगह है। महान आदि शंकाराचार्य द्वारा हमारी संस्कृति की रक्षा के लिए दिए गए बड़े योगदान के वास्ते आने वाली पीढ़ियां हमेशा उनकी ऋणी रहेंगी” –

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I feel very blessed to be at the Sri Adishankara Janmabhumi Kshetram. It is indeed a special place. Generations to come will remain indebted to the great Adi Shankaracharya for his rich contribution towards protecting our culture. pic.twitter.com/5VCwxcEbFq

— Narendra Modi (@narendramodi) September 1, 2022

पीएम मोदी ने आदि शंकराचार्य के महत्व को गिनाते हुए कहा कि उनकी धरोहर को श्री नारायण गुरु, चट्टम्पी स्वामीकल और अय्यंकाली जैसे कई संत एवं समाज सुधारक केरल से बाहर ले गए। आदि शंकराचार्य अपने ‘अद्वैत’ दर्शन को लेकर जाने जाते हैं। परंतु आदि शंकराचार्य के महत्व को पीएम मोदी इतना क्यों रेखांकित कर रहे हैं? आखिर ऐसा क्या है उनमें जो किसी अन्य में नहीं? असल में जब बौद्ध धर्म भारत में अपनी जड़ें मजबूत कर रहा था, और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सनातन धर्म की महिमा अब क्षीण हो रही है, तो ये आदि शंकराचार्य ही थे जिन्होंने अखंड भारत में धर्म की ध्वजा को पुनर्स्थापित करने का बीड़ा उठाया।

25 वर्षों के लघु अंतराल में उन्होंने ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक और छान्दोग्य उपनिषदों पर भाष्य लिखें। 16 वर्ष की आयु में उन्होंने ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखा। पश्चिम में द्वारका, उत्तर में बद्रीनाथ, पूर्व में जगन्नाथ पुरी और दक्षिण में श्रृंगेरी, 4 पुरियों में मठों की स्थापना कर, उन्होंने धर्म की दिग्विजय का उद्घोष किया। यह मान्यता है कि 4 दिशाओं में चार मठों की स्थापना का उद्देश्य इस सत्य को स्थापित करना था कि धर्म का शासन राजनीतिक संस्थाओं से श्रेष्ठ है।

केवल 32 की आयु में जो कार्य उन्होंने किए, उतना तो शायद सम्पूर्ण जीवन में कोई योद्धा, कोई राजनीतिज्ञ, कोई बुद्धिजीवी समस्त भारतवर्ष के लिए नहीं कर पाया। आज भी भारतवर्ष के शूरवीर सेवकों में आदि शंकराचार्य का नाम सम्मान सहित लिया जाता है, जिन्होंने अपना सर्वस्व मां भारती की सेवा में अर्पण कर दिया।

द कश्मीर फाइल्स के इस संवाद से आप भली भांति समझ सकते हैं, कि आदि शंकराचार्य के भारत निर्माण में क्या भूमिका थी, “फिर मैंने देखा, शंकराचार्य केरल से पैदल चलते हुए कश्मीर पहुंचे, केरल से कश्मीर। उनके पास कोई पुष्पक विमान तो था ही नहीं, सो He literally walked। उन्होंने सालों हिमालय की गोद में बैठकर शोध किया, क्योंकि दर्शन में जो शोध वे कर रहे थे वह केवल स्वर्ग में संभव थी, यानी कश्मीर!” वो आदि शंकराचार्य ही थे जिन्होंने चार ज्योतिर्मठ की स्थापना की।

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ताम्रपत्र अभिलेख में क्या लिखा गया है

उनके ताम्रपत्र अभिलेख में शंकर का जन्म युधिष्ठिराब्द २६३१ शक् (५०७ ई०पू०) तथा शिवलोक गमन युधिष्ठिराब्द २६६३ शक् (४७५ ई०पू०) सर्वमान्य है। इसके प्रमाण सभी शांकर मठों में मिलते हैं।

आदि शंकराचार्य जी ने जो चार पीठ स्थापित किये, उनके काल निर्धारण में उत्थापित की गयी भ्रांतियां-

  1. उत्तर दिशा में बदरिकाश्रम में ज्योतिर्पीठ: स्थापना-युधिष्ठिर संवत् 2641-2645
  2. पश्चिम में द्वारिका शारदापीठ- यु.सं. 2648

3.दक्षिण शृंगेरीपीठ- यु.सं. 2648

  1. पूर्व दिशा जगन्नाथपुरी गोवर्द्धनपीठ – यु.सं. 2655

आदिशंकर जी अंतिम दिनों में कांची कामकोटि पीठ 2658 यु.सं. में निवास कर रहे थे।

शारदा पीठ में लिखा है –

“युधिष्ठिर शके 2631 वैशाखशुक्लापंचम्यां श्रीमच्ठछंकरावतार:।

……तदनु 2663 कार्तिकशुक्लपूर्णिमायां ……श्रीमच्छंकरभगवत्पूज्यपादा…… निजदेहेनैव…… निजधाम प्राविशन्निति।

अर्थात् युधिष्ठिर संवत् 2631 में वैशाखमासके शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को श्रीशंकराचार्य का जन्म हुआ और युधि. सं.2663 कार्तिकशुक्ल पूर्णिमा को देहत्याग हुआ। [युधिष्ठिर संवत् 3139 B.C. में प्रवर्तित हुआ था]

चार धार्मिक मठों में दक्षिण के शृंगेरी शंकराचार्य पीठ, पूर्व (ओडिशा) जगन्नाथपुरी में गोवर्धन पीठ, पश्चिम द्वारिका में शारदामठ तथा बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्पीठ भारत की एकात्मकता को आज भी दिग्दर्शित कर रहा है। कुछ लोग शृंगेरी को शारदापीठ तथा गुजरात के द्वारिका में मठ को काली मठ कहते हैं। उक्त सभी कार्य को सम्पादित कर 32 वर्ष की आयु में केदारनाथ तीर्थ में यह ब्रह्मलीन हुए।

और पढ़ें- आदि शंकराचार्य सनातन संस्कृति के पुनरुत्थान के प्रतीक हैं और उन्हें केदारनाथ में पुनर्स्थापित किया गया है!

आदि शंकराचार्य का इतना राजनीतिक उल्लेख क्यों?

परंतु प्रश्न तो अब भी व्याप्त है – आदि शंकराचार्य का इतना राजनीतिक उल्लेख क्यों? किसलिए? असल में केरल को ‘God’s own Country’ यानी ईश्वर का अपना देश कहा जाता है, क्योंकि अनेक धर्मों ने यहीं से भारत में प्रवेश किया था। यहीं पर भारत के सर्वप्रथम मस्जिद एवं गिरजाघर का निर्माण भी हुआ था और मंदिरों की कभी कोई कमी ही नहीं थी। अनेक तीर्थों की भूमि है केरल, परंतु अब यहां पर कम्युनिस्टों एवं इस्लामिस्टों का कुशासन व्याप्त है, जो बस कैसे भी करके इस राज्य को नोच खाना चाहते हैं।

अब यह कम्युनिस्ट इस्लामिस्ट गठजोड़ काफी सफल भी रहा है, जिसमें सेक्युलर बुद्धिजीवी भी अपना भरपूर योगदान देते रहते हैं। इनके कारण जो केरल कभी संस्कृति, इतिहास एवं विज्ञान के क्षेत्र में भारत का प्रतीक चिन्ह हुआ करता था, वह अब भारत की नैतिक दुर्दशा का प्रतीक चिह्न है। कहने को यह राज्य 100 प्रतिशत साक्षर, लेकिन नैतिक और सांस्कृतिक रूप से यह 100 प्रतिशत निरक्षर है।

ऐसे में आदि शंकराचार्य के कीर्ति का प्रचार प्रसार कराना अपने आप में एक क्रांतिकारी निर्णय है, जिसके दूरगामी परिणाम होंगे। लगभग एक वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ धाम में जगतगुरू आदि शंकराचार्य की क्लोराइड से बनी एक मूर्ति का अनावरण किया। यह मूर्ति केदारनाथ धाम के विकास के लिए बनी वृहत्तर योजना के अंतर्गत बनायी गयी है। 35 टन वजनी मूर्ति की ऊंचाई 12 फीट है, इसे 130 टन के एक पत्थर को काट कर बनाया गया है। कटाई के दौरान लगातार नारियल पानी का प्रयोग किया गया है, जिससे आदि शंकराचार्य की मूर्ति काफी चमकदार और चिकनी बनी है। मूर्ति निर्माण में विशेष रूप से नारियल पानी का प्रयोग इसलिए हुआ है कि मूर्ति की चमक जगतगुरू आदि शंकराचार्य के तेज को प्रतिबिंबित कर सके।

पीएम मोदी के अभिभाषण के अनुसार, “हमारा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। देश अपने पुनर्निर्माण के लिए नए संकल्प ले रहा है। इस कड़ी में हम आदि गुरु शंकराचार्य को एक नयी प्रेरणा के तौर पर देख सकते हैं, क्योंकि देश अपने लिए बड़े लक्ष्य तैयार कर रहा है। हमने इसकी समय सीमा भी तैयार की है। तो लोग इस पर सवाल उठाते हैं कि ये जो तय किया है, यह हो भी पाएगा कि नहीं…तब मेरे मुंह से यही निकलता है कि समय के दायरे में बंधकर भयभीत होना अब भारत को मंजूर नहीं है।’

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि यदि केरल को कोई कम्युनिज़्म एवं इस्लामिस्टों के प्रकोप से मुक्त कर सकता है, तो वह केवल आदि शंकराचार्य की यश एवं कीर्ति है, जिसे चहुंओर फैलाने में पीएम मोदी कोई प्रयास अधूरा नहीं छोड़ रहे हैं।

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