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“बचपन में चली गई थी देखने की शक्ति, 22 भाषाओं के ज्ञाता, राम मंदिर के लिए सुप्रीम कोर्ट में गवाही, 80 ग्रंथ रच दिए”, जगद्गुरु रामभद्राचार्य की कहानी

सुप्रीम कोर्ट भी जिनकी आभा और प्रज्ञा देखकर दंग रह गया था।

Yogesh Sharma द्वारा Yogesh Sharma
29 January 2023
in ज्ञान
Know Story of Jagadguru Rambhadracharya

Source- TFI

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भारत की पहचान साधु-संतों की भूमि के रूप में होती है। भारत के संतों ने विश्व में सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार करने का कार्य किया हैं। इसलिए समाज में ऐसे संतों को बेहद सम्मान और आदर भाव की नजर से देखा जाता हैं। एक ऐसे ही महान संत हैं श्री रामभद्राचार्य जी। जो न तो देख सकते हैं, न पढ़ सकते हैं और न ही लिख सकते हैं परंतु फिर भी वो 80 से अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके हैं। वो अपनी रचनाओं को बोलकर लिखवाते हैं। उन्हें बहुभाषाविद भी कहा जाता है। क्योंकि उन्हें 22 भाषाओं में कुशलता प्राप्त है। आज हम आपको इस लेख में हिंदू समाज के महान संत श्री रामभद्राचार्य महाराज से जुड़ी कई रोचक बातों से अवगत कराएंगें।

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बचपन में ही चली गई थी आंखों की रोशनी

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर में हुआ था। जगद्गुरु रामभद्राचार्य बचपन में ही ट्रकोम नामक एक बीमारी का शिकार हो गये थे। बताया जाता है कि एक महिला से उनकी आंखों में दवाई डलवायी गयी थी जिससे उनकी आंखों से खून निकलने लगा था। कई जगहों पर इलाज कराने के बावजूद उन्हें कोई लाभ नहीं मिला जिससे उनकी आंखो की रोशनी चली गई थी।

अवध भाषा में की पहली रचना

जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज की प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में अपने दादा की देखरेख में घर पर ही हुई। उनके पिता मुम्बई में ही नौकरी करते थे। उन्हें घर पर ही रामायण, महाभारत, विश्रामसागर, सुखसागर, प्रेमसागर, ब्रजविलास जैसे किताबों का पाठ कराया गया। जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज का वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा है। रामभद्राचार्य ने महज 3 वर्ष की आयु में अपनी पहली कविता की रचना अवध भाषा में कर दी थी। इन्होंने अपनी रचना जब दादा को सुनाई तो हर कोई हैरत में पड़ गया था। इन्होंने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में शास्त्री की उपाधि ली थी। साथ ही अयोध्या में उन्होंने ईश्वरदास महाराज से गायत्री मंच और राममंत्र की दीक्षा ली। तभी से इनका नाम रामभ्रदाचार्य हो गया था।

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जगद्गुरु रामभद्राचार्य 22 भाषाओं में पारंगत हैं। संस्कृत, हिंदी के साथ ही वह अवधि, मैथिली समेत अन्य भाषाओं में रचनाएं रची हैं। यह 80 से अधिक पुस्तकों की रचना कर चुके हैं, जिसमें दो संस्कृत और दो हिंदी के महाकाव्य भी शामिल हैं। इन्होंने केवल सुनकर शिक्षा हासिल की और वो बोलकर अपनी रचनाएं लिखवाते हैं। आपको बता दें कि रामभद्राचार्य महाराज को तुलसीदास पर देश के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में गिना जाता है। उन्होंने संत तुलसीदास के नाम पर चित्रकूट में एक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान तुलसी पीठ की भी स्थापना की है।

साथ ही वह उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना कर चुके हैं जोकि भारत और विश्व का पहला विकलांग विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय में केवल चार प्रकार के विकलांग- दृष्टिबाधित, मूक-बधिर, अस्थि-विकलांग और मानसिक विकलांगों स्नातक और पीजी कराया जाता है। देशभर में जगद्गुरु रामभद्राचार्य के लाखों अनुयायी हैं। लोग उनका नाम बहुत आदर के साथ लेते हैं। हर कोई उनकी अद्भुत प्रतिभा का कायल हैं। इन्हें सरकार के द्वारा वर्ष 2015 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।

बताया जाता है कि 5 वर्ष की अल्प आयु में जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज ने अपने पड़ोसी पंडित मुरलीधर मिश्रा की सहायता से 15 दिनों में अध्याय और श्लोक संख्या के साथ लगभग 700 छंदों से युक्त संपूर्ण भगवद गीता को याद कर लिया था। साथ ही ये भी कहा जाता है कि सात साल की उम्र में जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने 60 दिनों में तुलसीदास के संपूर्ण रामचरितमानस को याद कर लिया था। स्वामी रामभद्राचार्य ने बचपन में ही धार्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया था और 4 वर्ष की अल्प आयु में ही रामभद्राचार्य महाराज कवितायें करने लगे थे और 8 वर्ष की आयु में वो भागवत कथा और रामकथा भी करने लगे।

और पढ़ें: “चीन की जासूसी की, पिस्तौल लेकर चलते थे, 15 वर्ष हिमालय में घूमते रहे”, स्वामी प्रणवानंद की कहानी

राम मंदिर मामले में दी महत्वपूर्ण गवाही

सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस में जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज की खूब चर्चा हुई थी। जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में वादी के तौर पर उपस्थित हुए और उन्होंने सरयू नदी के स्थान विशेष से दिशा और दूरी का बिल्कुल सटीक ब्यौरा देते हुए श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई थी। जिसके बाद अदालत में जैमिनीय संहिता मंगाई गई। उसमें जगद्गुरु ने जिन उद्धहरणों का जिक्र किया था, उसे खोलकर देखा गया। सभी विवरण सही पाए गए। पाया गया कि जिस स्थान पर श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई गई, विवादित स्थल ठीक उसी स्थान पर है। जिसका परिणाम ये हुआ कि जगद्गुरु के बयान ने निर्णय का रूख मोड़ दिया। सुनवाई करने वाले जस्टिस ने भी इसे भारतीय प्रज्ञा का चमत्कार माना। सभी हैरान थे कि जो व्यक्ति  देख नहीं सकते उन्हें कैसे वेदों और शास्त्रों के विशाल संसार से उद्धहरण दे सकते हैं। कुछ लोगों ने इसे ईश्वरीय शक्ति बताया।

बता दें कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य वर्ल्ड ह्यूमैनिटी पार्लियामेंट संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2023 का प्राइड ऑफ सनातन विश्व प्रसिद्ध पुरस्कार से विभूषित किया है जो सभी के लिए गौरव की बात है। जगदगुरु की आशुकवि क्षमता है। रचनात्मक कार्यों में पठन-पाठन करते रहते हैं।

और पढ़ें: एक प्रख्यात पुरातत्वविद् और पुरालेखशास्त्री थे डॉ० आर नागास्वामी

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