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बेनेगल नरसिंह राऊ: भारतीय संविधान के वास्तविक रचयिता

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने क्यों कहा था कि इनके बिना संविधान का निर्माण संभव नहीं था?

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
27 February 2023
in इतिहास
बेनेगल नरसिंह राऊ

Source: Hindustan Times

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बेनेगल नरसिंह राऊ: “आपको लगता है कि सारा प्रयास मेरा है, परंतु ऐसा नहीं है। अगर ऐसे अभूतपूर्व व्यक्तित्व का साथ नहीं होता, और उनका मार्गदर्शन नहीं होता, तो मुझसे ये काम अकेले संभव नहीं था” ये शब्द थे संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के प्रमुख डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के जिन्हे कई लोग भारतीय संविधान के प्रणेता मानते हैं। परंतु स्वयं अंबेडकर ने इस बयान के माध्यम से स्पष्ट किया था कि संविधान का संकलन उनके अकेले के बस का नहीं था। तो आखिर वे विभूति थे कौन, जिनके कारण संविधान का संकलन संभव हो पाया?

इस लेख में बेनेगल नरसिंह राऊ के बारे में पढ़िए, जिनके बिना संविधान का निर्माण करीब-करीब असंभव था।

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संविधान सभा के सलाहकार

जब भारतीय संविधान की रचना का कार्यभार संवैधानिक सभा को सौंपा गया तो स्वतंत्र भारत की कार्यवाहक सरकार ने एक ड्राफ्टिंग कमेटी का गठन किया। जिसका नेतृत्व डॉक्टर भीमराव अंबेडकर कर रहे थे। प्रशासनिक और क़ानूनी विशेषज्ञों की इस समिति में शामिल थे बेनेगल नरसिंह राव, के एम मुंशी, एन गोपालस्वामी आयंगर, अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर,सैयद मोहम्मद सादुल्लाह, मैसूर के दीवान एन. माधव राऊ और डीपी खैतान।

ये बेनेगल नरसिंह राऊ ही थे जिन्होंने संविधान को उसका मूल स्वरूप देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्हें प्रमुख तौर पर संविधान सभा के सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था और इन्होंने सच्चिदानंद सिन्हा एवं राजेन्द्र प्रसाद को अपनी सेवाएँ प्रदान की।

और पढ़ें: जस्टिस हंसराज खन्ना: वो न्यायाधीश जिसने जिसने सबकुछ गंवा दिया लेकिन इंदिरा गांधी के विरुद्ध खड़ा रहा

बेनेगल नरसिंह राऊ का जन्म कर्नाटक के साउथ केनेरा ज़िले के कारकल में 26 फ़रवरी, 1887 को हुआ था। बीए की पढ़ाई के बाद वो कैंब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिट्री कॉलेज में पढ़ने गए। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने इम्पेरियल सिविल सर्विसेज़ ऑफ इंडिया यानी ICS को अपनी सेवाएँ दी एवं कुछ समय के लिए वे जम्मू एवं कश्मीर के विशेष सलाहकार के रूप में भी नियुक्त हुए।

अरविंद इलैंगवान बीएन राऊ की जीवनी में, विशेषकर उनके कैम्ब्रिज में बिताए दिनों के बारे में लिखते हैं, “उन दिनों जवाहरलाल नेहरू भी वहाँ के छात्र थे। उन्होंने अपने पिता मोतीलाल नेहरू को लिखे पत्र में लिखा था – यह लड़का अत्यंत चतुर है।

मैं उसे सिर्फ़ कक्षा में आते-जाते ही देखता हूँ। मेरा विश्वास है कि वो अपना एक-एक क्षण अध्ययन में ही व्यतीत करता है। उनके निधन पर लोकसभा में श्रद्धांजलि देते हुए जवाहरलाल नेहरू ने अपने छात्र जीवन के इस प्रसंग को याद किया था”।

राजेंद्र प्रसाद ने कहा था धन्यवाद

भारत के संविधान को दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधानों में से एक माना जाता है जिसमें 448 अनुच्छेद, 25 खंड, 12 अनुसूची और 105 संशोधन शामिल हैं। उन्होंने अकेले ही फ़रवरी, 1948 तक संविधान का प्रारंभिक मसौदा तैयार कर लिया था जिसे लंबी चर्चा, बहस और संशोधन के बाद 26 नवंबर, 1949 को पारित कर दिया गया था।

संविधान पर हस्ताक्षर करने से पहले संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने राऊ को धन्यवाद देते हुए कहा था कि उन्होंने न सिर्फ़ अपने ज्ञान और पांडित्य से संविधान सभा की मदद की है बल्कि दूसरे सदस्यों को भी पूरे विवेक के साथ अपनी भूमिका निभाने में मदद की है। राऊ संविधान सभा के आधिकारिक सदस्य नहीं थे, लेकिन वो मसौदा कमेटी के सबसे महत्वपूर्ण सलाहकार थे।

और पढ़ें: ब्रिटिश साम्राज्य ने रखी थी ‘खालिस्तान’ की नींव, जानिए वो इतिहास जो अबतक छिपाया गया

परंतु बात केवल यहीं तक सीमित नहीं थी। बेनेगल नरसिंह राऊ वाक्पटुता एवं कूटनीति के भी धनी थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि केवल कश्मीर ही नहीं, अपितु हैदराबाद के विषय पर भी जवाहरलाल नेहरू एवं उनके अनुचरों ने एक कमेटी गठित की थी।

इसमें इस बात पर ज़ोर दिया जा रहा था कि हैदराबाद के विषय को यूएन तक लेके जाएँ और इसी कमेटी में बीएन राऊ भी सम्मिलित थे। परंतु किन्ही कारणों से ये कमेटी अपनी मंशा में सफल नहीं हो सकी। इसके दो ही कारण हो सकते हैं या तो सरदार पटेल का दृढ़निश्चय बहुत कारगर रहा या फिर बेनेगल राऊ भी इस विषय पर नेहरू के समर्थक नहीं थे।

शायद इन्ही कारणों से संविधान बन जाने के बाद 25 नवंबर, 1949 को डाक्टर राजेंद्र प्रसाद ने कहा था, “संविधान बनाने का जो श्रेय मुझे दिया जा रहा है, वास्तव में मैं उसका अधिकारी नहीं हूँ. उसके वास्तविक अधिकारी बेनेगल नरसिंह राऊ हैं जो इस संविधान के संवैधानिक परामर्शदाता हैं और जिन्होंने मसौदा समिति के विचारार्थ संविधान का मोटे रूप में मसौदा बनाया”।

इसके अतिरिक्त 1960 में प्रकाशित बी शिवा राव की पुस्तक ‘इंडियाज़ कॉन्स्टीट्यूशन इन द मेकिंग’ के प्रस्तावना में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने लिखा था –

“अपने ज्ञान और अनुभव के कारण बेनेगल नरसिंह राऊ संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार पद के लिए अपरिहार्य व्यक्ति थे। उन्होंने संविधान सभा के सदस्यों के लिए आवश्यक सहायक सामग्री खोजी और उसे साधारण आदमी की समझ के लिए आसान शब्दों में प्रस्तुत किया। संविधान सभा के अधिकतर सदस्य स्वाधीनता सेनानी थे, जिन्हे संविधान की जटिलताएं मालूम नहीं थीं”।

“उनमें कमाल की योग्यता थी”

 

“राऊ ने दुनिया के लिखित और अलिखित संविधानों का गहन अध्ययन कर समय समय पर अपने दस्तावेज़ों में उपयोगी तथ्य और तर्क दिए और उसे सदस्यों के लिए उपलब्ध कराया। अगर डॉक्टर भीमराव आंबेडकर संविधान निर्माण के विभिन्न चरणों में एक कुशल पायलट की भूमिका में थे, तो बेनेगल राऊ वो व्यक्ति थे जिन्होंने संविधान की एक स्पष्ट परिकल्पना दी और उसकी नींव रखी. संवैधानिक विषयों को साफ़-सुथरी भाषा में लिखने की उनमें कमाल की योग्यता थी।”

बी. शिवाराव की संपादित पुस्तक ‘इंडियाज़ कांस्टीट्यूशन इन द मेकिंग’ में 29 अध्याय हैं जिसमें अधिकतर में बेनेगल नरसिंह राऊ के वो दस्तावेज़ शामिल हैं जो उन्होंने संविधान निर्माण में मदद पहुंचाने के लिए लिखे थे। संविधान सभा की बहस में जब कभी विवाद के विषय उठे राऊ का परामर्श लिया जाता था जो सदैव उनके गहरे अध्ययन पर आधारित होता था।

परंतु राजेन्द्र प्रसाद के ये शब्द सुनने के लिए बेनेगल नरसिंह राऊ संविधान सभा में मौजूद नहीं थे क्योंकि तब तक उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था और वो संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि बन गए थे।

उन्हे अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ऑफ जस्टिस में बतौर जज नियुक्त भी किया गया। परंतु गिरते स्वास्थ्य के पीछे बेनेगल नरसिंह राऊ अधिक समय इस पद पर नहीं टिक सके, और लगभग एक वर्ष के अंदर ही 1953 में ज्यूरिख में उनका देहावसान हो गया।

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