जो दिखता है, आवश्यक नहीं कि वही सत्य हो। पिछले कुछ दिनों से अमेरिका कुछ ही ज़्यादा “भारत का हितैषी” दिखने को उद्यत है। वह संसार को यह दिखाना चाहता है कि भारत के लिए यदि कोई सबसे अधिक चिंतित है तो वह अमेरिका ही है, परंतु जी 20 सम्मेलन में आगमन से पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने वही किया, जिसकी आशा किसी विश्लेषक को न थी, और इससे एक बार फिर यही स्पष्ट होता है कि अमेरिका अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ सकता।
इस लेख में पढ़िए कैसे एक बार फिर अमेरिका ने अपना वास्तविक रूप दिखाया है।
मध्य एशिया पहुंचे ब्लिंकन
इस वर्ष जी-20 की अध्यक्षता भारत कर रहा है और जी-20 के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में भाग लेने के लिए अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिकन भी भारत आए थे, परंतु यह महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि अमेरिका के विदेश मंत्री अमेरिका से सीधे भारत ने आकर मध्य एशिया में कुछ समय रुके थे, उसके बाद वो भारत आए।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि आखिरकार उन्होंने ऐसा क्यों किया? इसके लिए हमें समझना होगा कि मध्य एशिया केवल एक क्षेत्र नहीं है बल्कि अवसरों का असीमित सागर है, जो रणनीतिक रूप से दो महाशक्तियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है रूस और भारत। इसके अलावा चीन भी इस क्षेत्र में अपनी नजरें गड़ाया हुआ है।
मध्य एशिया के दौरे के दौरान ब्लिंकन ने कजाखिस्तान की यात्रा भी की है, जहां वे विदेश मंत्री मुख्तार तिलेउबर्दी से मिले और फिर वहां के राष्ट्रपति कासिम-जोमार्त तोकायेव के साथ बातचीत की। इसके बाद तथाकथित सी5+1 समूह की बैठक हुई। इस समूह सी5+1 में अमेरिका और पूर्व सोवियत संघ के सदस्य- कजाकिस्तान, किर्गिजिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं।
अमेरिकी विदेश विभाग ने एक बयान जारी कर कहा कि सी5+1 की बैठक में ब्लिंकन ‘मध्य एशियाई देशों की स्वतंत्रता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति अमेरिकी प्रतिबद्धता’ पर जोर देंगे। रूस से युद्ध में यूक्रेन का समर्थन करने के लिए अमेरिका इसी प्रतिबद्धता का हवाला देता है।
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पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा रह चुके कजाकिस्तान, किर्गिजिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान को पारंपरिक रूप से मॉस्को से प्रभावित माना जाता है, लेकिन इनमें से किसी ने भी सार्वजनिक रूप से युद्ध का समर्थन नहीं किया है और ऐसे में अब ब्लिंकन मध्य एशिया के माध्यम से रूस को “कूटनीतिक रूप” से अलग-थलग करना चाहते हैं।
इसके संकेत स्वयं ब्लिंकन ने दिए। जिन्होंने इस बात को उज्बेकिस्तान में भी दोहराया। उन्होंने कहा, “आखिरकार, अगर एक शक्तिशाली देश बलपूर्वक एक संप्रभु पड़ोसी की सीमाओं को मिटाने की कोशिश करने को तैयार है, तो उसे दूसरों के साथ ऐसा करने से क्या रोका जा सकता है? मध्य एशिया के देश इसे समझते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका भी ऐसा ही करता है, और ऐसा ही दुनिया भर के भागीदार और सहयोगी भी करते हैं। और यही कारण है कि हम प्रतिबद्ध हैं और न केवल यूक्रेन की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, स्वतंत्रता के लिए खड़े होने के लिए प्रतिबद्ध हैं, बल्कि मध्य एशिया और वास्तव में, दुनिया भर के देशों के लिए भी हैं।
ऐसे में इतना तो स्पष्ट है कि अमेरिका भारत के मंच से रूस के घेराबंदी का भरसक प्रयास कर रही है। बता दें कि रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव, फ्रांस की कैथरीन कोलोना, चीनी विदेश मंत्री किन गैंग, जर्मनी की एनालेना बेयरबॉक और ब्रिटिश विदेश सचिव जेम्स क्लीवरली उन लोगों में शामिल हैं जो भारत की मेजबानी में जी20 विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग ले रहे हैं।
जी 20 में अमेरिका का एजेंडा
अतिथि के रूप में भारत के निमंत्रण के बाद श्रीलंका और बांग्लादेश सहित गैर-जी20 देशों के कई विदेश मंत्री भी बैठक में भाग ले रहे हैं। बैठक में गिरते आर्थिक विकास, बढ़ती महंगाई, वस्तुओं और सेवाओं की कम मांग के साथ-साथ भोजन, ईंधन और उर्वरकों की बढ़ती कीमतों से निपटने के तरीकों पर भी चर्चा होने की संभावना है। इसके अतिरिक्त अमेरिका जी 20 के माध्यम से रूस यूक्रेन युद्ध के लिए रूस को “आइसोलेट” करने की दिशा में हरसंभव प्रयास करने को उद्यत है।
परंतु अमेरिका भारत के माध्यम से ही रूस को क्यों नीचा दिखाना चाहता है? ऐसा इसलिए क्योंकि लाख प्रपंच के बाद भी भारत और रूस के बीच संबंधों पर कोई आंच नहीं आई है, और भारत ने स्पष्ट किया है कि आत्मनिर्भरता के पथ पर वह अपनी गति से आगे बढ़ेगा, किसी के दबाव में नहीं।
इसके अतिरिक्त रूस-यूक्रेन युद्ध के एक वर्ष पूर्ण होने पर संयुक्त राष्ट्र की महासभा में एक बार फिर रूस के विरुद्ध प्रस्ताव लाया गया था, परंतु इस मतदान में भारत और चीन ने प्रतिभाग नहीं किया था। 193 सदस्य देशों में से 141 सदस्य देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। इससे पहले भी कई बार महासभा में रूस के विरुद्ध लाए गए प्रस्ताव पर भारत ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।
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वोट न देने पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए महासभा में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कम्बोज ने कहा था, “समकालीन चुनौतियों से निपटने में संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद की प्रभावशीलता पर प्रश्न खड़ा होता है। भारत दृढ़ता से बहुपक्षवाद के लिए प्रतिबद्ध है और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों को बरकरार रखता है। हम सदैव बातचीत और कूटनीति को एकमात्र उपाय मानते हैं। हमने जब आज के प्रस्ताव में दिए गए उद्देश्य पर ध्यान दिया, तब स्थायी शांति प्राप्ति करने के अपने लक्ष्य तक पहुंचने में इसकी सीमा को देखते हुए हम इस मतदान से स्वयं को दूर रखने के लिए मजबूर हो गए”।
ऐसे में अमेरिका जी 20 में अन्य देशों के माध्यम से दबाव बनाना चाहता है, ताकि कैसे भी करके रूस को वैश्विक पटल पर अलग-थलग किया जा सके।
शायद इसी को पहले ही भाँपते हुए संयुक्त राष्ट्र की महासभा में रुचिरा कंबोज ने कहा, “भारत, यूक्रेन की स्थिति को लेकर चिंतित है, जहां संघर्ष के कारण अनगिनत लोगों की जान चली गई, इसका दुख है- विशेषकर महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के लिए। लाखों लोग बेघर हो गए और पड़ोसी देशों में शरण लेने के लिए मजबूर हो गए। हमने लगातार इस बात की वकालत की है कि मानव जीवन की कीमत पर कभी भी कोई समाधान नहीं निकाला जा सकता है। हमारे प्रधानमंत्री का यह कथन कि यह युद्ध का युग नहीं हो सकता है, दोहराए जाने योग्य है। शत्रुता और हिंसा का बढ़ना किसी के हित में नहीं है, इसके बजाय बातचीत और कूटनीति के रास्ते पर तत्काल वापसी ही आगे का रास्ता है”।
इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत विश्व का इकलौता ऐसा राष्ट्र है जो दोनों देशों के बीच शांति करवा सकता है और दोनों देशों को बातचीत की पटरी पर ला सकता है। इसलिए भारत का रूस के विरुद्ध हुई इस वोटिंग से बाहर रहना बिल्कुल सही था- क्योंकि यदि भारत वोटिंग करता तो वो भी एक पक्ष में खड़ा दिखता।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि मध्य एशिया की यात्रा कर एंटनी ब्लिंकेन ने वही किया, जिसका अंदेशा काफी पूर्व से ही लगाया जा रहा था, ऐसे में अब देखना होगा कि अपनी अध्यक्षता में भारत अमेरिकी की चालों का कैसे काट निकालता है।
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