भारत के इतिहास को शुरू से ही तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता रहा है ताकि भारत की आने वाली पीढ़ी अपने गौरवशाली इतिहास को भुला कर पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करना शुरू कर दे। और इस दिशा में भारत पर 200 साल तक राज करने वाले अंग्रेजों ने कई कदम उठाए। अंग्रेजों ने भारत के इतिहास में फेरबदल कर ऐसा दिखाने की कोशिश की मानो ‘अलेक्जेंडर द ग्रेट’ से पहले भारत में कुछ था ही नहीं और भारत में सभ्यता को वही लेकर आया। ऐसा ही कुछ हिंदुओं के महाकाव्य ग्रंथ रामायण और महाभारत के साथ किया गया। अलग-अलग एजेंडावादी इतिहासकारों ने अपने घरेलू अनुसंधान के माध्यम से रामायण को मात्र एक कहानी की तरह प्रस्तुत करने की पूरी कोशिश की। हालांकि, सत्य परेशान तो हो सकता है लेकिन पराजय नहीं।
दरअसल, रामायण मात्र एक कहानी नहीं है, बल्कि इसका संबंध हमें एशिया की अलग-अलग सभ्यताओं में भी देखने को मिलता है। उदाहरण के तौर पर अभी कुछ दिनों पहले ही इराक के बेलूला दर्रे में भगवान राम की तस्वीर के वास्तविक साक्ष्य मिले हैं। उस जगह भित्ति (एक चट्टान के टुकड़े) के बारे में ऐसा कहा जा रहा है कि उस भित्ति में भगवान राम की तस्वीर दिखाई दे रही है। हाल ही में इराक गए भारत के एक प्रतिनिधिमंडन ने भी इस बात की पुष्टि की है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भित्ति को दरबंद-ए-बेलुला दीवार में ढाला गया है, जो इराक के होरेन शेखान क्षेत्र में एक संकरे रास्ते से गुजरता है। उस छवि में खुले सीने वाले एक राजा को हाथ में धनुष लिए देखा गया है, उनके एक तरफ बाणों का तरकस और उनकी कमरबंद में एक खंजर या छोटी तलवार है, उनके साथ एक व्यक्ति हाथ जोड़े उनके पास बैठा है, यह तस्वीर हनुमान जैसी दिखाई दे रही है। इन तस्वीरों को 4500 से 6000 साल पुराना बताया जा रहा है।
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भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्हें तो कभी ये लगा ही नहीं कि रामायण मात्र एक कहानी है। उन्होंने कहा ‘यह सच है और रामसेतु इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। रामसेतु मानव निर्मित है और उस समय भगवान राम के अलावा इसे और कोई ना तो बना सकता था और ना किसी के पास इसे बनाने की कोई वजह थी। वो धनुषकोडी गए और श्रीलंका जाने के लिए उन्होंने इस रास्ते को अपनाया। भारतीय सभ्यता कम से कम 15 हज़ार साल पुरानी है और जैसे जैसे आधुनिक विज्ञान तरक्की करेगा, वैसे-वैसे हमें इतिहास के और साक्ष्य जुटाने में सफलता मिलेगी’।
रामायण की सत्यता का सबसे बड़ा सबूत स्वयं रामसेतु है, जिसे सदियों तक अंग्रेजों से प्रभावित इतिहासकारों ने प्राकृतिक बताने की कोशिश की। हालांकि, अब विज्ञान भी इस बात को मान चुका है कि रामसेतु मानव निर्मित है। पिछले वर्ष ही दिसंबर में साइंस चैनल ने एक अध्ययन प्रकाशित किया था जिसमें यह बात कही गई थी कि रामसेतु मानवनिर्मित है क्योंकि वहां पर 4 हज़ार साल पुरानी चट्टानें और 7 हज़ार साल पुरानी चट्टानें एक साथ पड़ी हुई है, जो कि बिल्कुल भी सामान्य नहीं है। इस अध्ययन में इस बात की तरफ इशारा किया गया था कि ये चट्टानें मानवों द्वारा समुद्र के इस हिस्से में लाई गई होगी।
इसके अलावा रामायण में भगवान राम के वनवास से संबन्धित ऐसे छोटे-छोटे साम्राज्यों का उल्लेख किया गया है जिनका हमने वास्तविक जीवन में नाम तक नहीं सुना होगा। भगवान राम ने अपना अधिकतर सफर जंगलों के रास्ते किया था और जिन जगह के नामों को रामायण में अंकित किया गया है, ठीक उन्हीं नामों का उल्लेख हमें उस समय के बुद्ध और जैन पौराणिक ग्रन्थों में भी देखने को मिलता है। इतिहासकार मानते हैं कि रामायण तो इन पौराणिक ग्रन्थों से कई शताब्दियों पहले लिखे जा चुके थे।
भारत का इतिहास गौरवशाली रहा है और भारतीय सभ्यता पश्चिमी सभ्यता से कहीं ज़्यादा प्राचीन और आधुनिक थी। इतिहास में भारतीय उपदेशक एशिया के अलग-अलग देशों में जाकर हिन्दू महाकाव्यों के उपदेश दिया करते थे, और यही कारण है कि आज इराक जैसे देशों से हिंदुओं के भगवान राम से संबन्धित मूर्तियाँ मिल रही हैं। अंग्रेज़ो के शासन में भारत के इतिहास के साथ बड़े पैमाने पर फेरबदल किया गया और अंग्रेजों ने अपने इतिहास को हम पर थोपकर भारतीय सभ्यता को नीचा दिखाने कि कोशिश की। हमें उम्मीद हैं कि भविष्य में जैसे-जैसे आधुनिक विज्ञान उन्नति करेगा, वैसे-वैसे एजेंडावादी इतिहासकारों की पोल खुलती रहेगी और भारत की नई पीढ़ी को अपने गौरवशाली इतिहास की सत्यता का आभास होगा।