‘जिन्ना टावर’ गुंटूर : विश्वास करिए, वो तो सनातन संस्कृति के शौर्य और संस्कार हैं, जिन्होंने आपके अंदर मानवता के उच्च आदर्शों और अपनी संस्कृति के प्रति प्रेम को जिंदा रखा। वरना इस समस्त विश्व में ऐसी कोई कौम, समुदाय, धर्म या राष्ट्र नहीं है, जो सतत इस्लामी आक्रमण, धर्मांतरण, अंग्रेजी हुकूमत और स्वयं के विखंडन के बावजूद अनंत काल से अविजित रहा हो। जितने सालों के यह धर्म हुए, उससे अधिक सालों से तो सनातन इनसे सतत संघर्षरत है, बिल्कुल क्षत-विक्षत-लथपथ और इनके हृदय परिवर्तन हेतु प्रतीक्षारत। हृदय परिवर्तन तो नहीं हुआ, परंतु इस्लामी धर्मांधता के आग में जलते हुए और सत्ता के लोभ में पड़े हुए कुछ कमजोर लोगों ने राष्ट्र-विखंडन कर दिया।
अपने निजी स्वार्थ हेतु इन लोगों ने नृशंसता और नरसंहार का नग्न नृत्य किया! फिर एक महात्मा जी आएं, उन्होंने अपने अहिंसा के मिथ्या जाल से इसे पवित्र करने की कोशिश की, जिसके बाद ललित, छलित और दिग्भ्रमित भारत ने पुनः कलुषित नेताओं को अपना नायक चुना! आपने विश्व में ऐसा उदाहरण अन्यत्र कहीं नहीं देखा होगा, जहां के लोग मातृभूमि को अपमानित करने वाले लोगों को नायक के रूप में पूजते हो, चाहे वो बाबर हो या जिन्ना। इसे हीनता कहें या अज्ञानता, इसे आपको स्वयं समझना होगा।
हो सकता है यह वामपंथियों द्वारा ऐतिहासिक विकृतिकरण हो या फिर द्विचित प्रवृति के नेताओं द्वारा आपके दुर्बलता का प्रस्तुतीकरण। कारण चाहे जो भी हो लेकिन इस पक्ष से सभी मतैक्यता है कि हमारे देश में यत्र-तत्र-सर्वत्र ऐसे लोगों का महिमामंडन किया गया है, जिन्होंने हमारे पुरखों, हमारी मातृभूमि, हमारी संस्कृति और हमारे धर्म को अपमानित किया है। इस कारण अब हमें अपमानित होते रहने की आदत पड़ चुकी है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भगत सिंह और महाराजा रणजीत सिंह जैसे ऐतिहासिक नायकों की मूर्तियां तोड़ने वाले पाकिस्तान के पितामह की प्रतिमूर्ति बड़ी शान से आंध्र प्रदेश के गुंटूर में खड़ी है।
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गांधी रोड पर स्थित है जिन्ना टावर
26 दिसंबर 2017 को @Govtof Pakistan कि और से एक ट्वीट किया गया। ट्वीट था- “जिन्ना टावर आंध्र प्रदेश के गुंटूर शहर में एक ऐतिहासिक स्मारक है। इसका नाम पाकिस्तान के पिता मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर रखा गया है और यह शहर के महात्मा गांधी रोड पर शांति और सद्भाव के प्रतीक के रूप में स्थित है।” जी हां, आंध्र प्रदेश के गुंटूर में पाकिस्तान के संस्थापक को समर्पित एक स्मारक जिन्ना टावर स्थित है। इस लैंडमार्क को जानबूझकर शांति और सद्भाव के प्रतीक के रूप में शहर की मुख्य क्षेत्र महात्मा गांधी रोड पर स्थापित किया गया है!
#Jinnah Tower is a landmark monument in the city of #Guntur in Andhra Pradesh. It is named after the father of #Pakistan, Muhammad Ali Jinnah and is located on Mahatma Gandhi Road of the city as a symbol of peace and harmony. 🇵🇰 🇮🇳#QuaidEAzam #JinnahKaPakistan pic.twitter.com/GxZEtyaAE8
— Government of Pakistan (@GovtofPakistan) December 26, 2017
इसकी उत्पत्ति के बारे में एक कहानी यह है कि जिन्ना के प्रतिनिधि लियाकत अली खान ने स्वतंत्रता पूर्व युग में गुंटूर का दौरा किया था। खान का अभिनंदन तेलुगू देशम पार्टी के वर्तमान राज्यसभा सदस्य एस.एम. लाल जन बाशा के दादा लाल जन बाशा ने किया। उन्होंने ही इस मुस्लिम लीग के नेता के सम्मान में एक टावर बनवाया, जिसे कालांतर में “जिन्ना टावर” के नाम से जाना गया। टावर को छह खंभों पर खड़ा किया गया। इसे बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में प्रचलित मुस्लिम वास्तुकला के अनुरूप बनाया गया है।
एक अन्य कहानी के अनुसार यह कुकृत्य दो नगर अध्यक्ष नदीमपल्ली नरसिम्हा राव और तेलकुला जलैया द्वारा तथाकथित शांति और सद्भाव के प्रतीक के रूप में अपने अपने कार्यकाल में मिलकर बनवाया गया।
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निष्कर्ष
इस प्रतिमा से जुड़े सारे प्रश्न प्रासंगिक हैं, जैसे इस प्रतिमूर्ति का निर्माण किसने करवाया? क्यों करवाया? किन कारणों से यह आज भी खड़ा है और क्यों इसे शीघ्रताशीघ्र ध्वस्त कर देना चाहिए? क्योंकि यहीं प्रश्न आपके राष्ट्रवाद को परिष्कृत करेंगे और इस पुनीत विचारधारा को संक्रमित करने वाले वामपंथी और इस्लामिक विषाणुओं से आपका परिचय करवाएंगे। अब सत्य सुनिए, जिन्ना सिर्फ एक नृशंस और क्रूर मुस्लिम राजनेता थे। वह पूर्णत: पाश्चात्य संस्कृति से ना सिर्फ प्रभावित थे, बल्कि उसी की गोद में पल्लवित हुए थे। वह पोर्क भी खाते थे। परंतु, सत्ता प्राप्ति हेतु उन्होंने इस्लाम का भरपूर उपयोग किया। उन्होंने धर्म प्रायोजित नृशंस नरसंहार करवाए।
दूसरी ओर हमारे देश के एक राजनेता सत्ता हेतु बड़े ही व्याकुल थे, अतः वह चुपचाप सहते चले गए और मोहनदास करमचंद गांधी ने अपने गलत उपदेशों से इन दोनों का तथाकथित ऐतिहासिक शुद्धिकरण किया! जिन्ना टावर ऐतिहासिक विकृतिकरण का प्रत्यक्ष प्रस्तुतीकरण है। इस बात पर कुछ भी कहना सोचना और और निष्कर्ष निकालना बिल्कुल निरर्थक और लज्जाजनक है। यह आपकी हीनता और संस्कृति की अस्पष्टता को दर्शाता है। कम से कम स्वयं के सम्मान के लिए नहीं, तो राष्ट्र अस्मिता के लिए इसे तात्कालिक रूप से ध्वस्त कर देना चाहिए और जनता से इस ऐतिहासिक विकृतिकरण के लिए क्षमा माननी चाहिए।
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