रामचरितमानस की भाषा क्या है?
हिन्दुओं के लिए रामचरितमानस एक महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं. रामचरितमानस को गोस्वामी तुलसीदास जी ने रचित किया था. रामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा 15वीं सदी में रचित की गई. इस ग्रन्थ को अवधी साहित्य (हिंदी साहित्य) की एक महान कृति माना जाता है. रामचरितमानस की भाषा क्या है? इस पर विद्वानों में मतभेद है कोई इसे अवधी मानता है तो कोई भोजपुरी.
गोस्वामी जी ने रामचरित का अनुपम शैली में दोहों, चौपाइयों, सोरठों तथा छंद का आश्रय लेकर वर्णन किया है. यह अवधी भाषा में रचा गया एक ग्रंथ है. इसमें 9388 चौपाइयां 1172 दोहे, 87 सोरठे, 47 श्लोक और 208 छंद हैं. जिनकी संख्या कुल मिलाकर 10902 है. पुस्तक मानवतावादी गुणों और मानवीय धर्मो से जुडी हुई है.
गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस की लोकप्रियता अद्वितीय है, रामचरितमानस की भाषा क्या है इसके बारे में विद्वान एकमत नहीं हैं. कोई इसे अवधी मानता है तो कोई भोजपुरी. कुछ लोक मानस की भाषा अवधी और भोजपुरी की मिलीजुली भाषा मानते हैं.
बुंदेली मानने वालों की संख्या
मानस की भाषा बुंदेली मानने वालों की संख्या भी कम नहीं है. तुलसीदास जी ने भाषा को नया स्वरूप दिया. तुलसीदास जी भाषा के प्रगाढ़ विद्वान थे. रामचरितमानस की प्रमुख भाषा अवधि हैं. जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ हैं. भाषा भावपूर्ण एवं भावों की अभिव्यक्ति करने में सक्षम हैं.
मानस में संस्कृत, फारसी और उर्दू के शब्दों की भरमार है. प्रकाशन विभाग द्वारा सन 1978 में प्रकाशित पुस्तक ‘रामायाण, महाभारत एंड भागवत राइटर्स’ के पृष्ठ 110 पर मदन गोपाल ने रामचरितमानस की भाषा में के बारे में लिखते हुए कहा कि तुलसीदास जी अवधी और ब्रज भाषा में बराबर निष्णात थे.
उन्होंने लगभग 90,000 संस्कृत शब्दों को गाँवों में प्रचलित किया, जबकि 40,000 देसी शब्दों को पढ़े-लिखे लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया. चित्रकूट स्थित अंतरराष्ट्रीय मानस अनुसंधान केन्द्र के प्रमुख स्वामी रामभद्राचार्य ने रामचरितमानस का सम्पादन किया हैं. ग्रंथ की भूमिका में स्वामीजी ने रामचरितमानस की आज कल उपलब्ध प्रतियों की भाषा के बारे में कई मौलिक प्रश्न उठाए हैं. इन्हीं के आधार पर उन्होंने अपने संशोधनों का औचित्य भी प्रतिपादित किया है.
और पढ़े: Brihaspati Stotra -गुरुवार व्रत का क्या है महत्त्व और कैसे करे पूजा
रामचरितमानस की भाषा क्या है? स्वामी रामभद्राचार्य जी के विचार
स्वामी रामभद्राचार्य जी ने लिखा है कि रामचरितमानस के वर्तमान संस्करणों में कर्तृवाचक उकार शब्दों की बहुलता हैं. स्वामी रामभद्राचार्य जी ने इसे अवधी भाषा की प्रकृति के विरुद्ध बताया है. इसी प्रकार उन्होंने उकार को कर्मवाचक शब्द का चिन्ह मानना भी अवधी भाषा के विपरीत बताया है.
स्वामी रामभद्राचार्य जी अनुनासिकों को विभक्ति को द्योतक मानने को भी असंगत बताते हैं- ‘जब तें राम ब्याहि घर आये’. कुछ अपवादों को छोड़कर अनावश्यक उकारांत कर्तृवाचक शब्दों के प्रयोग को स्वामी रामभद्राचार्य ने अवधी भाषा के विरुद्ध बताया है.
तुलसीदास जी ने अवधी और ब्रज भाषा के मिले-जुले स्वरूप को प्रचलित किया. इसके साथ ही उन्होंने फारसी और अन्य भाषाओं के हजारो शब्दों का प्रयोग किया. तुलसीदास ने संज्ञाओं का प्रयोग क्रिया के रूप में किया तथा क्रियाओं का प्रयोग संज्ञा के रूप में. इस प्रकार के प्रयोगों के उदाहरण बिरले ही मिलते हैं. भाषा एवं शब्द भावों के अनुरूप हैं.
जहाँ वैसा भाव व्यक्त करना होता हैं, वहां महाकवि उसके अनुकूल ही शब्द प्रयुक्त करते हैं. उनकी भाषा की यह विशेषता हैं कि वह भाव और प्रसंग के अनुरूप कठोर या कोमल होती जाती हैं.
रामचरितमानस में सात कांड है. जिसमे बालकाण्ड,अयोध्याकाण्ड,अरण्यकाण्ड,लंका कांड, सुंदर कांड तथा उतर काण्ड सम्मलित है. जिसमे सभी कांड में तुलसीदास जी ने अपने भाव प्रकट किये है.यह तुलसीदास जी की सर्वोत्कृष्ट रचना हैं जिसने तुलसीदास जी को सदा के लिए अमर बना दिया हैं. यह हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ तथा अद्वितीय ग्रंथ माना जाता हैं.भाव, भाषा, प्रबंध कौशल, छंद, अलंकार योजना, रचना कौशल आदि सभी दृष्टियों से रामचरितमानस हिंदी साहित्य का अद्वितीय ग्रंथ हैं. इस महाकाव्य की संसार की किसी भी भाषा के सर्वश्रेष्ठ काव्य के साथ तुलना की जा सकती हैं.
और पढ़े: 1 Shlok Ramayan- एक श्लोक रामायण में समाहित है रामायण का सार