विश्व आज रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच पिस रहा है। इस युद्ध ने वैश्विक स्तर पर आर्थिक और भौगोलिक हानि तो पहुंचायी ही है साथ ही यह भी दर्शा दिया कि खुद को विश्व का शक्तिशाली देश कहने वाले अमेरिका की ताकत खोखली है। यहां तक कि इस युद्ध ने पश्चिमी देशों को भी उनकी औकात दिखा दी है। अमेरिका और पश्चिम देश जब यूक्रेन के समर्थन में डींगे हांक रहे थे तब रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने युद्ध में अपनी पूरी ताकत झोंक दी और पश्चिमी देश सहित अमेरिका को भी धमकी दे दी कि अगर वो यूक्रेन की मदद करने के लिए आगे आता है तो यह युद्ध परमाणु स्तर पर चला जाएगा, यहां तक कि रूस अपनी रक्षा के लिए किसी को नहीं छोड़ेगा। फिर क्या था पश्चिमी देश और अमेरिका ने पूरी तरह आपने पांव पीछे कर लिए। इनकी ऐसी हालत हो गयी कि अब वो खुल कर भी इस युद्ध में ज्यादा कुछ नहीं बोल पा रहे है। और जब ये देश चारों तरफ से लज्जित हो गए तो बड़ी ही चालाकि से इस मामले को कूटनीतिक स्तर से सुलझाने के प्रयास करने लगे। इन देशों ने अपनी वैश्विक इज्जत बचाने के लिए उस देश को चुना जो की विश्व स्तर पर अपने लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए जाना जाता है।
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भारत रूस के खिलाफ नहीं जाने वाला
जी हां हम बात कर रहे हैं भारत की जो आज वैश्विक स्तर पर एक ऐसा देश है जिसे हर देश अपने पाले में लाना चाहता है। ऐसा क्यों -चलिए आपको विस्तार से समझाते हैं। दरअसल इस रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत में ही पश्चिम देशों को यह पता चल गया था कि भारत अपने सबसे करीबी और विश्वसनीय मित्र रूस के खिलाफ नहीं जाने वाला और हुआ भी ऐसा ही। भारत ने विश्व पटल पर UN में बार-बार रूस के खिलाफ वोट करने से इंकार कर दिया और दोनों देशों को शांति से मामला सुलझाने की बात कहता रहा जिसके बाद पश्चिम देशों का भारत के विरुद्ध भौंएं चढ़ गयी लेकिन अब ये पश्चिम देश बेचारे भला क्या हीं करते एक तो रूस ने उनकी जगहंसाई पहले ही कर दी थी इसलिए पहले वो भारत को धमकाने का प्रयास करते रहे पर भारत ने साफ शब्दों में पश्चिम देशों को हड़का दिया और कहा कि भारत विश्व का शक्तिशाली देश है और वो अपने फैसले खुद लेने में सक्षम है। इसके बाद अमेरिका और पश्चिम देश की सारी हेकड़ी निकल गयी और फिर वो भारत को मनाने में जुट गया। इसी क्रम में अमेरिका भारत के लिए सुरक्षा संबंध मजबूत करने और रूसी हथियारों पर देश की निर्भरता कम करने के लिए सैन्य सहायता पैकेज तैयार कर रहा है।
विचाराधीन पैकेज के अनुसार 500 मिलियन डॉलर का विदेशी सैन्य वित्तपोषण शामिल होगा, जो भारत को इजरायल और मिस्र के बाद इस तरह की सहायता प्राप्त करने वाले सबसे बड़े प्राप्तकर्ताओं में से एक बना देगा। पर अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि सौदे की घोषणा कब की जाएगी या इसमें कौन से हथियार शामिल होंगे। वहीं एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी के अनुसार, यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की आलोचना करने की अनिच्छा के बावजूद यह प्रयास राष्ट्रपति जो बिडेन के प्रशासन द्वारा भारत को एक दीर्घकालिक सुरक्षा भागीदार के रूप में पेश करने के लिए एक बहुत बड़ी पहल का हिस्सा है। अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि वाशिंगटन पूरे भारत के लिए एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में देखा जाना चाहता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के पास आवश्यक उपकरण हैं। अधिकारी ने कहा कि भारत पहले से ही रूस से दूर अपने सैन्य प्लेटफार्मों में विविधता ला रहा है लेकिन अमेरिका इसे तेजी से करने में मदद करना चाहता है।
यहां ध्यान देने वाली बात ये हैं कि अमेरिका रक्षा सौदे को आगे करके भारत को रूस से दूर करना चाहता है पर भारत अमेरिका की सारी चालांकी जानता है और वो अपने मित्र देश रूस को कभी साथ नहीं छोड़ेगा। ज्ञात हो कि भारत रूसी हथियारों का दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार है, हालांकि इसने हाल के दिनों में उस रिश्ते को कम कर दिया है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, पिछले एक दशक में भारत ने अमेरिका से $4 बिलियन से अधिक मूल्य के सैन्य उपकरण और रूस से $25 बिलियन से अधिक मूल्य के खरीदे हैं।
चीन और पाकिस्तान के विरुद्ध हथियारों के लिए रूस पर भारत की निर्भरता एक बड़ी वजह है कि मोदी सरकार यूक्रेन में युद्ध को लेकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आलोचना करने से बचती रही है. जैसे ही अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए पर भारत ने अपना कड़ा रुख जारी रखा और बता दिया कि यहां कोई धमकी नहीं चलने वाली।
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एक और घटना ने लोगों का ध्यान खींचा है
यहां एक और घटना ने वैश्विक स्तर पर लोगों का ध्यान खींचा है और वो हैं भारत का कट्टर प्रतिद्वंदी चीन का भारत के पक्ष में बोलना। गेहूं के निर्यात को विनियमित करने के फैसले पर जी7 की आलोचना के बाद चीन रविवार को भारत के बचाव में आया और चीन ने साफ़ कहा कि भारत जैसे विकासशील देशों को दोष देने से वैश्विक खाद्य संकट का समाधान नहीं होगा। दरअसल पिछले हफ्ते भारत सरकार ने अपने निर्यात को “निषिद्ध” श्रेणी के तहत रखकर गेहूं की निर्यात नीति में संशोधन किया। वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि सरकार ने “तत्काल प्रभाव” से गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। चीन का भारत के पक्ष में बोलना कोई चमत्कार नहीं है बल्कि देश की मोदी सरकार की कूटनीतिक जीत है जिसके बाद से चीन को भारत का साथ देना पड़ रहा है। यही नहीं चीन भी अच्छे से जानता है कि आज भारत को अपने पाले में करने के लिए पश्चिम देश सहित अमेरिका डोरे डाल रहा है।
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि, मध्य एशिया में भारत, चीन, पाकिस्तान और अन्य एससीओ सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल सोमवार को विभिन्न क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों, विशेष रूप से अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति से निपटने में सहयोग बढ़ाने के लिए एकत्र हुए हैं और ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि, एससीओ शिखर सम्मेलन का आयोजन कर भारत अफगानिस्तान के मुद्दे पर अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है, जो एशिया में शांति की दिशा में बढ़ने का एक संकेत है।
चीन को भी समझ आ चूका है कि अमेरिका और पश्चिम देश की प्रतिष्ठित NATO की शक्ति का मुकाबला करने के लिए एशिया में एक नया कॉरिडोर बनाया जा सकता है जिसमें चीन के साथ भारत और रूस साथ आ सकते हैं जिसके बाद पश्चिम देशों की खोखली शक्ति का अस्तित्व भी ख़त्म हो जाएगा वरना यह बात सभी को पता है चीन हमेशा से भारत के विरुद्ध विष उगलता आया है। कभी लद्दाख तो कभी कश्मीर मुद्दे को लेकर लेकिन मोदी सरकार ने चीन को भी झुका दिया।
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पश्चिम देश बहुत परेशान हैं
वहीं दूसरी तरफ पश्चिम देश इतने परेशान हैं कि अब ‘वैश्विक नाटो’ की बात छिड़कर इशारा दिया है कि पश्चिम देश अब एशिया में अपने पांव पसारना चाह रहे हैं। ब्रिटिश विदेश सचिव लिज़ ट्रस ने “वैश्विक नाटो” के निर्माण का आह्वान किया है। उनके अनुसार हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में सुरक्षा को नियंत्रित करने के लिए संगठन का विस्तार आवश्यक है।
इस घोषणा से एशियाई देश भी सतर्क हो गये हैं और वो समझ चुके हैं कि पश्चिम देश अब इंडो पैसिफिक को युद्ध का अड्डा बनाना चाहता है और इसके लिए भारत की उसे सबसे अधिक आवश्यकता है, उनका मुख्य उद्देश्य है भारत को नाटो में शामिल करके एशिया में अपनी पैठ जमाना लेकिन भारत सब समझता है वो आज इतना ताकतवर है कि वो किसी भी देश से अकेले लड़ सकता है और हरा सकता है। आज भारत ONE MAN ARMY हो चूका है जिसे हर देश अपने साथ रखना चाहता है और अमेरिका और चीन भी इसी फिराक में लगे हैं पर भारत पहले भी कह चूका है कि वो अपना फैसला खुद लेना जानता है और वो हर वैश्विक मोर्चे पर सक्षम है चाहे वो रक्षा क्षेत्र हो या फिर कूटनीति या फिर आर्थिक इन सभी क्षेत्रों में भारत का विश्व में कोई सानी नहीं है।