भारत और चीन के संबंध अच्छे नहीं हैं। हमेशा किसी न किसी मुद्दे को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति पैदा होती रहती हैं। जिसमें पहले अपनी गंदी हरकत चीन दिखाता हैं फिर भारत अपना पलटवार करता हैं। चीन हमेशा कुछ न कुछ ऐसी हिमाकत करता रहता है। जिसके कारण दोनों देशों के बीच कभी भी रिश्ते समान्य नहीं हो पाते। चीन को हमेशा भारत के हर एक मुद्दे पर अड़ंगा डालना रहता है चाहे वो कश्मीर का मुद्दा हो या भारत-पाकिस्तान के बीच के रिश्ते।
चीन अपने सैनिकों द्वारा लद्दाख में लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) में घुसपैठ कराने की कोशिशों से भी बाज नहीं आता हैं। परन्तु चीन अपने गिरेबान में कभी नहीं झांकता कि कैसे उसने ताइवान पर अपना अधिकार बनाने की ठानी हुई है। इसके लिए वो किसी भी हद तक गिरने को तैयार हैं। चीन कैसे भी ताइवान को अपने अधीन करना चाहता है। लेकिन अब समय आ गया है कि भारत चीन को उसकी भाषा में ही मुहतोड़ जवाब दें, जिससे उसकी एशिया समेत पूरी दुनिया में तीस मार खां बनने वाली तिकड़मबाजी छूट जाएं। आज के पोस्ट में हम आपको बताएंगे कि कैसे भारत अपने तीन बड़े इक्के से चीन को चारों खाने चित कर सकता है।
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चीन और ताइवान विवाद में भारत का फ़ायदा
बीते कुछ दिनों में चीन और ताइवान में तनाव की स्थिति पैदा हो चुकी है। दोनों देशों में कब युद्ध हो जाएं कोई नहीं जानता। भारत के लिए यह सही मौका है कि ताइवान से भारत अच्छे संबंध स्थापित करें। चीन ताइवान के साथ अपनी ताक़त दिखा कर सरासर गलत कर रहा है। इस समय भारत को चाहिए कि ताइवान का पक्ष लेकर चीन को उसी तरह घेरे जैसे चीन कश्मीर का मुद्दा उठाता रहता है और पाकिस्तान को विक्टिम बनाने में लगा रहता है। अगर व्यापार की दृष्टि से देखें तो 2000 में, भारत-ताइवान व्यापार केवल $1 बिलियन था।
जबकि 2019 में $7.5 बिलियन था। 2017-18 और 2018-19 के बीच, ताइवान एफडीआई भारत में 10 गुना ऊपर चला गया था। मार्च 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, 200 ताइवानी कंपनियां भारत में काम कर रही थीं। ये कंपनियां इलेक्ट्रॉनिक्स, निर्माण, पेट्रोकेमिकल, मशीनें, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, ऑटो पार्ट्स की थी। अभी भारत और ताइवान में मुक्त व्यापार समझौते की बातचीत चल रही है। भारत को ताइवान के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने की जरूरत है। भारत और ताइवान के हर मोर्चे पर बेहतर संबंध से चीन बौखला जाएगा।
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चीन की कर्ज-जाल कूटनीति से सारे देश सतर्क
चीनी विस्तारवादी पंख आर्थिक क्षेत्र में भी फैले हुए है। देश अब समझने लगें हैं कि चीनी कैसे कर्ज का जाल कैसा बिछाता हैं। ये जग जाहिर है कि कैसे चीन ने श्रीलंका और पाकिस्तान को कर्ज दे-दे कर बर्बाद कर दिया और अपना दास बना लिया। इधर भारत भी एक उद्धारकर्ता के रूप में उभर रहा है। हाल के वर्षों में भारत ने बहुत से देशों की आर्थिक मदद की हैं। वर्तमान में, भारत ने एक्ज़िम बैंक के माध्यम से कुल 65 देशों में विस्तार किया है। भारत ने इन देशों को 30.59 अरब डॉलर का आवंटन किया है। भारत के 50 प्रतिशत से अधिक एलओसी को एशियाई देशों में बढ़ा दिया गया है। भारत की इस नई पहल से चीन को अपनी कर्ज-जाल कूटनीति पर खतरा मंडराता दिख रहा हैं। इन देशों में बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, मॉरीशस, मालदीव, म्यांमार और सेशेल्स शामिल हैं।
BRI की जगह अब INSTC
चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएवटिव (BRI) के जवाब के तौर पर देखा जाना वाला अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) फंक्शनल हो गया है। INSTC ने अपना काम पहले ही शुरू कर दिया है। अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) ने कैरिज लागत में 30 प्रतिशत से अधिक की कमी की है। जबकि पारगमन समय को घटाकर 20 दिन कर दिया गया है, जो 40 दिन का था पहले। भारत और रूस इस मार्ग के दो व्यापक छोर हैं। दोनों देशों ने 2025 तक द्विपक्षीय व्यापार को 30 अरब डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। 13 देश जो INSTC के रास्ते में पड़ते हैं, उनका बढ़ना भी तय हैं। ये कई अनुपातों में एक बहुपक्षीय व्यापार हैं। उन्हीं में से एक देश है ईरान। INSTC एक चाभी है, जिसकी मदद से ईरान भारत के पक्ष में आ सकता है।
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वैसे ही गलवान में भारत चीन को पहले ही दिखा चुका है कि उसके पीएलए का कोई मुकाबला नहीं है। जिसकी वजह से ही चीन की जिनपिंग सरकार को आर्थिक और राजनीतिक मोर्चे पर भारी नुकसान झेलने को मिला था। ताइवान चीन के लिए बची प्रतिष्ठा का आखिरी मुद्दा हैं और अब तो अमेरिका भी इसमें हस्तक्षेप करने लगा है। इसीलिए चीन को फिलहाल भारत से सतर्क रहने की ज़रूरत हैं। क्योंकि भारत कोई पाकिस्तान और श्रीलंका नहीं जो चीन के सामने नतमस्तक हो जाएगा।
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