तो दस बार छींककर, गर्मी, वर्षा और अब हिमपात झेलकर भाजपा के “स्टार प्रचारक” [और कांग्रेस के अघोषित प्रधान] राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की हाफ टीशर्ट में बहुचर्चित “भारत जोड़ो यात्रा” अब समाप्त हो चुकी है। भाजपा की अति लोकप्रिय “एकता यात्रा” की नकल मारते हुए राहुल गांधी निकल पड़े “भारत जोड़ो यात्रा” पर, जिसमें उनके लिए न तो बिहार का कोई अस्तित्व है, न पूर्वोत्तर का। खैर, सितंबर 2022 में प्रारंभ हुए इस विशुद्ध राजनीतिक अभियान के बारे में लोगों के मन में कई शंकाएं हैं, जिनका समाधान निकालना हमारा सर्वप्रथम कर्तव्य है!
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Rahul Gandhi की भारत जोड़ो यात्रा का सार
तो सर्वप्रथम, “भारत जोड़ो यात्रा” का मूल उद्देश्य क्या था? अगर कांग्रेसी पांडुलिपियों का शोध करें, तो इस यात्रा के माध्यम से हमारे राहुल बाबा देश को “जोड़ने निकले थे” और लगे हाथों 2024 के लिए दावेदारी मजबूत करने निकले थे, जिसमें स्वादानुसार विपक्षी एकता भी थी। अब 2024 के लिए इनकी दावेदारी का तो पता नहीं, परंतु जब बात आती है “देश को जोड़ने” और विपक्षी एकता दिखाने की, तो यहां तो भैया ने अलग ही रिकॉर्ड बनाया है।
अब इस पर अलग चर्चा होगी और शायद अनंत काल तक होगी, पर राहुल भाई, सच में ये “भारत जोड़ो यात्रा” ही थी न? आप तो अब सलमान भाई को टक्कर देने लगे हैं! किसने कह दिया कि देश में बेरोज़गारी बढ़ रही है, जब तक राहुल बाबा और सलमान भाई जीवित हैं, देश में रोजगार की कमी न रहेगी, अब वो और बात है कि राहुल बाबा (Rahul Gandhi) ने अपने अंदर के “राहुल” को “मार दिया है”!
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कुछ इस तरह बढ़ा रोजगार
परंतु रोजगार कैसे बढ़ा? ध्यान से देखिए तो राहुल गांधी ने इस यात्रा से कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण है अपने चैनल पर सब्सक्राइबर्स की वृद्धि। परंतु केवल अपने ही चैनल पर ही नहीं, उन सभी लोगों के चैनलों का भी उद्धार किया है, जो या तो इनके परम भक्त हैं, या फिर इनके धुर विरोधी। इसी को कहते हैं, “सबका साथ, सबका विकास”।
वैसे “सबका साथ, सबका विकास” से स्मरण हुआ, “भारत जोड़ो यात्रा” के माध्यम से राहुल गांधी ने कैसों कैसों को सहारा दिया है। समदीश चचा को साइड करें, तो कुनाल कामरा, स्वरा भास्कर, जॉर्ज पोनैया, रघुराम राजन, अभिजीत बनर्जी, दीपक कपूर, यहां तक कि राकेश डकैत [क्षमा कीजिए, टिकैत, कभी-कभी गुस्से में इधर-उधर निकल जाता हूं] और योगेंद्र यादव को ही ले लीजिए, आप नाम लेते जाइए, और राहुल गांधी ने हर प्रकार के ‘देशभक्त’ और ‘समाजसेवी’ को अपनी यात्रा के साथ जोड़ने का काम किया। सही मायनों में भारतीय राजनीति के ‘सुल्तान’ हैं राहुल गांधी, क्या मतलब कि रॉकी भाई के “सुल्तान” गाने को कॉपी करने के लिए ये लगभग कोर्ट के द्वार तक आ पहुंचे थे?
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भद्दर ठंड और हाफ टीशर्ट
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) सच्चे मायनों में भारत की जड़ों से जुड़े हुए थे। भद्दर ठंड में भी हाफ टीशर्ट में उत्तरी भारत घूमना कोई मज़ाक नहीं है, और न ही उलटे हाथ से गन्ना चबाना। वैसे भी क्या दाढ़ी बनाई थी राहुल बाबा, देख लो तो ओशो, कार्ल मार्क्स और सद्दाम हुसैन तीनों एक साथ इनकी बलइयां लें। इसके अतिरिक्त राहुल बाबा नॉरिंदर मुदी (नरेंद्र मोदी) की तरह नहीं कि देश को “जोड़ने” के लिए देश के कोने-कोने में सुविधाएं पहुंचाने, जनसंपर्क बढ़ाने का पाप करेंगे, वे तो उन्हीं जगहों पर विचरण करेंगे, जहां “असली भारत” हो, चाहे वह तमिलनाडु हो, या फिर केरल।
हाँ, अपने कुछ सेवकों का मन रखने के लिए तेलंगाना, एमपी, और थोड़ा बहुत राजस्थान की खाक भी छान आते हैं, क्योंकि अपने प्रशंसकों को निराश न करना राहुल गांधी के डीएनए में है। परंतु एक प्रश्न तो स्वाभाविक है: कौन सा वाला राहुल गांधी? जिसे वे “मार चुके हैं”, या जो किसी प्रकार की ठंड से नहीं डरता?
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‘भरोसेमंद नेता’ Rahul Gandhi
राहुल गांधी इतने भरोसेमंद नेता हैं कि उनके एक आह्वान पर पूरा विपक्ष जुट जाए। विपक्ष में राहुल गांधी के प्रति इतनी श्रद्धा है, इतनी श्रद्धा है कि उनके आह्वान पर तेईस पार्टियों में से मात्र पंद्रह ही नहीं शामिल हुए। पर प्रशंसा करनी होगी उन दलों की, जिन्होंने इस मुश्किल समय में भी राहुल गांधी का साथ नहीं छोड़ा। खुद नहीं आए तो क्या, अपने प्रतिनिधि को तो भेजा इन्होंने। नीतीश बाबू ने तो अपनी पीएम दावेदारी की स्थाई दावेदारी तक इनके लिए छोड़ दी। इनका त्याग अनंत काल तक अमर रहेगा!
इतना ही नहीं, इस यात्रा के माध्यम से राहुल गांधी ने देशभक्ति के नये आयाम स्थापित किए हैं। देशभक्ति केवल तिरंगा लहराकर नहीं, अपितु देश के सैन्यबल की प्रतिबद्धता पर प्रश्न उठाकर, कड़कती ठंड में छोटे-छोटे बच्चों को अर्धनग्न करके ले चलने में, देश की मूल संस्कृति का उपहास उड़ाकर और देशविरोधी तत्वों को अपने साथ लाकर सिद्ध की जाती है। है कोई ऐसा अन्य अपने देश में? अरविन्द केजरीवाल टक्कर देने की सोच सकते हैं, परंतु राहुल गांधी के सुप्रीम कॉमिक टाइमिंग की बराबरी शायद ही वो कर पाएं!
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