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माधवराव देवड़े: जिनकी निष्ठा, समर्पण और संगठन क्षमता ने RSS के कार्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया

माधवराव की सम्पूर्ण शिक्षा नागपुर में हुई और छात्र जीवन के दौरान वे कुछ समय तक वामपंथी विचारधारा से भी प्रभावित रहे थे

TFI Desk द्वारा TFI Desk
8 March 2025
in इतिहास
संघ की शाखाओं में होने वाले अनुशासन, संस्कार और राष्ट्रसेवा के विचारों ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि माधवराव संघ के कार्यों में पूर्णतः रम गए

संघ की शाखाओं में होने वाले अनुशासन, संस्कार और राष्ट्रसेवा के विचारों ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि माधवराव संघ के कार्यों में पूर्णतः रम गए

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1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना की गई थी। उस समय भारत विदेशी शासन के अधीन था और देश में विभाजनकारी शक्तियां लोगों के बीच फूट डालने का काम कर रही थीं, ऐसी परिस्थितियों में राष्ट्र की मजबूती के लिए एक अनुशासित और संगठित समाज का निर्माण ज़रूरी था। इसी उद्देश्य के साथ RSS की नींव रखी गई थी। हेडगेवार ने अपनी कार्यशैली और राष्ट्र के प्रति समर्पण से युवाओं के एक बड़े वर्ग को प्रभावित किया था। ऐसे ही एक युवा थे माधवराव देवड़े, जिन्होंने संघ कार्य के विस्तार के लिए अपनी संपूर्ण जीवन दे दिया। बहुत युवावस्था में ही माधवराव देवड़े संघ के प्रथम सरसंघचालक और संस्थापक हेडगेवार के संपर्क में आ गए थे।

माधवराव का जन्म आज ही के दिन यानी 8 मार्च को 1922 में नागपुर में हुआ था। उनका परिवार एक अति साधारण परिवार था और एक मंदिर की पूजा अर्चना से उनके परिजनों की आजीविका चलती थी। जिस मंदिर में उनका परिवार पूजा करता था, वहीं उन्हें आवास भी मिला हुआ था। इस धार्मिक वातावरण का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा, जिससे उनके संस्कार बचपन से ही अनुशासन और सेवा-भावना से ओत-प्रोत रहे। यह मंदिर ‘देवमंदिर’ था और इससे जुड़े रहने के कारण उनके नाम के साथ ‘देवले’ गोत्र लग गया था, जो उत्तर प्रदेश में आकर ‘देवड़े’ हो गया।

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माधवराव की शिक्षा नागपुर में हुई और छात्र जीवन के दौरान वे कुछ समय तक वामपंथी विचारधारा से भी प्रभावित रहे थे। माधवराव की रुचि खेलकूद में थी और वे खूब कबड्डी खेला करते थे। उन दिनों संघ की शाखाएं लगनी शुरू हो गई थीं और उनमें खेल भी कराए जाते थे। एक बार जब माधवराव देवड़े गर्मियों की छुट्टियों में मामा के घर गए तो वहां लगने वाली शाखा में हो रही कबड्डी के आकर्षण से वह भी शाखा में शामिल हो गए। कहते हैं कि कबड्डी को लेकर उनका यह प्रेम हमेशा बना रहा था। वे संघ के बड़े अधिकारी बनने के बाद भी कबड्डी खेलने के लिए के मैदान में उतर आते थे।

RSS की शाखाओं में होने वाले अनुशासन, संस्कार और राष्ट्रसेवा के विचारों ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि वे संघ के कार्यों में पूर्णतः रम गए। जब वे नागपुर छुट्टियों के बाद नागपुर लौटे तो उन्होंने नागपुर की शाखा में जाना शुरू कर दिया था। माधवराव का परिवार आर्थिक रूप से संपन्न नहीं था। जब उनकी शिक्षा पूरी हुई, तो परिवार ने उन्हें नौकरी करने की सलाह दी। हालांकि, माधवराव संघ के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने का मन बना चुके थे। फिर भी घर की स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने नौकरी का विचार किया लेकिन जब नौकरी के लिए लगातार काम करने का अनुबंध करने की शर्त रखी गई, तो उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया और पूर्ण रूप से संघ की सेवा में समर्पित हो गए।

1942 का कालखंड भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। इस समय महात्मा गांधी के नेतृत्व में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ अपने चरम पर था, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम तुष्टीकरण भी खूब ज़ोरों-शोरों से चल रहा था। देश विभाजन की आशंका थी और इसी समय द्वितीय विश्व युद्ध के बादल भी विश्व के ऊपर मंडरा रहे थे। ऐसे कठिन समय में संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी (माधव सदाशिव गोलवलकर) ने युवाओं से राष्ट्रसेवा का आह्वान किया। युवा माधवराव देवड़े ने भी इस पुकार को सुना और स्वयं को पूरी तरह संघ के कार्यों में झोंक दिया। श्री गुरुजी ने उन्हें उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में भेज दिया।

उत्तर प्रदेश की भाषा, खान-पान और संस्कृति से अनजान होते हुए भी माधवराव ने पूरी निष्ठा और समर्पण से संघ का कार्य किया। उन्होंने कभी वापस लौटने का विचार नहीं किया और अपने कर्मक्षेत्र को ही अपना घर बना लिया। कई जिलों में कार्य करने के बाद 1968 में उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रांत प्रचारक नियुक्त किया गया। आपातकाल (1975-77) के दौरान जब RSS पर प्रतिबंध लगाया गया तब उन्होंने गुप्त रूप से संगठन को मजबूत बनाए रखने का कार्य किया। इसी दौरान उन्हें शाहबाद (रामपुर) में गिरफ्तार कर ‘मीसा’ (MISA) कानून के तहत जेल भेज दिया गया। आपातकाल की समाप्ति के बाद उनकी जिम्मेदारियां और बढ़ गईं और उन्हें उत्तर प्रदेश तथा बिहार का क्षेत्र प्रचारक बनाया गया।

माधवराव देवड़े की कार्यशैली की खास बात यह थी कि वे हर कार्यकर्ता की बात धैर्यपूर्वक सुनते और टालने के बजाय तुरंत उचित निर्णय लेते थे। उनकी विनम्रता, अनुशासन और दृढ़ निश्चय के कारण जो भी उनसे जुड़ा वह जीवनभर उनके प्रति निष्ठावान बना रहा। RSS के विस्तार और मजबूती के लिए उन्होंने अनगिनत प्रवास किए। मधुमेह जैसी बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद उन्होंने कभी अपने कार्य में कमी नहीं आने दी। उनका कद छोटा और शरीर हल्का था लेकिन संघ कार्य के प्रति उनकी ऊर्जा असीम थी।

धीरे-धीरे उम्र बढ़ने के साथ उन्हें प्रवास में कठिनाइयां होने लगी थीं इसके बाद 1995-96 में स्वास्थ्य कारणों से उन्हें विद्या भारती, उत्तर प्रदेश का संरक्षक नियुक्त कर दिया गया। इस भूमिका में रहते हुए उन्होंने संघ के शैक्षिक प्रकल्पों को नया आयाम दिया और अनेक विद्यालयों की स्थापना में योगदान दिया। 23 अगस्त 1998 को 77 वर्ष की आयु लखनऊ में  एक रात वह सोते-सोते ही चिरनिद्रा में लीन हो गए। संघ के लिए किए गए उनके कार्यों ने संगठन को मज़बूती दी थी।

स्रोत: माधवराव देवड़े, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, केशव बलिराम हेडगेवार, माधव सदाशिव गोलवालकर, Madhavrao Deode, Rashtriya Swayamsevak Sangh, Keshav Baliram Hedgewar, Madhav Sadashiv Golwalkar,
Tags: Keshav Baliram HedgewarMadhav Sadashiv GolwalkarMadhavrao DeodeRashtriya Swayamsevak Sanghकेशव बलिराम हेडगेवारमाधव सदाशिव गोलवालकरमाधवराव देवड़ेराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
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