मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार की पुलिस इन दिनों चर्चा में है। वजह है एक एडवाइजरी, जिसे जारी किया है डीजीपी वीके सिंह ने। इस एडवाइजरी में सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों से कहा गया है कि अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों के साथ किसी प्रकार का अभद्र व्यवहार न किया जाए और न ही उनके साथ मारपीट की जाए। इसके साथ ही एडवाइजरी में यह भी निर्देश जारी किया गया है कि बहुत जरूरी होने पर ही हिरासत में लें वरना छोड़ दें।
डीजीपी की इस एडवाइजरी के बाद गृहमंत्री बाला बच्चन ने कहा कि ऐसे कई मामले उनके संज्ञान में आए हैं। जहां तक मेरी जानकारी में है, यह पूरे देश में तय हुआ है। मीटिंग वगैरह से जो फीडबैक मिला है तब यह तय हुआ है। कानून सबके लिए बराबर है। पहले मैं डीजीपी से बात करूंगा फिर आपको जानकारी उपलब्ध कराउंगा।
एक आदिवासी बहुल जिले अलीराजपुर में चार पुलिस कर्मियों को इस साल 10 अगस्त को निलंबित कर दिया गया था, जब पुलिस हिरासत में पांच आरोपियों ने शिकायत की थी कि उन्हें गिरफ्तारी के बाद खूब पीटा गया था और पुलिसकर्मियों के मूत्र पीने के लिए मजबूर किया गया था। आरोपी आदिवासी समुदाय से थे और उन्होंने इस संबंध में राष्ट्रीय एसटी आयोग को यह कहते हुए शिकायत दर्ज कराई कि उन्हें पुलिसकर्मियों द्वारा परेशान किया गया था क्योंकि वे अनुसूचित जनजाति (एसटी) के थे। आयोग ने मामले की जांच की और आरोपों को निराधार पाया। लेकिन आयोग के सदस्यों ने राज्य सरकार को जनजातिय समुदाय के बारे में जिला पुलिस को संवेदनशील बनाने का निर्देश दिया और कहा कि किसी को भी किसी विशेष जाति होने की वजह से परेशान न किया जाए। अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति कल्याण विंग) प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव ने निर्देश की व्याख्या करते हुए कहा।
आयोग के निर्देश के बाद, पुलिस विभाग ने एससी और एसटी दोनों को सुरक्षा प्रदान करने का आदेश जारी किया। इसका किसी भी जाति या किसी भी चीज से कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि इस एडवाइजरी के जारी होने के बाद राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा ने कड़ी आपत्ति जताई है। भाजपा का कहना है कि यह फरमान जातिवादी है। और कहा है कि कानून और व्यवस्था के रखरखाव में जाति को नहीं घसीटा जाना चाहिए और उनके मामलों की परवाह किए बिना सभी को न्याय दिया जाना चाहिए।
भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने कहा था, “कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार जाति के नाम पर लोगों के बीच दरार पैदा करके एक गंदी राजनीति कर रही है।”
इस तरह की तुष्टिकरण की राजनीति सरकार हमारे शासन काल में नहीं थी लेकिन कमलनाथ सरकार के आते ही राज्य में तुष्टिकरण की राजनीति चरम पर है। हालांकि, राज्य के गृह मंत्री, बाला बच्चन ने कहा है कि अगर पुलिस विभाग ने कुछ आदेश जारी किया जैसा कि बताया जा रहा है, वह इस मामले की एक बार समीक्षा करेंगे।
राज्य में मामूली अंतर से जीत के बाद कमलनाथ की सरकार लगातार खराब शासन कर रही है। बिजली, पानी, किसानों की समस्या पर लगातार फिसड्डी रही है। 18 से अधिक जिलों में यूरिया की कमी से किसान परेशान रहे हैं। वहीं चुनाव से पहले कांग्रेस ने वादा किया था कि सरकार बनते ही राज्य के सभी किसानों का 15 दिन के अंदर कर्ज माफ कर दिया जाएगा लेकिन इस संकल्प पर भी कमलनाथ की सरकार फेल रही है।
राज्य में जब से कांग्रेस की सरकार बनी है तब से ही कानून व्यवस्था की हालत पंचर है। मंदसौर में एक भाजपा नेता प्रहलाद बंधवार की हत्या ने भी कमलनाथ सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया था। वहीं चित्रकूट शहर में 5 साल के जुड़वा भाईयों की हत्या भी राष्ट्रीय सुर्खियों में रही। इस हत्या ने तो कमलनाथ सरकार की कानून व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी थी। इसी तरह के कई अन्य मामलों ने मध्य प्रदेश राज्य में कानून और व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को उजागर किया है। मध्य प्रदेश की ऐसी हालल वास्तव में चिंता का विषय है और इसके जिम्मेदार कोई और नहीं कमलनाथ सरकार है।
कमलनाथ की एक साल की सरकार पर नजर डालें तो वे अपने शुरूआती कार्यकाल से ही फेल नजर आ रहे हैं। इसी वजह से राज्य में कांग्रेस सरकार की लोकप्रियता लगातार घट रही है। यहां तक की इनके खुद के विधायक व मंत्री भी कमलनाथ से खुश नहीं हैं।
ऐसे में जातिगत राजनीति को बढ़ावा देने वाली कमलनाथ सरकार की इस पुलिसिया फरमान ने एक बार फिर से कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। सवाल यह है कि क्या न्याय से बढ़कर जाति है? क्या इस फरमान से दूसरे जाति के लोगों में रोष नहीं पैदा होगा? क्या यह जातिगत रूप से समाज को बांटने की राजनीति नहीं है? क्या राजनीति में कमलनाथ सरकार इतनी अंधी हो गई है कि वह न्याय व्यवस्था में भी जाति घसीट रही है? इन सभी सवालों के घेरे में कमलनाथ की सरकार है जो राज्य में हर मोर्चे पर फेल है।