दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती गुंडागर्दी का नतीजा है कि अब Indo-Pacific देशों में बड़े पैमाने पर Arms race यानि हथियारों की दौड़ शुरू हो चुकी है। जापान से लेकर दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया से लेकर इंडोनेशिया, हर कोई मिसाइल, एयरक्राफ्ट कैरियर्स और युद्धपोत विकसित करने पर ध्यान दे रहा है। सब देशों का एक ही मकसद है-कैसे भी करके चीन के दुनिया पर राज करने के सपने को मिट्टी में मिलाया जाये। चीन ने जिस प्रकार पिछले दो महीनों में Indo-Pacific के देशों पर एक अघोषित युद्ध थोपा है, उसके बाद अब इस क्षेत्र के शांति-प्रिय देश भी सैन्य खरीददारी करने या उसमें तेजी लाने के लिए मजबूर हुए हैं।
अभी हाल ही की खबरों के मुताबिक दक्षिण कोरिया जल्द ही अपनी नेवी में एक aircraft carrier शामिल कर सकता है। Yellow sea में चीनियों द्वारा अवैध fishing और आक्रामकता के कारण दक्षिण कोरिया को यह फैसला लेने पर मजबूर होना पड़ रहा है। दक्षिण कोरिया की नेवी इतनी मजबूत नहीं है। ऐसे में अगर उत्तर कोरिया या चीन की ओर से दक्षिण पर कोई दबाव बनाया जाता है, तो दक्षिण कोरिया अपने aircraft carrier पर तैनात जेट्स से दुश्मन को बर्बाद कर पाएगा।
लद्दाख में चीनी सेना से मुठभेड़ के बाद भारत भी अपनी सुरक्षा तैयारी को पुख्ता करने पर ध्यान दे रहा है। जून महीने के आखिर में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस के दौरे पर गए थे, जहां उन्होंने रूस के साथ अधूरी पड़ी defence deals को पक्का करने की कोशिश की थी। बता दें कि भारत और रूस के बीच AK-203 rifles और Ka-226T light utility helicopters को लेकर सैन्य समझौता अधूरा पड़ा है, जिसे रक्षा मंत्री पक्का करने रूस गए थे। इसके अलावा अगले वर्ष तक भारत को Air defense missile system S400 भी मिलने हैं। भारत ने 29 जून को ही फ्रांस से 5 राफेल विमानों की पहली खेप भी हासिल की है। इसके अलावा अगले साल तक ही भारतीय नेवी को एक और एयरक्राफ्ट कैरियर हासिल हो सकता है।
इसी प्रकार चीन की हरकतों को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया भी अपने defense बजट को बढ़ाने का ऐलान कर चुका है। ऑस्ट्रेलिया ने इसके साथ ही चीन के खिलाफ समुद्र में लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइल्स को तैनात करने का भी फैसला लिया है। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने हाल ही में कहा था कि जिस प्रकार क्षेत्र में तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है, उसके बाद यह जरूरी हो जाता है कि Australia भी अपने सुरक्षा बलों को और ज़्यादा मजबूत करे। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के मुताबिक, “हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दावों को लेकर तनाव लगातार बढ़ रहा है। भारत और चीन के बीच विवाद, दक्षिणी चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में बढ़ते तनाव को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया सतह, हवा और समुद्र आधारित लंबी दूरी की मिसाइलें और हाइपरसोनिक स्ट्राइक मिसाइलों में निवेश करेगा”। आगे पीएम मॉरिसन ने बड़ा ऐलान करते हुए कहा था कि “सुपर हॉर्नेट फाइटर जेट्स के बेड़े को मजबूत करने के लिए लंबी दूरी के एंटी शिप मिसाइलों की खरीद सहित रक्षा रणनीति में बदलाव किया जाएगा। हिंद-प्रशांत उभरती रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का प्रमुख केंद्र बन चुका है”।
अब बात जापान की कर लेते हैं। जापान ने चीन की सुरक्षा प्रणाली को चीरने के लिए stealth Anti Ship मिसाइलों को विकसित किया है। यह मिसाइल बीच रास्ते में ही अपनी दिशा बदल सकती है, जिसके कारण इसे चीनी जहाजों द्वारा detect कर पाना बहुत मुश्किल होगा। चीन के जहाज़ पिछले कुछ समय से लगातार जापान के सेनकाकु द्वीपों के आसपास घुसपैठ कर रहे हैं। अब अगर जापान अपनी इस मिसाइलों को चीन के जहाजों पर दागता है, तो देखते ही देखते चीन की नेवी के इन जहाजों के परखच्चे उड़ जाएंगे।
इसी प्रकार इंडोनेशिया भी चीन को एक खतरे के तौर पर स्वीकार कर चुके हैं। इंडोनेशिया के रक्षा मंत्री हाल ही में भारत के दौरे पर आए थे, जहां उन्होंने भारत-रूस द्वारा विकसित ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने में अपनी रूचि दिखाई थी। इसी के साथ इंडोनेशिया ऑस्ट्रेलिया की Eurofighter Typhoon fighter jets fleet खरीदने में दिलचस्पी दिखा रहा है।
इंडोनेशिया दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता का शिकार बनता रहा है और अब वह अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाकर चीन को एक कडा संदेश देना चाहता है। इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया चीन के आर्थिक प्रतिबंधों का शिकार बन चुका है। अब ये सब देश इकट्ठे हो गए हैं और चीन पर दबाव बनाने के लिए अपनी सैन्य क्षमता में बढ़ोतरी कर रहे हैं। चीन ने पूरे Indo-pacific क्षेत्र को एकजुट कर दिया है, जो चीन की आक्रामकता पर रोक लगाने में अहम भूमिका निभाएगा।