पश्चिमी अफ्रीकी देश माली से बेहद ही हैरान करने वाली खबर सामने आई थी। 18 अगस्त को लोकतांत्रिक सरकार के शासन में सोया देश जब अगले दिन सो कर उठा तो देश में तख्तापलट हो चुका था। खबर आई कि देश के सैनिकों ने सरकार के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया और देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को कब्ज़े में ले लिया गया है। बाद में राष्ट्रपति ने इस्तीफ़े की घोषणा भी कर दी लेकिन माली में हुए इस तख़्तापलट के पीछे दो ताकतवर देश चीन और रूस की आपसी रंजिस का नतीजा दिखाई दे रहा है। चीन माली के माध्यम से अफ्रीका के सहेल क्षेत्र में अपने BRI प्रोजेक्ट को व्यापक बनाने की ओर काम कर रहा था लेकिन इस तख़्तापलट से उसके प्रोजेक्ट्स के असफल होने की चिंता बढ़ गयी है। वहीं कुछ रिपोर्ट्स का मानना है कि जिन सैनिकों ने तख्तापलट किया था उनकी ट्रेनिंग रूस में हुई थी। यही स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि माली में हुए इस तख्तापलट से चीन की BRI का सत्यानाश होना तय है और इसके पीछे अमेरिका नहीं बल्कि रूस है।
दरअसल, माली ने चीन के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट BRI पर पिछले वर्ष जुलाई में ही हस्ताक्षर किया था। चीन माली के जरीये पश्चिमी अफ्रीका के Sahel क्षेत्र पर कब्जा जमाना चाहता था। सेनेगल (Senegal) के अटलांटिक तट से इरिट्रिया (Eritrea) के लाल सागर तट तक फैले साहेल (Sahel) क्षेत्र को चीन अपने व्यापार महत्वाकांक्षाओं के लिए एक रणनीतिक बिंदु मानता है। इस कारण से वो इस क्षेत्र में आने वाले सभी देश जैसे सेनेगल, नाइजर (Niger), चाड (Chad), नाइजीरिया, सूडान में भारी निवेश कर चुका है। चीनी कंपनियाँ चारो तरफ जमीन से घिरे माली को डकार, सेनेगल और गिनी में कॉनक्री (Conakry) के बंदरगाहों से जोड़ने के लिए रेलवे लिंक का निर्माण कर रही हैं।
परंतु इसी माली की सरकार का सेना द्वारा तख़्तापलट कर दिया गया और जब तक माली में संघर्ष चलेगा तब तक चीनी प्रोजेक्ट्स को पूरा कर पाना नामुमकिन होगा। ऐसे में यह चीनी कंपनियों को काफी महंगा पड़ने वाला है। चीन को माली में मिले इस झटके में रूस के हाथ होने की रिपोर्ट्स आई है। The Daily Beast के अनुसार जिन सैनिकों ने माली पर कब्जा किया है उनकी ट्रेनिंग रूस में हुई थी। यानि अब यह देश अप्रत्यक्ष रूप से रूस चला रहा है जहां चीन के BRI का मौत के मुंह में जाना तय है। दरअसल, बीबीसी सहित कई मीडिया आउटलेट्स ने तख्तापलट के बाद यह रिपोर्ट किया था कि इस परिवर्तन का नेतृत्व Malick Diaw और Sadio Camara नामक सेना के कर्नल कर रहे थे, जो काटी सैन्य अड्डे में उच्च पदों पर तैनात थे। अब यह रिपोर्ट सामने आई है कि इन दोनों में सिर्फ दोस्ती ही गहरी नहीं थी बल्कि वे रूस में सेना द्वारा प्रशिक्षित किए गए थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपति Ibrahim Boubacar Keita को हटाने के लिए माली लौटने से पहले डियाव और केमरा दोनों रूस में थे। रूस जिस तरह से अफ्रीकी देशों में हस्तक्षेप करता आया है उससे यह अंदाजा लगाना गलत नहीं होगा कि माली में हुए इस तख्तापलट में रूस का हाथ होगा। इससे रूस को दो स्पष्ट फायदे होंगे पहला यह कि वह इस देश को अपने नियंत्रण में कर लेगा जैसे उसने मेडागास्कर और मध्य अफ्रीकी गणराज्य में कर रखा है। और दूसरा यह कि उसे चीन के BRI को बर्बाद करने का मौका भी मिल जाएगा।
चीन को नुकसान पहुंचाने के लिए रूस के पास कई कारण हैं। रूस भी चीन की विस्तारवादी नीति से परेशान है। Vladivostok मुद्दा, आर्टिक क्षेत्र में चीनियों का बढ़ता प्रभुत्व और मध्य एशिया के देशों, जैसे तजाकिस्तान पर बीजिंग की नजर से रूस आक्रोशित है। चीन आर्कटिक क्षेत्र में भी अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिश में है। कुछ दिनों पहले ही चीन ने रूस के पूर्व में बसे शहर व्लादिवोस्तोक पर अपना दावा ठोका था। Vladivostok प्रशांत महासागर में रूस का एक मात्र warm water बन्दरगाह है। ऐसे में रूस किसी भी तरह से इस शहर की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। चीन ने कई वर्षों से रूस के पूर्वी क्षेत्रों पर अपनी नजर गड़ाई हुई है।
रूस ने एक बार फिर से चीन को वहाँ चोट दी है जहां उसके विस्तारवादी सपनों को झटका लगे। कुछ दिनों पहले ही जब चीन ने भारत के साथ बॉर्डर विवाद बढ़ाया था तब भी रूस ने भारत का ही समर्थन किया था। यही नहीं S400 डिफेंस मिसाइल सिस्टम की आपूर्ति तय समय से पहले करने का वादा भी किया था और साथ में 33 फाइटर जेट की भी आपूर्ति की बात कही थी। रूस अब चीन से नाराज है यह कोई कहने वाली बात नहीं है बल्कि रूस के लगातार एक्शन से स्पष्ट हो जाता है। आज के समय में न सिर्फ अमेरिका चीन को सबक सीखाना चाहता है बल्कि दूर के रिश्ते का कम्युनिस्ट भाई रूस भी उसे लगातार चोट दे रहा है। माली में हुए इस तख्तापलट से चीन को कितना नुकसान होगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन आने वाले कुछ वर्षों में उसकी विस्तारवादी नीतियों को कई झटके लगने वाले वाले है यह तो तय है।