रेसेप तैयप एर्दोगन, वर्ष 2014 से ही ये तुर्की के राष्ट्रपति पद पर बने हुए हैं। बाकी मुस्लिम देशों के मुक़ाबले तुर्की में हमेशा से ही एक आधुनिक सामाजिक व्यवस्था देखने को मिलती रही है। हालांकि, पिछले 6 सालों में एर्दोगन ने अपनी कट्टरपंथ की विचारधारा से प्रेरित होकर इस देश को आज ऐसे मोड पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां से भयावह संकट ज़्यादा दूर नहीं है। एर्दोगन ने जिस प्रकार गड़े-मुर्दे उखाड़कर अपने लिए कब्र खोदने का काम किया है, उससे यह प्रतीत होता है कि एर्दोगन 21वीं सदी में नहीं, आज भी मध्यकालीन युग में जी रहे हैं। ऐसा मध्यकालीन युग जहां वैश्विक व्यवस्था लिबरल विचारधारा पर नहीं, बल्कि धार्मिक कट्टरता और सभ्यतागत प्रभुत्व पर टिकी हो!
इसमें कोई दो राय नहीं है कि एर्दोगन के मस्तिष्क से अभी भी Ottoman Empire का जुनून नहीं निकल पाया है। वह हर घटना को मध्यकालीन चश्मे से ही देखते हैं और उसपर उसी तरह प्रतिक्रिया देते हैं। उनकी भाषा से लेकर उनके हाव-भाव और उनका बर्ताव, ठीक वैसा ही है जैसे किसी मध्यकालीन युग के नेता का हो! फ्रांस के राष्ट्रपति Emmanuel Macron द्वारा छेड़ी गयी कट्टरपंथ इस्लाम के खिलाफ लड़ाई पर तुर्की का आधिकारिक रुख इस बात को और ज़्यादा सत्यापित करता है। उदाहरण के लिए, Macron को दिमागी तौर पर पागल घोषित करने के बाद एर्दोगन ने अब यूरोप पर मुस्लिमों के खिलाफ दोबारा “धर्मयुद्ध” छेड़ने का आरोप लगाया है।
आखिर एर्दोगन धर्मयुद्ध की बात क्यों करने लगे हैं? यूरोपीय शक्तियों द्वारा धर्मयुद्ध मध्यकालीन युग में छेड़ा गया था। यूरोप के ईसाईवादियों ने सभ्यतागत युद्ध थोपते हुए 11वीं, 12वीं, 13वीं और 14वीं शताब्दी में इस्लामिक देशों पर धावा बोला था। उस इतिहास को आज दोबारा कुरेदकर एर्दोगन मुस्लिमों में इसाइयों के खिलाफ घृणा पैदा करना चाहते हैं। ये सब वे अपनी राजनीति को चमकाने के लिए ही कर रहे हैं। एर्दोगन आज भी कट्टरपंथी विचारधारा के आधार पर युद्ध छेड़ने और दुनिया में दोबारा Ottoman Empire की विरासत को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। अपने आप को खलीफा सिद्ध करने की कोशिश में ही वे अपने आलोचकों का मुंह बंद करने की फिराक में रहते हैं।
उदाहरण के लिए हाल ही में जब निदरलैण्ड्स के नेता Geert Wilders ने ट्विटर पर उनके कुछ कार्टून्स को पोस्ट किया, तो उससे बौखलाकर एर्दोगन ने अपने यहाँ डच राजनेता के खिलाफ केस करने का फैसला ले लिया। तुर्की में इस “अपराध” के लिए 4 साल की जेल का प्रावधान है, लेकिन वे इस कानून को डच राजनेता पर कैसे लागू करेंगे, ये अपने आप में बड़ा सवाल है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि वे ये सब कदम सिर्फ बवाल खड़ा करने और Optics के लिए कर रहे हैं।
हागिया सोफिया को मस्जिद में बदलने का फैसला हो, या फिर अर्मेनिया-अज़रबैजान विवाद में बिना बात अपनी टांग अड़ाना हो, एर्दोगन बार-बार यह सिद्ध कर चुके हैं कि वे Ottoman Empire के Hangover में ही जी रहे हैं और उन्हें आज की सच्चाई से कोई लेना-देना ही नहीं है। इसी प्रकार एर्दोगन अपने देश की सीमाओं को बढ़ाने के लिए भी तत्पर दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए वर्ष 2016 में तुर्की ने कुछ नक्शों को जारी किए था जिनमें उत्तरी सीरिया से लेकर इराक़, बुल्गारिया तक के कुछ हिस्सों को अपना दिखाया हुआ था।
तुर्की के पास ना तो दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेना है, ना ही उसके पास मजबूत अर्थव्यवस्था है। पाकिस्तान जैसे देश उसके साथी हैं और अमेरिका और भारत जैसे देश उसके दुश्मन हैं। ऐसे देश के भविष्य में अंधकार के सिवाय कुछ और हो ही नहीं सकता। खलीफा बनने के सपने देख रहे एर्दोगन अपने देश को अगला ईरान बनाने पर तुले हुए हैं और अगर वे जल्द ही नहीं संभले तो इतिहास में उनका नाम तुर्की को बर्बादी की आग में झोंकने वाले नेता के तौर पर जाना जाएगा!