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अमित शाह ने माओवादियों की फंडिंग पूरी तरह से समाप्त करने का लिया संकल्प, 96 से घटकर 41 जिलों तक सीमित हुए नक्सली

सरकार सैन्य शक्ति को मजबूत करके वित्तीय सहायता को बंद करने पर ध्यान दिया है जिससे नक्सलवाद की समस्या आज घुटने टेक कर खड़ी है।

Yashwant Singh द्वारा Yashwant Singh
28 September 2021
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अमित शाह ने माओवादियों की फंडिंग पूरी तरह से समाप्त करने का लिया संकल्प, 96 से घटकर 41 जिलों तक सीमित हुए नक्सली
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अप्रैल 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने माओवादी आंदोलन (वामपंथी उग्रवाद) को “हमारे देश के सामने अब तक की सबसे बड़ी आंतरिक सुरक्षा चुनौती” कहा था। नक्सलियों द्वारा फैलाये गए आतंक को इस बात से समझा जा सकता है कि देश भर के 200 से अधिक जिलों में नक्सलियों का दबदबा था। आज भारत में 732 जिले हैं और सरकार की कार्रवाईयों के बाद अब नक्सली आंदोलन मात्र 41 जिलों तक सीमित हो गया है। भारत का यह सुरक्षा विरोधी समूह मात्र 10 राज्यों में सीमित हैं और उत्तर प्रदेश इस आंतरिक समस्या से पूरी तरह मुक्त हो गया है।

रविवार को गृहमंत्रालय में नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और अन्य अधिकारियों की बैठक हुई। उस बैठक में उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक माओवादियों का भौगोलिक प्रभाव देश के केवल 41 जिलों तक सीमित हो गया है। साल 2010 में उनकी पकड़ 10 राज्यों के 96 जिलों में थी।

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में वामपंथी उग्रवाद (LWE) से प्रभावित राज्यों में सुरक्षा और अन्य विकासात्मक पहलुओं की समीक्षा के लिए बैठक हुई। इस बैठक में झारखंड, मध्य प्रदे श, बिहार, तेलंगाना, महाराष्ट्र और ओडिशा के मुख्यमंत्री उपस्थित रहे, जबकि छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और केरल का प्रतिनिधित्व पुलिस महानिदेशक और मुख्य सचिवों ने की।

गृहमंत्री ने तमाम तरीकों में आर्थिक पाबंदियों को एक असरदार तरीका बताते हुए कहा, “वामपंथी उग्रवादियों की आय के स्रोतों को बेअसर करना बहुत जरूरी है। केंद्र और राज्य सरकारों की एजेंसियों को मिलकर एक व्यवस्था बनाकर इसे रोकने की कोशिश करनी चाहिए।”

LWE संगठनों को बाहर से मिलने वाले वित्तीय सहायता को रोकना एक महत्वपूर्ण और असरदार फैसला साबित हो सकता है क्योंकि कई सारे तरीकों से फंडिंग करके ऐसे संगठनों को बल दिया जाता है। आर्थिक पाबंदियों से राज्य में सक्रिय नक्सली समूहों के पास हथियार छोड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचेगा।

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प्रभावित क्षेत्रों में बढ़ाई गई है शिविरों की संख्या

अमित शाह ने कहा कि जो लोग हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होना चाहते हैं, उनका दिल से स्वागत है लेकिन जो लोग हथियार उठाकर निर्दोष लोगों और पुलिस को चोट पहुंचाते हैं, उन्हें वहीं जवाब दिया जाएगा। नक्सलवाद के प्रमुख कारण पर जोर देते हुए गृहमंत्री ने कहा, “असंतोष का मूल कारण यह है कि आजादी के बाद से पिछले छह दशकों में वहां विकास नहीं हुआ है और अब इससे निपटने के लिए तेजी से विकास की पहुंच सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है ताकि आम और निर्दोष लोग इसमें शामिल न हों।”

अमित शाह ने यह भी कहा कि पिछले दो वर्षों में उन क्षेत्रों में सुरक्षा शिविर बढ़ाने का सफल प्रयास किया गया है जहां सुरक्षा कड़ी नहीं थी। ख़ासकर छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और ओडिशा में शिविरों की संख्या बढ़ाई गई है।

मंत्रालय ने क्या कहा?

मंत्रालय के अनुसार पिछले एक दशक में वामपंथी उग्रवाद की घटनाओं की संख्या में गिरावट आई है। यह साल 2009 में हुई 2,258 घटनाओं से घटकर इस साल 31 अगस्त तक 349 घटनाओं पर रुक गई हैं। इस अवधि के दौरान मौतों की संख्या भी 908 से घटकर 110 हो गई है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पहली बार 2006 में माओवादी मुद्दे के समाधान के लिए एक अलग विभाग LWE डेस्क बनाया था।

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मंत्रालय ने कहा, “इस (माओवादी) घटना के उद्भव के लिए संभावित स्थानों के रूप में कुछ नए क्षेत्रों की पहचान की गई है। भाकपा (माओवादी) की विस्तार योजना को रोकने के लिए और हाल ही में वामपंथी उग्रवाद के प्रभाव से दूर किए गए क्षेत्रों में उन्हें वापस सक्रिय होने से रोकने के लिए, 8 जिलों को ‘चिंता के जिले’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। संशोधित वर्गीकरण वर्तमान वामपंथी उग्रवाद के परिदृश्य का अधिक यथार्थवादी प्रतिनिधित्व है।”

मंत्रालय के अनुसार चिह्नित किये गए 8 जिलें देश में माओवादी नक्सली संगठनों के हेडक्वार्टर के रूप में काम करते हैं। मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, “बदमाशों को कुछ इलाकों में धकेल दिया गया है, जहां देश में LWE हिंसा का 85% हिस्सा केवल 25 जिलों में है।”

सलवा जुडूम और विकास के द्वारा लक्ष्य की प्राप्ति

सरकार द्वारा 2005 में इस समस्या से निपटने के लिए सलवा जुडूम योजना शुरू की गई। सलवा जुडूम का गोंडी भाषा में मतलब होता है “शांति की स्थापना”। सरकार ने उन समूहों को साथ किया जो माओवादी हिंसाओं से परेशान थे। उन समूहों को वित्तीय सहायता प्रदान करके उन्हें माओवादियों के खिलाफ किया गया और धीरे-धीरे पैरामिलिट्री बलों द्वारा उन्हें हटाने का प्रयास शुरू किया गया।

विकास की बात करें तो सुरक्षा बलों ने जंगलों के अंदर कई शिविर खोले हैं जो कभी माओवादियों का गढ़ हुआ करते थे, जिसके कारण विद्रोही लगातार हमले नहीं कर पा रहे हैं। 2,300 से अधिक मोबाइल टॉवर लगाए गए हैं, लगभग 5,000 किमी सड़कें बनाई गई हैं। साथ ही निर्माण और अन्य बुनियादी ढांचे का काम किया जा रहा है।

केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के पूर्व महानिदेशक के दुर्गा प्रसाद ने कहा, “माओवादियों की भर्ती में कमी आई है, उनका नेतृत्व पुराना है और युवा कार्यकर्ताओं में पार्टी की विचारधारा गायब है, जिसके कारण उनकी गतिविधियों पर असर पड़ा है। एजेंसियों के बीच बेहतर खुफिया जानकारी साझा करना, हथियार, धन और खाद्य पदार्थों जैसी रसद श्रृंखलाओं में स्थापित व्यवधान डाला गया है। नक्सली छत्तीसगढ़ के अलावा किसी अन्य राज्य में कैडरों की भर्ती करने में सक्षम नहीं हैं।”

और पढ़े- माओवादियों पर कोरोना का प्रचंड प्रहार- कई मर गए, कई भाग गए, कईयों ने किया आत्म-समर्पण

अब तक क्या हुए बदलाव?

2018 में वामपंथी चरमपंथियों के प्रभाव को कम होते देख सरकार ने 44 जिलों को 126 नक्सलवाद प्रभावित जिलों की सूची से हटा दिया था। उस समय तक अधिक प्रभावित जिलों की संख्या भी 35 से घटकर 30 हो गई थी और झारखंड में तीन जिले और बिहार के दो जिले सूची से हटाए गए थे। आठ राज्यों के केवल 25 जिलों को अब “सबसे अधिक प्रभावित” क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

गृह मंत्रालय की संशोधित सूची के अनुसार, उत्तर प्रदेश अब माओवाद से मुक्त है। उत्तर प्रदेश में तीन माओवादी प्रभावित जिले थे- चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र, अब ये किसी भी प्रकार की वामपंथी उग्रवाद से संबंधित घटनाओं से मुक्त है।

दो महीनें पहले तक 11 राज्यों के लगभग 90 जिले वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित थे, जिन्हें सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) के तहत केंद्रीय सहायता मिली थी। जबकि सात राज्यों के 30 जिलों को “सबसे अधिक प्रभावित” के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इसी तरह सुरक्षा बलों और नागरिकों की मृत्यु में 80 फीसदी की कमी देखी गई है। साल 2010 में यह आंकड़ा 1005 था जो 2020 में घटकर 183 तक पहुंच गया है।

साल 2004 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी-लेनिनवादी), पीडब्लूजी, माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया (एमसीसीआई) और 40 अन्य सशस्त्र गुटों के भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) में विलय ने विद्रोहियों को एक किया था। यह आंदोलन अंततः इतने विशाल भूगोल में फैल गया कि इसने जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर सहित अन्य सभी विद्रोही गतिविधियों को पीछे छोड़ दिया। जो ताकत होती है वहीं कई बार कमजोरी साबित हो जाती है। सरकार के लिए ऐसे तमाम संगठनों पर हमला कठिन था लेकिन एक संगठन हो जाने से यह आसान हो गया। सरकार ने सैन्य शक्ति को मजबूत करके वित्तीय सहायता को बंद कर दिया जिससे नक्सलवाद की समस्या आज घुटने टेक कर खड़ी है।

Tags: अमित शाहमाओवादी
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