पूरी दुनिया ही किसी न किसी तरह से एक दूसरे से जुड़ी हुई है हालांकि रणनीतिक रूप से या फिर भौगोलिक रूप से ये अवश्य ही बंटी हुई है। कुछ देश पश्चिमी ब्लॉक में बसे हैं तो कुछ पूर्व में हैं लेकिन इसमें एक बात जो ध्यान देने वाली है वो ये है कि पश्चिम हो या पूर्व आज की स्थिति ऐसी है कि हर कोई भारत को अपने गुट में रखना चाहता है।
भारत की आर्थिक वृद्धि, सैन्य शक्ति, लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली और उसकी चतुर कूटनीति के कारण विश्व में भारत का कद अब इतना बढ़ गया है कि वैश्विक व्यवस्थाओं को बनाए रखने में उसकी उपस्थिति अनिवार्य सी लगने लगी है। ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि गाहेबगाहे वैश्विक मंचों से अलग अलग देशों के प्रतिनिधियों द्वारा प्रदर्शित किया जाता रहा है। अब स्पेन के विदेश मंत्री को ही देख लीजिए जिन्होंने विश्व के लिए भारत के महत्व पर प्रकाश डाला। जोस मैनुअल अल्बेरस ने भारत के संदर्भ में क्या कहा है आइए जानते हैं।
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सब जान चुके हैं कि दुनिया में भारत स्थिरता लाता है
इंडियन एक्सप्रेस के साथ स्पैनिश विदेश मंत्री अल्बेरस ने बातचीत की जिसमें उन्होंने वैश्विक अनिश्चितता को संदर्भित करते हुए नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) और भारत के समन्वय की वकालत की। नाटो के 360 डिग्री एजेंडे पर बोलते हुए स्पैनिश विदेश मंत्री ने कहा कि “नाटो ने पारंपरिक रूप से पूर्वी हिस्से की ओर देखा, उसे दक्षिणी हिस्से की ओर भी देखना चाहिए, और उन सभी देशों तक पहुंचना चाहिए जो भारत के जैसे ही अच्छे भागीदार हो सकते हैं, और दुनिया में स्थिरता बनाए रखने में रुचि रखते हैं।”
जिस तरह से वैश्विक स्तर पर भारत लगातार आगे बढ़ता जा रहा है और अपने अस्तित्व को और दृढ़ करता जा रहा है उसके बाद ऐसे बयान तो आएंगे ही। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपनी पुस्तक, The India Way (Strategies for an Uncertain World), में भारत के राजनयिक रुख पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि “महाभारत युग का भारत भी बहुध्रुवीय था, जिसकी प्रमुख शक्तियां एक दूसरे को संतुलित करती थीं। लेकिन एक बार जब इसके दो प्रमुख ध्रुवों के बीच प्रतिस्पर्धा को नियंत्रित नहीं किया जा सका तो अन्य ताकतों को भी इसमें पक्ष लेना पड़ा।”
जिस नाटो के बारे में चर्चा हो रही है चलिए उसके बारे में जान लेते हैं। दरअसल, एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है द नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटीर्गनाइजेशन यानी NATO जिसको 1949 में 28 यूरोपीय देशों इसके साथ ही 2 उत्तरी अमेरिकी देशों के बीच बनाया गया। इस संगठन का उद्देश्य है कि अपने सदस्य देशों को राजनीतिक और सैन्य संसाधनों के द्वारा स्वतंत्रता के साथ ही सुरक्षा का भरोसा दिया जाए साथ ही रक्षा और सुरक्षा से संबंधित जो भी मुद्दे सामने आएं उन्हें सहभागी देशों के सहयोग से निपटाया जाए और इन सभी देशों के बीच के किसी भी संघर्ष को रोका जा सके। इस संगठन को दूसरे विश्व युद्ध के बाद अस्तित्व में लाया गया।
ध्यान देने वाली बात है कि जो अधिकांश नाटो देश हैं वे विकसित भी हैं और लोकतांत्रिक भी। हाल ही में बर्लिन में ‘एक वैश्विक नाटो’ के लिए ब्रिटेन की विदेश सचिव लिज़ ट्रस ने पैरवी की थी। इसके लिए ट्रस ने तर्क दिया था कि “यूरो-अटलांटिक सुरक्षा की रक्षा करते हुए हमें इंडो-पैसिफिक सुरक्षा पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है”।
इसके अलावा, एक प्रमुख नीति भाषण में ब्रिटेन के विदेश सचिव का कहना था कि “द्वितीय विश्व युद्ध और शीत युद्ध के बाद बनायी गयी विश्व व्यवस्था बेकार हो गई थी और नये परिदृश्य में भू-राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए पश्चिम को वैश्विक नाटो की आवश्यकता है”।
और अब स्पेन के विदेश मंत्री ने जो भारत के संदर्भ में तर्क दिया है कि नाटो को भारत जैसे स्थिर देश की आवश्यकता है, ये तर्क हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर नाटो के फोकस को भी दर्शाता है। हालांकि अमेरिका को छोड़कर नाटो की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में और किसी देश की कोई महत्वपूर्ण उपस्थिति नहीं है। लेकिन चीन की बढ़ती आक्रामकता और रूस के साथ उसके संबंध नाटो देशों को भारत की ओर धकेल रहे हैं। वे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रूस और चीन के विरुद्ध एक शक्तिशाली संतुलन बनाने के प्रयासों में लगे हैं।
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इन सब के बीच भारत का क्या रुख है?
हालांकि भारत अमेरिका के साथ इंडो पैसिफिक में सुरक्षा (QUAD) के साथ-साथ आर्थिक समझौता (इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क) कर रहा है। लेकिन देश के लिए नाटो जैसे संगठन में शामिल होना तो बहुत दूर की बात होगी जिसे रूस के विरुद्ध बनाया गया है। 2019 रायसीना डायलॉग पर बोलते हुए पूर्व विदेश सचिव विजय गोखले ने घोषणा की थी कि “भारत अपने गुटनिरपेक्ष अतीत से आगे बढ़ चुका है। भारत आज एक अलाइंड स्टेट है लेकिन मुद्दों पर आधारित है।”
देखना होगा कि ये बयान भारतीय कूटनीति के लिए आगे का रास्ता होना चाहिए। अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए भारत को किसी भी प्रतिबद्ध सुरक्षा ढांचे में शामिल होने से सावधान रहना चाहिए। कम्युनिस्ट हो या फिर उदारवाद किसी भी पक्ष में जाने से और वैचारिक जाल में फंसने से भारत को हमेशा ही सावधान रहना होगा। बहुपक्षीय विश्व के विचार को बनाए रखने के लिए भारतीयों को हमेशा एक संतुलित करने वाले अवयव की तरह काम करना होगा।
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