हाल के समय में भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर खूब टीका टिप्पणी की जाती रही है, विशेषकर कुछ बुद्धिजीवी वामपंथी बंधु तो राग अलापते थकते नहीं कि देश की अर्थव्यवस्था औंधे मुंह है और देश त्राहिमाम कर रहा है। लेकिन अब जो भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर शुभ समाचार आया है उसके बारे में अवश्य जानना चाहिए।
दरअसल, भारत की अर्थव्यवस्था के संदर्भ में बात करें तो चार सप्ताह की गिरावट के बाद विदेशी मुद्रा व्यापार बढ़ा हैं। 29 जुलाई के अंतिम सप्ताह के दौरान देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 2.4 अरब डॉलर की वृद्धि हुई जिसमें लगातार चार हफ्तों तक गिरावट आयी। क्योंकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक शुद्ध निवेशकों के रूप में भारतीय बाजारों में वापस लौट आए हैं जो एक राहत देने वाली बात हैं। बता दें, आरबीआई ने संकेत दिया है कि परिणामी गिरावट के बाद भी भारत का विदेशी मुद्रा भंडार विश्व स्तर पर चौथा सबसे बड़ा भंडार है। इसके अलावा जहां तक बाहरी क्षेत्र की ताकत की बात है तो भारत उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में वर्तमान में काफी बेहतर स्थिति में है। भारत की इस बड़ी उपलब्धि के पीछे आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की अहम भूमिका हैं।
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आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने दी सूचना
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को कुछ महत्वपूर्ण बातें कहीं। उन्होंने कहा कि “भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 29 जुलाई, 2022 तक 573.9 अरब डॉलर पर रखा गया था।” रिजर्व बैंक ने विनिमय दर में अस्थिरता को रोकने के लिए वर्षों से संचित अपने विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग किया है। नवीनतम भंडार स्तरों ने लगातार चार सप्ताह तक कमी की प्रवृत्ति को उलट दिया है। यह 24 जून को 593 अरब डॉलर से गिरकर 22 जुलाई तक 571.5 अरब डॉलर हो गया है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक, जिन्हें वैश्विक केंद्रीय बैंकों के रूप में भारतीय बाजारों से बाहर निकलते देखा गया था। विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में इन अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति शुरू होने के साथ ही दरों को कसना शुरू कर दिया है। कई एशियाई केंद्रीय बैंकों ने अपनी संबंधित मुद्राओं की रक्षा के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग किया है। ब्लूमबर्ग न्यूज की तजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत, थाईलैंड और कोरिया ने इस साल अपने भंडार में 115 अरब डॉलर की गिरावट देखी है क्योंकि उन्होंने मुद्रा में गिरावट को रोकने के लिए डॉलर बेचे हैं।
अगर कोरोना काल 2020 से लेकर अभी तक की बात करें तो चीन और अमरीका जैसे विकसित देशों की अर्थव्यवस्था में कुछ खासा उछाल देखने को नहीं मिल रहा है, उल्टा इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्था में गिरावट ही देखने को मिली हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, अफगानिस्तान की चरमराई अर्थव्यवस्था के क्या ही कहने, इन देशों की खस्ता हालत के चर्चे तो पूरे विश्व में हैं। आर्थिक तंगी से जूझते ये देश भोजन तक के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
वहीं विकासशील देश भारत ने कोरोना जैसी वैशिवक महामारी के दो साल के सबसे बुरे दौर में भी अपनी अर्थव्यवस्था को डगमगाने नहीं दिया। बड़ी चुनौतियों के बीच अच्छी स्वास्थ्य सेवा उपल्ब्ध करवाना, कोरोना वैक्सीन की करोड़ों डोज उपल्ब्ध करवाना, घर-घर राशन उपलब्ध करवाना जैसे काम भारत में पूरी जिम्मेदारी के साथ पूर्ण किए गए। फिलहाल भारत की आर्थिक विकास दर 2022-23 में 8 से 8.5 प्रतिशत होने का अनुमान हैं जो कि एक शुभ संकेत हैं। देखा जाएं तो आने वाले कुछ वर्षों में भारत सिर्फ एशिया महाद्वीप में नहीं बल्कि विश्व के बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में से एक होगा।
2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आयी तब केंद्रीय बैंक आरबीआई के गवर्नर लंदन बिजनेस स्कूल से डॉक्टरेट की उपाधि लेने वाले रघुराम राजन थे। इनका कार्यकाल 2016 में पूरा होने वाला था तो वहीं बड़े-बड़े वामपंथियों का कहना था कि रघुराम राजन को फिर से आरबीआई का गवर्नर बनाया जाना चाहिए क्योंकि इनकी मैनेजमेंट क्षमता काफी बेहतर हैं और इन्होनें अपने कार्यकाल में बहुत सराहनीय कार्य किया हैं।
लेकिन देश तो परिवर्तन चाह रहा था, वहीं रघुराम राजन का कहना था कि वे खुद ही दोबारा आरबीआई के गवर्नर नहीं बनना चाहते हैं। वहीं कुछ पहलुओं पर सरकार और रघुराम राजन के बीच तब मनमुटाव की भी बात सामने आ रहीं थी। इसके बाद विपक्ष ने उर्जित पटेल को आरबीआई गवर्नर बनाए जाने पर भी खूब महौल बनाया। विपक्षियों का कहना था कि उर्जित पटेल देश के बड़े उद्द्योगपति मुकेश अंबानी के करीबी हैं, जिस वजह से पटेल की आरबीआई के गवर्नर के रूप में पैराशूट लैंडिंग करायी गयी है और बेहतरीन काम करने के बाद भी रघुराम राजन को दरकिनार कर दिया गया।
दरअसल ऐसी अफवाह फैली थी तब कि उर्जित पटेल की पत्नी मुकेश अंबानी की पत्नी नीतू अंबानी की बहन हैं। हालांकि बाद में ये अफवाहें गलत साबित हुईं। इधर उर्जित पटेल आरबीआई के 24 वें गवर्नर के रूप में काम तो कर रहे थे लेकिन फिर सबको चौंकाते हुए 10 दिसंबर, 2018 को दो साल के भीतर ही उन्होंने निजी कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि खबरें थीं कि आरबीआई को लेकर उर्जित पटेल और सरकार के बीच कई मुद्दों पर तनातनी थी।
फिर आए शक्तिकांत दास
मोदी सरकार ने उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद तमिलनाडु कैडर के आईएएस अधिकारी को 25 वां आरबीआई गवर्नर नियुक्त किया। इस पर भी विपक्ष ने सरकार पर हमला बोला। विपक्ष का कहना था कि शक्तिकांत दास के पास वो काबिलियत नहीं है जिसके दम पर उन्हें आरबीआई का गवर्नर बनाया जा सकें। उनके पास मैनेजमेंट का उतना अनुभव भी नहीं है, वो इससे पहले आरबीआई के अंदर किसी बड़े पद पर कार्यरत भी नहीं रहे हैं।
ऐसा लग रहा था विपक्ष सीधा-सीधा शक्तिकांत दास की क्षमताओं पर प्रश्न चिह्न लगा रहा था। शक्तिकांत दास ने तो विदेशों की बड़ी यूनिवर्सिटी से पढाई भी नहीं की हैं, इस बात को लेकर भी शक्तिकांत दास का मजाक बनाया गया। यहां तक कहा गया कि बीजेपी ने फिर से अपने पसंदीदा व्यक्ति को आरबीआई के गवर्नर का पद दे दिया। लेकिन शक्तिकांत दास ने अपने ऊपर हो रहें इन सभी प्रहारों को बेझिझक लेते हुए सभी को गलत साबित कर दिया और दिखा दिया कि केंद्र सरकार ने उनको आरबीआई का गवर्नर ऐसे ही नहीं बना दिया। और तो और दास का कार्यकाल भी बढ़ा दिया गया।
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दरअसल, जब शक्तिकांत दास ने उर्जित पटेल के बाद गवर्नर का पद संभाला तब आरबीआई उधार देने और अर्थव्यवस्था में विकास को बढ़ावा देने वाली अन्य नीतियों के संबंध में बेहद रूढ़िवादी था। यह समय की मांग थी क्योंकि उनके पूर्ववर्ती एनपीए संकट के लिए बुरा प्रदर्शन नहीं करना चाहते थे।
अपने पहले कार्यकाल में दास ने विकास पर ध्यान केंद्रित किया और अर्थव्यवस्था में पैसा बढ़ाने के लिए ब्याज दरों में कमी की। दो साल के भीतर आरबीआई ने रेपो रेट में 135 बेसिस प्वाइंट की कटौती की। दर में कटौती उदार रूख के अनुरूप थी जिसका उद्देश्य देश में व्यावसायिक संभावनाओं और नौकरियों को बढ़ावा देना है। लेकिन तब भी दास के पूर्ववर्तियों द्वारा पेश किए गए कड़े मानदंडों के कारण बैंक उधार देने से डरते थे।
इस तथ्य को देखते हुए कि मोदी सरकार एमएसएमई क्षेत्र के उत्थान की ओर केंद्रित थी। उधार देने के संबंध में सेंट्रल बैंक की नीति में बदलाव समय की आवश्यकता थी। क्योंकि बैंकों से उधार लिए बिना एमएसएमई नहीं चल सकता। दास ने एमएसएमई के लिए 25 करोड़ रुपये तक के ऋण के साथ ‘एनपीए घोषणा’ नियमों में ढील दी। आपूर्ति पक्ष पर दास ने उधार देने के संबंध में तत्काल कार्रवाई व्यवस्था को उदार बनाया। आरबीआई ने 11 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पीसीए के तहत रखा और उन्हें तब तक उधार देना बंद करने को कहा, ‘जब तक कि उनकी बैलेंस शीट स्वस्थ न हो जाए। इन बैंकों का ऋण खत्म हो गया। बैंकों ने अपनी बैलेंस शीट में सुधार किया।
शक्तिकांत दास ने नोटबंदी के दौरान सरकार का बचाव करते हुए न केवल आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई बल्कि अर्थव्यवस्था में 500 और 2,000 रुपये का नया नोट जारी करने और इसकी आपूर्ति बढ़ाने में भी अग्रणी भूमिका निभाई थी। नवंबर 2016 में नोटबंदी की घोषणा के समय ज्यादातर समय मीडिया के सामने शक्तिकांत दास ही आते थे। वित्त मंत्रालय में वह पहली बार 2008 में संयुक्त सचिव के तौर पर आए थे, जब देश के वित्त मंत्री पी. चिदंबरम थे।
कौन हैं शक्तिकांत दास
65 साल के शक्तिकांत दास 1980 बैच के तमिलनाडु कैडर के आईएएस अधिकारी हैं। इनका जन्म 26 फरवरी 1957 को हुआ था। दास ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज सेंट स्टीफेंस से इतिहास विषय से बीए और एमए किया है। एडवांस फाइनेंशियल मैनेजमेंट कोर्स की पढ़ाई आईआईएम बैंगलुरू से की है। शक्तिकांत दास ने एनआईबीएम से एडवांस बैंकिंग और इंस्टीट्यूशन में एक कोर्स भी किया है। दास ने आईआईएम कोलकाता से एक मिड लेवल का कोर्स किया है। दास वित्त मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स में जॉइंट सेक्रेटरी बजट, तमिलनाडु सरकार के राजस्व विभाग में कमिश्नर और स्पेशल कमिश्नर, तमिलनाडु के इंडस्ट्रीज डिपार्टमेंट में सेक्रेटरी और अन्य विभिन्न पदों पर रह चुके हैं। आईएएस सर्विस कोड के एक रूल के तरह महिंद्रा कंपनी में भी कुछ दिनों तक दास ने काम किया है। दास के देश के ऐसे पहले आरबीआई गवर्नर हैं, जिनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद दोबारा बढ़ाया गया है।
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