ब्रिटेन का नाम सुनते ही जो पहला विचार मन में आता है वह है अच्छी अर्थव्यस्था, राजनीतिक स्थिरता, बेहतर रोज़गार आदि लेकिन स्थिति आपकी सोच से परे है। वक्त की मार कुछ ऐसी पड़ी है कि ब्रितानिया राज में कभी न अस्त होने वाला सूरज तो छोड़िए, इन्हें चांद की चांदनी के लिए भी कठिन परिश्रम करनी पड़ रही है। डांवाडोल अर्थव्यवस्था, ज़बरदस्त महंगाई और राजनैतिक अस्थिरिता से जूझ रहे ब्रिटेन की ‘नैया पार’ कराने का बेड़ा अब ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री लिज ट्रस के कंधों पर आ गया है। जी हां, 47 वर्ष की ट्रस ब्रिटेन की अगली प्रधानमंत्री चुनी गई हैं, वो ब्रिटेन की 56वीं प्रधानमंत्री होंगी। ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी से ताल्लुक रखने वाली ट्रस ने अपनी ही पार्टी के ऋषि सुनक को लगभग 20,000 मतों से हराया।
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ट्रस का ‘बोरिस राग’
दरअसल, वर्तमान में ब्रिटेन कई संकटों से जूझ रहा है जिनमें रोज़गार और महंगाई का मुद्दा प्रमुख है और इन्हीं मुद्दों के निपटारे कि लिए ट्रस को चुना गया है। क्या पता जो काम उनके वरिष्ठ सहयोगी एवं ब्रिटेन के पूर्व प्रधामंत्री बोरिस जॉनसन नही कर पाए क्या पता वो काम ट्रस कर दें लेकिन हालात को देखते हुए तो ऐसा तो बिल्कुल भी प्रतीत नहीं होता। ऐसे में अधिक सम्भावनाएं यही है कि वो सिर्फ़ बोरिस जॉनसन का अगला संस्करण ही साबित होंगी। जिन मुद्दों को सुलझाने कि लिए बोरिस जॉनसन सत्ता में आए थे, उनमें प्रमुख मुद्दे थे ब्रिटेन में बढ़ती हुई महंगाई, घटती हुई प्रतिव्यक्ति आय एवं ब्रिटेन में राजनैतिक अस्थिरिता को दूर करना, लेकिन बोरिस इसमें बुरी तरह से रहे फेल रहे।
बोरिस जॉनसन ने अपने कार्यकाल में कई ऐसे फ़ैसले लिए जो उनकी अदूरदर्शिता को दर्शाता है, उनमें प्रमुख था ब्रिटेन का यूरोपीय यूनियन से अलग होना यानी ब्रेक्ज़िट। आम लोगों के वोटों के आधार पर जॉनसन ने ब्रिटेन को ईयू से अलग तो कर लिया लेकिन बिना उसके दूरगामी परिणाम का आंकलन नहीं लगा पाए। इन सभी का परिणाम यह हुआ कि जॉनसन को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी लेकिन जॉनसन द्वारा ब्रिटेन के लोगों को सपने बहुत ऊंचे-ऊंचे दिखाए गए थे।
उन्हीं के नक्शे कदम पर चलते हुए लिज ट्रस ने भी अपने वादों का पिटारा खोला और अब ब्रिटेन की प्रधानमंत्री भी बन गई हैं। वादों की बात करें तो ट्रस ने कहा है कि वो ऊर्जा के बढ़ते बिल को कम करेंगी और साथ ही ऊर्जा सप्लाई को बढ़ाने के क्रम में कार्य करेंगी, कोई नया कर भी नहीं लगाएंगी, आर्थिक मुद्दों से निपटने के लिए एक बेहतरीन आर्थिक सलाहकारों की नियुक्ति की जाएगी।
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क्या बोरिस जैसा होगा ट्रस का हाल?
कुल मिलाकर ट्रस ने वही बोरिस जॉनसन वाला राग अलापा है किंतु वास्तविकता से कोषो दूर बैठी ट्रस ने जो वादे किए हैं उन्हें पूरा करने के लिए शायद वैश्विक परिस्थिति अभी उनके पक्ष में नहीं है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने यूरोपीय देशों के समक्ष गहरा ऊर्जा संकट पैदा किया है। ऐसे में ऊर्जा बिल को कम करना एवं ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ावा देना मात्र वोट पॉलिटिक्स से ज़्यादा और कुछ भी नही है। ट्रस द्वारा किए गए वादों के पूरी होने की नाम मात्र की संभावनाओं से यह प्रतीत होता है कि ट्रस का हस्र भी वही हो सकता है जो बोरिस जॉनसन का हुआ था।
ऋषि सुनक का ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के रूप में न चुना जाना ब्रिटेन क लिए घातक साबित हो सकता है क्योंकि सुनक के पास नीतियां ऐसी थी, जिसे वास्तविकता के साथ धरातल पर आसानी से उतारा जा सकता था। इसी क्रम में उन्होंने कहा भी था कि ‘मैं झूठे वादे करके जीतने की बजाय हारना पसंद करूंगा।’ सुनक के पास ब्रिटेन के लिए बेहतरीन प्लान्स थे लेकिन नतीजा लिज ट्रस के हाथों में गया है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रस अपने किए गए वादों को धरातल पर उतारने में सफल सिद्ध होती भी हैं या वो मात्र बोरिस जॉनसन 2.0 बनकर ही रह जाएंगी। हालांकि, ये सारी चीजें भविष्य के गर्भ में छिपी है। बीते सोमवार को उन्हें प्रधानमंत्री चुना गया है और आने वाले कुछ ही दिनों सारी चीजें स्वत: स्पष्ट हो जाएगी।
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