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औरंगजेब ने जो फिल्म दिखाई उसकी ‘स्क्रिप्ट’ तो अकबर ने तैयार की थी, वो ‘महान’ नहीं ‘क्रूर’ था!

अकबर की इस सच्चाई से आप अवगत हैं कि नहीं!

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
16 October 2022
in प्रीमियम
akbar
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आपको क्या लगता है, मुगलों में सबसे दुष्ट, सबसे अत्याचारी कौन था? बादशाह आलमगीर यानी औरंगज़ेब? निस्संदेह आपका उत्तर यही होगा और स्वाभाविक भी है क्योंकि कर्म ही ऐसे हैं उसके, परंतु ये आधा सत्य है। तो क्या बाबर? हो सकता है, परंतु उसके पास इतना समय नहीं था? तो फिर वो कौन था जिसके कारण मुगलों में इतना सामर्थ्य आया कि सम्पूर्ण भारत पर वर्षों तक अत्याचार करे और रक्तपात का ऐसा भीषण युग ले आए जिसका न आदि हो और न अंत हो? उत्तर केवल एक है- जलालउद्दीन मोहम्मद अकबर, जिसे आज भी कुछ नासमझ और पढ़े लिखे गंवार ‘अकबर द ग्रेट’ कहते हैं।

भारत के लिए बन गया बड़ा अभिशाप

जो व्यक्ति ठीक से दो कदम चल नहीं सकता था, उसने आधे से अधिक भारत को अपने नियंत्रण में कैसे ले लिया? सोचने वाली बात है, परंतु इस बात में कोई संदेह नहीं कि औरंगज़ेब तो केवल पटकथा का निर्देशन कर था, जिसकी रचना उसके पुरखे अकबर ने की थी। सिंध के अमरकोट में जन्मा यह व्यक्ति धीरे-धीरे भारत के लिए कितना बड़ा अभिशाप बनता चला गया ये कोई स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था।

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आपको पता है बादशाह अकबर और USSR के तानाशाह जोसेफ स्टेलिन में क्या समानता था? दोनों अति शक्तिशाली थे और दोनों ही अपने काले कारनामों को सफाई से छुपाना जानते थे। उदाहरण के लिए अकबर के समय के इतिहास के लेखक अहमद यादगार ने लिखा, “बैरम खां ने निहत्थे और बुरी तरह घायल हिन्दू राजा हेमू के हाथ पैर बांध दिए और उसे नौजवान शहजादे के पास ले गया और बोला, आप अपने पवित्र हाथों से इस काफिर का कत्ल कर दें और ”गाज़ी” की उपाधि कुबूल करें और शहजादे ने उसका सिर उसके अपवित्र धड़ से अलग कर दिया।” (नवम्बर, ५ AD १५५६) (तारीख-ई-अफगान,अहमद यादगार, अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड VI, पृष्ठ ६५-६६) इस तरह अकबर ने १४ साल की आयु में ही गाज़ी(काफिरों का कातिल) होने का सम्मान पाया।

इसके बाद हेमू के कटे सिर को काबुल भिजवा दिया और धड़ को दिल्ली के दरवाजे पर टांग दिया। ऐसे ही अबुल फजल ने आगे लिखा, हेमू के पिता को जीवित ले आया गया और नासिर-उल-मलिक के सामने पेश किया गया जिसने उसे इस्लाम कबूल करने का आदेश दिया, किन्तु उस वृद्ध पुरुष ने उत्तर दिया, ”मैंने अस्सी वर्ष तक अपने ईश्वर की पूजा की है, मैं अपने धर्म को कैसे त्याग सकता हूँ? मौलाना परी मोहम्मद ने उसके उत्तर को अनसुना कर अपनी तलवार से उसका सर काट दिया।” (अकबर नामा, अबुल फजल : एलियट और डाउसन, पृष्ठ २१)

और पढ़ें- भारत के अवेन्जर्स– जिन्होंने अरबी आक्रान्ताओं को 313 वर्ष भारतवर्ष में घुसने तक नहीं दिया

स्त्रियों पर बुरी नजर

‘जोधा अकबर’ में जिस प्रकार से अकबर को न्यायप्रिय, धर्मनिष्ठ शासक के रूप में दिखाया गया है, उसका लेशमात्र भी नहीं था वो। स्त्रियों पर उसकी विशेष नजर रहती थी और उसने तो एक विशेष फरमान जारी किया था कि जो भी कन्या बिना घूंघट या हिजाब चौराहे पर दिखी, उसे अविलंब वेश्या घोषित कर दो! अब आप अब भी उसे महान कहने का सामर्थ्य रखेंगे?

इतना ही नहीं, अकबर की चित्तौड़ विजय के विषय में अबुल फजल ने लिखा था- ”अकबर के आदेशानुसार प्रथम ८००० राजपूत योद्धाओं को बंदी बना लिया गया और बाद में उनका वध कर दिया गया। उनके साथ-साथ विजय के बाद प्रात:काल से दोपहर तक अन्य ४०००० किसानों का भी वध कर दिया गया जिनमें ३००० बच्चे और बूढ़े थे।” (अकबरनामा, अबुल फजल, अनुवाद एच. बैबरिज), चित्तौड़ की पराजय के बाद महारानी जयमाल मेतावाड़िया समेत १२००० क्षत्राणियों ने मुगलों के हरम में जाने की अपेक्षा जौहर की अग्नि में स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया। जरा कल्पना कीजिए विशाल गड्ढों में धधकती आग और दिल दहला देने वाली चीख-पुकारों के बीच उसमें कूदती १२००० महिलाएं।

हिन्दू राजकुमारियों के साथ जबरन शादियां

अपने हरम को सम्पन्न करने के लिए अकबर ने अनेक हिन्दू राजकुमारियों के साथ जबरन शादियां की थी परन्तु कभी भी, किसी मुगल महिला को हिन्दू से शादी नहीं करने दी। केवल अकबर के शासनकाल में 38 राजपूत राजकुमारियां शाही खानदान में ब्याही जा चुकी थीं।

अकबर औरतों के लिबास में मीना बाज़ार जाता था जो हर नये साल की पहली शाम को लगता था। अकबर अपने दरबारियों को, अपनी स्त्रियों को वहाँ सज-धज कर भेजने का आदेश देता था। मीना बाज़ार में जो औरत अकबर को पसंद आ जाती, उसके महान फौजी उस औरत को उठा ले जाते और कामी अकबर की अय्याशी के लिए हरम में पटक देते। अकबर महान उन्हें एक रात से लेकर एक महीने तक अपनी हरम में खिदमत का मौका देते थे। जब शाही दस्ते शहर से बाहर जाते थे तो अकबर के हरम की औरतें जानवरों की तरह महल में बंद कर दी जाती थीं।

अकबर ने अपनी अय्याशी के लिए इस्लाम का भी दुरुपयोग किया था। चूंकि सुन्नी फिरके के अनुसार एक मुस्लिम एक साथ चार से अधिक औरतें नहीं रख सकता और जब अकबर उस से अधिक औरतें रखने लगा तो काजी ने उसे रोकने की कोशिश की। इससे नाराज होकर अकबर ने उस सुन्नी काजी को हटा कर शिया काजी को रख लिया क्योंकि शिया फिरके में असीमित और अस्थायी शादियों की इजाजत है, ऐसी शादियों को अरबी में “मुताह” कहा जाता है। दीन ए इलाही भी इसीलिए प्रारंभ किया गया, क्योंकि अकबर को अपने मन की करने को नहीं मिलती थी।

अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है कि “अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं और ये पांच हजार औरतें उसकी ३६ पत्नियों से अलग थीं। शहंशाह के महल के पास ही एक शराबखाना बनाया गया था। वहां इतनी वेश्याएं इकट्ठी हो गयीं कि उनकी गिनती करनी भी मुश्किल हो गयी। अगर कोई दरबारी किसी नयी लड़की को घर ले जाना चाहे तो उसको अकबर से आज्ञा लेनी पड़ती थी। कई बार सुन्दर लड़कियों को ले जाने के लिए लोगों में झगड़ा भी हो जाता था।”

और पढ़ें- राणा राज सिंह : जिनके नाम से ही आलमगीर ‘त्राहिमाम’ कर उठता था

तीर्थयात्राओं पर टैक्स

अकबर और उसके बाद के दौर का रेवेन्यू मॉडल के पीछे उसका असली रूप नजर आता है। टैक्स की स्थिति बहुत भयावह थी। रेवेन्यू का सबसे बड़ा हिस्सा कृषि से आता था और लोगों को लगभग निचोड़ ही लिया जाता था। यहां तक कि गैर मुस्लिमों से धार्मिक टैक्स भी वसूला जाता था। महान और सहिष्णु अकबर भी धार्मिक टैक्स लेता था जिसका हमारे सेक्युलर इतिहास में विवरण नहीं मिलता। कुछ लोग तो इसे मानने से इनकार भी कर देते हैं। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि यदि अकबर गैर हिंदुओं पर टैक्स नहीं लगाता था तो फिर जहांगीर के बाद शाहजहां ने क्यों इसे हटाया था? क्योंकि मौजूद इतिहास के अनुसार जहांगीर द्वारा धार्मिक टैक्स लगाए जाने की बात सामने आती है। हालांकि, शाहजहां ने अकबर द्वारा लगाए गए धार्मिक टैक्स को हटाया लेकिन उसके बेटे औरंगजेब ने अपने दादा यानी अकबर के नक्शे कदम पर चलते हुए इसे लागू कर दिया। जिसे हम जजिया के रूप में बेहतर जानते हैं।

विद्रोह का बिगुल

परंतु अत्याचार की भी सीमा होती है। अकबर के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल अवश्य बजा। निस्संदेह तब कोई एकता नहीं थी, इसलिए यह विद्रोह मुगल साम्राज्य के विध्वंस का कारण नहीं बना, परंतु कहीं रानी दुर्गावती थीं, जिसने अकबर के समक्ष अपना आत्मसम्मान बेचने से इतर अपने प्राण अर्पण करना उचित समझा। और फिर भारत के वीर पुत्र, धरती के लाल, महाराणा प्रताप के शौर्य को कैसे भूल सकते हैं? इन्होंने तो केवल मेवाड़ में रहकर अकबर के रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा दिया। वे जीते जी चित्तौड़ तो पुनः प्राप्त नहीं कर पाए, परंतु उन्होंने विद्रोह की जो ज्योति प्रज्वलित की उसे दावानल बनाकर उनके वंशजों ने मुगल साम्राज्य के विध्वंस की नींव रखी, जिसे गुरु गोविंद सिंह, लाचित बोरफुकान, छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे शूरवीरों ने अपना भरपूर योगदान दिया। ऐसे में अकबर महान अवश्य है परंतु शासक के रूप में नहीं, एक तानाशाह के रूप में जो बड़ी सफाई से अपने अत्याचार छिपा सकता था।

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