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अमेरिका की कुटिल चाल: चीन पर भारत के साथ रहो, पाकिस्तान पर ज्ञान दो

बिलावल भुट्टो ने पीएम मोदी को लेकर जो घटिया बयान दिया है, उस पर अमेरिका ने बड़ा ही गोल-मोल जवाब दिया है। समझिए, कैसे अब कूटनीति के समीकरण बदलेंगे?

TFI Desk द्वारा TFI Desk
21 December 2022
in विश्व
बिलावल भुट्टो

Source- TFI

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बिलावल भुट्टो टिप्पणी: कथित महाशक्ति अमेरिका जो पूरी दुनिया को अपने अनुसार चलाने के प्रयास करता रहता है और हर किसी को ज्ञान बांटता नजर आता है। इसी अमेरिका का समय-समय पर दोगलापन भी सामने आता रहा है। अपने स्वार्थ के लिए किसी के साथ खड़े हो जाना, अपने मित्र को दगा देना ये सब अमेरिका की पुरानी आदत रही है‌। दो देशों को भिड़ाने में भी अमेरिका को महारथ हासिल है और ये हमें रूस-यूक्रेन युद्ध में देखने को मिल ही रहा है। अमेरिका का कुछ ऐसा ही दोगलापन भारत के खिलाफ भी देखने को मिलता है।

जब भी बात चीन की आती है और भारत-चीन के बीच विवाद की स्थिति बनती है, तो इस दौरान तुरंत ही अमेरिका, भारत के पक्ष में आकर खड़ा हो जाता है। परंतु जब बात भारत और पाकिस्तान की होती है, तो अमेरिका का रूख अलग रहता है। वो भारत और पाकिस्तान को बातचीत के जरिए समस्या का समाधान निकालने का सुझाव देता रहता है और मध्यस्थता करने तक की बात करता है। ये जानते हुए भी पाकिस्तान किस तरह का देश और भारत के साथ उसके संबंध कैसे है।

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बिलावल भुट्टो की टिप्पणी पर अमेरिका की प्रतिक्रिया

देखा जाए तो पिछले एक दिनों में अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति में कुछ अहम घटनाक्रम देखने को मिले हैं। एक तरफ जहां अरुणाचल प्रदेश के तवांग में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प में भारतीय जवानों का शौर्य दिखा। इस दौरान भारत और चीन के बीच विवाद एक बार फिर से बढ़ गया। तो वहीं दूसरी ओर के साथ भी पाकिस्तान के साथ भी भारत की अंतरराष्ट्रीय मंच पर तनातनी देखने को मिली। पहले तो संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर मुद्दे को उठाया, जिस पर पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो को एस जयशंकर ने जमकर लताड़ा। वहीं इसके बाद बिना किसी कारण बिलावल भुट्टो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध विवादित और निजी हमला तक किया। अब अहम बात यह है कि इस बार फिर अमेरिका ने दोगलापन दिखाया।

सबसे पहले बात पाकिस्तान की करते हैं, जो कि सर्वाधिक चर्चा में हैं। पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी रूप से अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया। इसके बाद बिलावल भुट्टो को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। इस मुद्दे पर किसी अन्य देश का कोई बयान नहीं आया और न ही किसी ने इस पर प्रतिक्रिया दी। परंतु अमेरिका को तो आदत है हर बात पर ज्ञान बांटने की।

दरअसल, अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने बिलावल भुट्टो के विवादित बयान पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “हमारी भारत के साथ वैश्विक कूटनीतिक साझेदारी है लेकिन पाकिस्तान से भी हमारे गहरे संबंध हैं। हम इन दोनों ही देशों को एक-दूसरे से इनके रिश्तों के नज़रिए से नहीं देखते हैं।” उन्होंने कहा, “दोनों देशों के साथ हमारी साझेदारी है। हम भारत और पाकिस्तान के बीच जुबानी जंग नहीं देखना चाहते हैं। हम भारत और पाकिस्तान के बीच जरूरी बातचीत देखना चाहते हैं। हमें लगता है कि यह पाकिस्तानी और भारतीय लोगों की भलाई के लिए जरूरी है। बहुत काम है जो हम द्विपक्षीय रूप से मिलकर कर सकते हैं।”

और पढ़ें: चीन का मुकाबला करने के लिए ताइवान को कुछ इस तरह तैयार कर रहा है अमेरिका

नेड प्राइस ने आगे ये भी कहा, “भारत और पाकिस्तान के बीच ऐसे मतभेद हैं, जिन्हें निश्चित रूप से संबोधित करने की ज़रूरत है। अमेरिका दोनों के लिए एक भागीदार के रूप में मदद करने के लिए तैयार है।” अब इस पूरे कथन के सार को समझें तो अमेरिका ने ज्ञान देते हुए दोनों को शांति बनाने की अपील की है। अहम यह है कि अमेरिकी प्रवक्ता ने सच-झूठ या सही-गलत को तवज्जो नहीं दी और भारत-पाकिस्तान दोनों को एक ही तराजू में तौल दिया जो कि सही नहीं है। साथ ही उन्होंने भारत और पाकिस्तान से बातचीत करने और मध्यस्थता कराने की बात कही। जबकि वो भारत की नीति को स्पष्ट तौर पर जानता हैं कि आतंकवाद और वार्ता एक साथ नहीं चल सकती।

तवांग पर दिया भारत का साथ

अब बात तवांग मुद्दे की करें तो भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद अमेरिका ने भारत का साथ दिया। अमेरिका के पेंटागन प्रेस सचिव पैट राइडर ने कहा, “चीन हिंद प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सहयोगियों और साझेदार देशों को जानबूझकर उकसा रहा है और हम अपने सहयोगियों की सुरक्षा करने की अपनी प्रतिबद्धता पर अड़िग हैं।” उन्होंने इस मुद्दे पर भारत का साथ देने का भी ऐलान किया है। पेंटागन ने कहा, “अमेरिकी रक्षा विभाग वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) की स्थिति पर बारीकी से नजर बनाए हुए है।” अमेरिका ने LAC के पास चीन की ओर से सैन्यीकरण और सैन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण की भी आलोचना की है। पैट राइडर ने कहा, “हम अपने सहयोगियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपनी प्रतिबद्धता पर तत्पर हैं। भारत की ओर से तनाव को कम करने की कोशिश का हम समर्थन करते हैं।”

तवांग मुद्दे पर अमेरिका ने भारत का साथ दिया, यह अच्छी बात है। अमेरिका अपनी प्रतिबद्धता भारत के साथ दिखा रहा है इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती लेकिन खास बात यह है कि अमेरिका को भारत से कोई प्रेम नहीं है बल्कि उसकी समस्या चीन है। अमेरिका, चीन को दक्षिण एशिया में कमजोर करना चाहता है और इस स्वार्थ के चलते वह भारत का साथ दे रहा है जो कि कुटिलता की पराकाष्ठा है।

और पढ़ें: आतंक पर भारत को ज्ञान दे रहा था पाकिस्तानी पत्रकार, जयशंकर ने कूट दिया!

अमेरिका का दोगलापन

जब बात भारत और चीन टकराव की आती है तो अमेरिका चीन से अपनी खुन्नस निकालने के लिए भारत का समर्थन कर उसे मोहरा बनाता है। वहीं अमेरिका, भारत और पाकिस्तान के मुद्दे पर सही गलत की परिभाषा भूल शांति का ज्ञान बांटता नजर आता है और यही अमेरिका का दोगलापन है। यही कारण है कि भारतीय खुलकर कहते हैं कि रूस का विश्वास कर लो, अमेरिका का नहीं, अमेरिका धोखा देता है।

देखा जाये तो अमेरिका पाकिस्तान का शुरू से ही हितैषी रहा है। 1965 से लेकर 1971 और 1999 तक के द्विपक्षीय युद्धों में अमेरिका ने भारत का विरोध करते हुए पाकिस्तान के लिए खजाना खोल दिया। अमेरिका आर्थिक तौर पर पाकिस्तान की सहायता करता रहा है। हालांकि जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे, तब अमेरिका की इस नीति में कुछ बदलाव देखने को मिला था। उस दौरान ही भारत और अमेरिका के कूटनीतिक संबंध अच्छे भी हुए थे। पाकिस्तान पर आर्थिक प्रतिबंधों से लेकर अमेरिकी दान तक बंद हो गया। आतंकवाद के मुद्दे पर तो ट्रंप ने पाकिस्तान को पानी पिला दिया लेकिन ट्रंप गए तो फिर वही अमेरिकी नीति  शुरू हो गई। सारी मदद पाकिस्तान के लिए खोल दी गईं। F-16 तक की मेंटनेंस के लिए अमेरिका एक बार फिर पाकिस्तान की सहायता करने लगा। अमेरिका जैसा मूर्ख देश कोई नहीं होगा कि वो उस पाकिस्तान की मदद कर रहा है जो कि अमेरिका के दुश्मन चीन के सामने नतमस्तक है।

और पढ़ें: सऊदी को कर दिया लेकिन अमेरिका ने भारत को नहीं किया ब्लैक लिस्ट, वजह जयशंकर हैं

खैर यहां अमेरिका को ये समझने की आवश्यकता है कि यदि चीन के विरुद्ध भारत का साथ चाहिए, तो उसे पाकिस्तान के प्रति अपना प्रेम दिखाना बंद करना होगा। क्योंकि भारत के लिए चीन और पाकिस्तान दोनों ही दुश्मन की तरह है। अमेरिका का ये दोगलापन नहीं चलेगा। यदि अमेरिका को दक्षिण एशिया में चीन को कमजोर करने के लिए भारत की मदद चाहिए, तो निश्चित ही पहले उसे पाकिस्तान के मुद्दे पर भी भारत के साथ खड़ा होना होगा और पाकिस्तान को दी जाने वाली खैरातों पर रोक लगानी होगी।

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