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दुर्लभ तत्वों के बाजार में चीन के प्रभुत्व को कम के लिए भारत को जल्द उठाने होंगे उचित कदम

दुर्लभ तत्वों की आपूर्ति के लिए चीन पर लंबे समय तक निर्भर नहीं रह सकता है भारत, उसे इस ओर ध्यान देना ही होगा।

Yogesh Sharma द्वारा Yogesh Sharma
25 January 2023
in विश्व
Rare Earth Minerals

SOURCE TFI

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पृथ्वी में समाहित दुर्लभ तत्वों (Rare Earth Minerals) का कितना महत्व है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि हमारा आधुनिक जीवन पृथ्वी के इन दुर्लभ तत्वों पर निर्भर करता है। स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहन, पवन टर्बाइन और सैन्य उपकरण सहित आधुनिक तकनीकों की एक बड़ी श्रृंखला में ये धातु महत्वपूर्ण घटक की भूमिका में होते हैं। लेकिन चिंता का विषय यह है कि पृथ्वी के दुर्लभ तत्वों के बाजार में चीन का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा है।

दुर्लभ तत्वों का उत्खनन

बता दें कि चीन ने 2021 में 61 प्रतिशत वैश्विक दुर्लभ तत्वों (Rare Earth Minerals) का उत्खनन किया, जो कि 168,000 टन के बराबर था जो एक बड़ी बढ़त मानी जा रही है। इतना ही नहीं दुनिया के चुंबक उत्खनन का 85 प्रतिशत हिस्सा भी चीन से निकलता है। यह बढ़त चीन के एकाधिकार को और बल देने का काम करेगी। कई चीन के विरोधी देश चीन के ऊपर से अपनी निर्भता कम करने की दिशा में काम कर रहे हैं लेकिन दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के मामले में चीन से सभी देश पीछे हैं।

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चीन के पास अनुमानित 44 मिलियन टन दुर्लभ पृथ्वी भंडार है। जिसके बाद आकार में दुर्लभ तत्वों के मामले में वियतनाम, ब्राजील और भारत हैं, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका के पास केवल 1.8 मिलियन टन है। आपको बता दें कि 2021 में अमेरिका ने कुल दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का केवल 15.5 प्रतिशत उत्खनन किया, जो चीन के उत्खनन का चौथाई है।

और पढ़ें- Wolf Warrior Diplomacy में चीन पीछे नहीं हट रहा बल्कि और आक्रामक करने जा रहा है, जानिए कैसे?

दुर्लभ पृथ्वी तत्व है (Rare Earth Minerals) क्या ?

दुर्लभ पृथ्वी तत्व (Rare Earth Minerals) 17 धातु तत्वों का एक समूह है। ‘दुर्लभ पृथ्वी धातुएँ’ धातुओं के उन क्षारक ऑक्साइडों को कहते हैं जिनके तत्व के आवर्त सारणी के तृतीय समूह में आते हैं। इनमें 15 तत्व हैं, जिनकी परमाणुसंख्या 57 और 71 के बीच है। ऐसे खनिज स्कैंडिनेविया, साइबेरिया, ग्रीनलैंड, ब्राज़ील, भारत, श्रीलंका, कैरोलिना, फ्लोरिडा, आइडाहो आदि देशों में मिलते हैं, ये बहुत महंगे बिकते हैं।

दुर्लभ पृथ्वी धातुओं की एक विशेष श्रेणी होती है। बिजली से चलने वाले वाहन, मोबाइल फोन और अन्य दूसरे उत्पादों को बनाने में दुर्लभ मृदा धातुओं के ऑक्साइड का छोटी लेकिन महत्त्वपूर्ण मात्रा में प्रयोग होता है। वहीं पवन चक्की एवं सौर ऊर्जा उपकरण बनाने में भी इनका इस्तेमाल होता है। इस तरह अक्षय ऊर्जा दुर्लभ मृदा धातुओं पर निर्भर है। ऐसे आने वाले समय में दुर्लभ पृथ्वी तत्वों की मांग के बढ़ने की उम्मीद है।

और पढ़ें- चीन के Apple सप्लायर्स को मंजूरी देना क्या भारत के लिए खतरनाक कदम नहीं?

विश्व में पांचवां सबसे बड़ा भंडार

वहीं भारत का दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (Rare Earth Minerals) के भंडार के मामले में विश्व में पांचवां सबसे बड़ा भंडार है। भारत के पास ऑस्ट्रेलिया की अपेक्षा दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के दो गुने भंडार उपलब्ध हैं। बता दें कि 2018-19 के पूर्व भारत का दुर्लभ पृथ्वी धातुओं का उत्खनन लगभग औसतन 2000 टन पर स्थिर था। वहीं वर्ष 2018-19 में यह बढ़कर 4,215 टन के स्तर तक पहुंच गया था। हालांकि, भारत अधिकांश दुर्लभ तत्वों की आपूर्ति चीन से करता है, ऐसे में भारत को भी दुर्लभ तत्वों के मामले में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे काम करने की आवश्यकता है।

दरअसल, दुर्लभ तत्वों (Rare Earth Minerals) की आपूर्ति के लिए चीन पर लंबे समय तक निर्भर नहीं रहा जा सकता है। चीन के साथ सीमाई संकट के बादल छाए रहते हैं, ऐसे में यदि चीन दुर्लभ तत्व भारत को देना बंद कर देता है तो भारत के सामने मुश्किल खड़ी हो सकती है। ऐसी स्थिति से बचना है तो दुर्लभ तत्वों के लिए किसी एक देश पर निर्भरता कम करनी होगी और वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की व्यवस्था करनी होगी।

और पढ़ें- “QUAD को यह मौका नहीं चूकना चाहिए”, श्रीलंका में चीन को पटखनी देने का एकमात्र और अंतिम विकल्प

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