Rahul Gandhi NRI speech: भारतीय राजनीति के भव्य रंगमंच में, कुछ पात्र ऐसे हैं जो विस्मित करने से कभी नहीं चूकते। इन आकर्षक हस्तियों के बीच राहुल गांधी की अपनी अलग पहचान है। राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर राहुल का अनूठा दृष्टिकोण वास्तव में निरंतर विस्मय का स्रोत है। चाहे वह “waking up at night this morning” हो, या हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के मूल उत्पत्ति के बारे में विशिष्ट रहस्योद्घाटन करना हो, बात राजनीतिक व्याख्यान की हो, और श्रीमान राहुल अपना तड़का लगाए, यमपॉसिबल!
इस लेख में पढिये, कथा हाल ही में एक संबोधन (Rahul Gandhi NRI speech) के दौरान, राहुल के दिव्य ज्ञान की। इनके मुख से निकले दिव्य वाक्य कुछ इस प्रकार थे, “आधुनिक भारत के केंद्रीय वास्तुकार एक एनआरआई थे, महात्मा गांधी एक एनआरआई थे … भारत का स्वतंत्रता आंदोलन दक्षिण अफ्रीका में शुरू हुआ … नेहरू, बीआर अंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, सुभाष चंद्र बोस, सभी एनआरआई थे और उनके पास एक बाहरी दुनिया के लिए खुला दिमाग था”।
हमारे दृष्टिकोण में ही झोल है
अब निस्संदेह श्रोताओं को इस दिव्य ज्ञान समझने में युगों लग जाएंगे, परंतु फिर स्मरण हुआ कि एनआरआई की अवधारणा के बारे में हमारी समझ शायद बहुत सीमित थी। हमें ही अपने क्षितिज का विस्तार करना होगा, स्वतंत्रता सेनानियों की तरह, इस विचार को शामिल करने के लिए कि विदेशी भूमि और विचारों के संपर्क में आने वाले किसी भी व्यक्ति को एनआरआई माना जा सकता है। यही तो राहुल बाबा समझाना चाहते थे, परंतु इन जालिम बीजेपी वालों को देखिए, इसका भी मज़ाक बना रहे हैं।
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राहुल की उद्घोषणा की गहराई काफी अतुलनीय और अविश्वसनीय है। हमारे महान स्वतंत्रता सेनानी, हमें बताया जाता है, ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष में सिर्फ दिग्गज नहीं थे। वे अप्रवासी भारतीय थे जो अपने भीतर व्यापक दृष्टि और विस्तृत दृष्टिकोण रखते थे जो विविध संस्कृतियों और भौगोलिक क्षेत्रों के संपर्क से आते हैं। आर्य द्रविड सिद्धांत को महोदय ने एक नया ही दृष्टिकोण दे दिया है।
Rahul Gandhi NRI speech पर उत्पन्न भांति भांति के व्याख्यानों की एक साधारण सी व्याख्या की जा सकती है। शायद घूम फिरकर महोदय ये संकेत देना चाहते हो :
:
a) मेरे परनाना NRI थे
b) मेरी माँ NRI है
c) मैं भी NRI हूँ
उफ्फ़ ये NRI प्रेम!
यह संभावित अंतर्निहित अर्थ पूरी गाथा में एक दिलचस्प व्यक्तिगत कोण जोड़ता है। शायद यह अंतरराष्ट्रीय सामाजिक-राजनीतिक वातावरण के साथ उनके परिवार के लंबे समय से चले आ रहे संबंधों को स्मरण कराने का उनका तरीका था। या ये भी हो सकता है कि यह सिर्फ अपने वैश्विक दृष्टिकोण को सूक्ष्मता से उजागर करने का उनका तरीका था।
देखिए, क्रेडिट व्हेयर क्रेडिट इज ड्यू। उनके विचारों पर अलग-अलग दृष्टिकोणों के बावजूद, राहुल के आत्म-अवलोकन के निरंतर प्रयासों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। राजनीतिक रूप से “कमिंग ऑफ एज” की उनकी प्रतिबद्धता सराहनीय है, वो अलग बात कि इस प्रयास में ये अपनी ही विरासत पर प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं।
अहम राहुलास्मी!
इसलिए, जब हम इस नवीनतम राहुल-वाद (Rahul Gandhi NRI speech) पर हँसते हैं, तो हम उनके भव्य सिद्धांत को अपनाने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। राहुल गांधी द्वारा परिभाषित इस नई विश्व व्यवस्था में, हम सभी एक तरह से एनआरआई हैं। यह अप्रत्याशित मोड़ हमारी भारतीय पहचान में एक और परत जोड़ता है। जैसा कि हम एक वैश्वीकृत दुनिया की जटिलताओं को नेविगेट करते हैं, शायद यह एनआरआई टैग, जैसा कि राहुल द्वारा घोषित किया गया है, हमारे श्रद्धेय स्वतंत्रता सेनानियों की तरह अनुकूलन, अवशोषित और विकसित करने की हमारी जन्मजात क्षमता की याद दिलाता है।
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राहुल के ज्ञान रत्नों के साथ हमारे राजनीतिक प्रवचन की व्यंग्यात्मक भावना को जीवित रखते हुए, हम उनके अगले रहस्योद्घाटन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। तब तक, हम अपनी नई एनआरआई स्थिति का आनंद लेंगे, दुनिया को ‘बाहरी दुनिया के लिए खुले दिमाग’ से देख रहे हैं और नेहरू, पटेल, अंबेडकर और बोस की तरह वैश्विक समुदाय के साथ अपने प्रयास जारी रखेंगे।
आने वाले समय में अब अपने मानद एनआरआई प्रमाणपत्र के आगमन के लिए खुद को तैयार करें। आपने शायद इसके लिए नहीं कहा होगा, लेकिन राहुल गांधी के अनुसार, आपने इसे अपनी भारतीय पहचान के आधार पर अर्जित किया है। आखिरकार, भारतीय राजनीति के भव्य, विस्तृत आख्यान में, हम सभी वास्तव में गैर-आवासीय भारतीय हैं! तो मेरे साथ जोर से कहिए, “अहं राहुलास्मि!”
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