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वो मुगल बादशाह जो बनवाता था अपनी नग्न पेंटिंग, तवायफों की टांगों पर कराता था चित्रकारी: जब अय्याशी में डूबी गद्दी और लुटी दिल्ली

दिल्ली दरबार को ही पूरे भारत का इतिहास बताने पर तुली किताबें मुगलों के बारे में औरंगजेब पर आकर चुप क्यों हो जाती हैं?

Anand Kumar द्वारा Anand Kumar
25 November 2024
in इतिहास
रंगीला के दौर में सिर्फ ना गीत-संगीत और शायरी को बढ़ावा मिला बल्कि उसके दौर में पीर-फकीरों की गिनती भी दिल्ली में उतनी ही बढ़ गयी थी।

रंगीला के दौर में सिर्फ ना गीत-संगीत और शायरी को बढ़ावा मिला बल्कि उसके दौर में पीर-फकीरों की गिनती भी दिल्ली में उतनी ही बढ़ गयी थी।

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सबसे पहली बात तो ये है कि जिन्हें हमलोग मुगल कहते हैं, उन्हें मुगल नाम से बड़ी चिढ़ थी। वो लोग खुद को तैमूरी कहना कहलवाना पसंद करते थे। इस खानदान का जिक्र औरंगजेब के समय तक तो आता है, लेकिन उसके बाद क्या हुआ, ये कोई नहीं बताता। जिस बहादुरशाह जफर का जिक्र सुनाई देता भी है, वो तो औरंगजेब के बाद दस से अधिक पीढ़ियों के गुजरने के बाद का था। असल में ये चर्चा इसलिए नहीं होती क्योंकि औरंगजेब के जीते-जी ही, 1702 में मुहम्मद शाह रंगीला पैदा हो चुका था। कट्टरपंथी औरंगजेब जहाँ एक तरफ इस्लामिक ताकतों को बढ़ावा दे रहा था। 1661 में दारा शिकोह को इस्लाम से दूर जाने के कारण कत्ल करके जबसे वो सत्ता में आया था, तभी से उसके ऐसे प्रयास जारी थे।

औरंगजेब का मजहबी दौर

दारा शिकोह के गुरुओं में से एक माने जाने वाले सरमद को उसने बादशाह बनते ही दरबार में बुलवा लिया था। पूछताछ में सरमद को कलमा पढ़ने कहा गया था और सरमद “ला इलाहा” तक बोलकर चुप हो गए। वाक्य के इतने से टुकड़े का अर्थ होता है कोई खुदा नहीं है! दरबार में मौजूद मौलवी इस बात पर भड़क उठे और सरमद को घसीटते हुए ले जाकर उसका सर कलम कर दिया गया। असल में मौलानाओं को सरमद के नंगे घूमने से भी आपत्ति थी। उस दौर में दिल्ली में रह रहे अंग्रेज चिकित्सक बर्नियर ने जो वाकये लिखे हैं, उनसे ऐसा लगता है कि जब औरंगजेब सत्ता में आया था, उस समय केवल सरमद ही नहीं, कई फकीर दिल्ली की सड़कों पर नंगे घूमते दिख जाते थे और लोगों को ये आपत्तिजनक भी नहीं लगता था।

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अपने दौर में औरंगजेब ने इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक गीत-संगीत को हराम मानते हुए, उसपर पाबन्दी भी लगा दी थी। कहते हैं कि इसकी वजह से संगीतकार वगैरह भूखों मरने लगे और विरोध करने के लिए उन्होंने वाद्य यंत्रों का जनाजा भी जामा मस्जिद से निकाला था। सिक्खों के गुरु तेगबहादुर की हत्या के पीछे भी औरंगजेब की इस्लामिक मान्यताएं ही थीं। जब गुरु तेगबहादुर इस्लाम कबूलने को तैयार नहीं हुए तो उनके शिष्यों को अनगिनत यातनाएं देकर मारने के बाद गुरु तेगबहादुर का भी सर-तन जुदा कर दिया गया। जब पाबंदियां इतनी बढ़ रही हों तो जाहिर है अन्दर ही अन्दर जनता में विरोध भी बढ़ रहा होगा।

मुहम्मद शाह रंगीला का काल

जब 1702 में मुहम्मद शाह रंगीला पैदा हुआ तो उसका नाम रौशन अख्तर था। बाद में जब 29 सितम्बर 1719 को शाही ईमाम सैय्यद ब्राद्रान ने सत्रह साल की उम्र में ताजपोशी की तो उसका नाम अबु अल फतह नसीरुद्दीन रोशन अख्तर मुहम्मद शाह का नाम दे दिया। इतना लम्बा नाम कोई बोलना-लिखना नहीं चाहता इसलिए उनका तखल्लुस ‘सदा रंगीला’ जोड़कर उनका नाम ही मुहम्मद शाह रंगीला पड़ गया है। ऐसा नहीं है कि मुहम्मद शाह रंगीला के दौर में सिर्फ गीत-संगीत और शायरी इत्यादि को ही बढ़ावा मिला। उस दौर में पीर-फकीरों की गिनती भी दिल्ली में उतनी ही बढ़ गयी थी। यानि कि औरंगजेब ने जिन दो चीजों पर इस्लामिक पाबंदियां लगवाई थीं, उन दोनों को मुहम्मद शाह रंगीला के दौर में खूब प्रश्रय मिला।

तवायफ ने निचले हिस्से पर बनाईं फूल-पत्तियां

दिल्ली में मुहम्मद शाह रंगीला के दौर में हजरत अली, निजामुद्दीन औलिया, कुतुब साहब की दरगाह और ऐसी दूसरी दरगाहों पर उनके मानने वालों की भीड़ लगी रहती थी। संगीत के मामले में उस दौर में अदा रंग और सदा रंग का खूब नाम हुआ। यहाँ तक कि नादिर शाह ने जो दिल्ली को लूटा, उसमें भी उसकी मदद एक तवायफ कर रही थी जो अमीरों का पता बताती जाती थी और कोहिनूर हीरे के बारे में भी बता दिया था, ऐसा माना जाता है।

नूर बाई नाम की इस तवायफ के बारे में कहा जाता है कि अमीरों की ऐसी भीड़ उसकी महफिल में लगती थी कि हाथियों से सड़क जाम हो जाती थी। एक दूसरी तवायफ अद बेगम के बारे में कहा जाता था कि वो पायजामा नहीं पहनती बल्कि बदन के निचले हिस्से पर फूल-पत्तियां बना लेती हैं। ऐसी नक्काशी होती है कि कारीगरी है, पायजामा नहीं पहना, ये कोई भांप ही नहीं पाता! ये दौर शायर मीर तकी मीर की जवानी का दौर था।

नपुंसकता की उड़ी खबर तो बनवाई नग्न पेंटिंग

औरंगजेब के दौर में कला के सभी तरीकों पर जो पाबंदियां लगीं, उसमें चित्रकारी भी बंद थी। वो मुहम्मद शाह रंगीला के दौर में दोबारा जीवित हो गयी। तवायफ के पैरों पर ही नहीं, दूसरे माध्यमों पर भी चित्रकारी होने लगी। कला का रूप भी बदलने लगा। जैसे अकबर के दौर के मुगल पेंटिंग में जब चित्तौड़ पर विजय के बाद कटे सरों की मीनारें बनवाने वाली पेंटिंग में कोई खाली जगह नहीं होती। पूरा कैनवास भरा होता है। मुहम्मद शाह रंगीले के दौर में मुगल पेंटिंग (जिसे शायद तैमूरी पेंटिंग कहना चाहिए) में काफी खाली जगह और हल्के रंगों का प्रयोग होने लगा। एक तस्वीर में मुहम्मद शाह रंगीला एक कनीज के साथ सम्भोग करते नजर आते हैं। कहा जाता है कि एक बार दिल्ली में अफवाह उड़ी कि मुहम्मद शाह रंगीला नपुंसक है। उसी अफवाह को झूठ साबित करने के लिए ये पेंटिंग बनवाई गयी थी।

जाहिर ही है कि रंगीला अपने नाम की ही तरह रंगीन मिजाज का था और युद्ध आदि से उसका ज्यादा वास्ता नहीं था। अपने जीवन काल में वो सिर्फ एक बार जंग के मैदान में उतरा, जब अय्याश हो चुकी, लाख से ऊपर की मुगल फौजें करीब 55 हजार नादिर शाह की फौजों से बुरी तरह हार गयी। इसके नतीजे में दिल्ली को नादिर शाह ने जमकर लूटा था। इसे मानवीय इतिहास की सबसे बड़ी डकैती माना जाता है। उस वक्त के हिसाब से 70 करोड़, यान आज के हिसाब से दस लाख पचास हजार करोड़ रूपए की लूट ईरानी नादिर शाह के हाथ लगी थी।

रंगीले की मौत

मुहम्मद शाह रंगीला बेहिसाब शराब पीने के अलावा अफीम का भी नशा करता था। एक दिन अचानक दौर पड़ा और अप्रैल 1748 में मुहम्मद शाह रंगीला की मौत हो गयी। ये वही साल था जब नादिर शाह के ही सिपहसालारों में से एक रहे अहमद शाह अब्दाली ने हिन्दुस्तान पर हमलों की शुरुआत कर दी थी। उसके हमलों से मराठे लड़ रहे थे, इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि औरंगजेब के बाद मुगल सल्तनत का क्या हाल था। दिल्ली दरबार को ही पूरे भारत का इतिहास बनाने-बताने पर तुली हमारी वामपंथी झुकाव वाली इतिहास की किताबें मुगलों के बारे में औरंगजेब पर आकर चुप क्यों हो जाती हैं, ये मुहम्मद शाह रंगीला के नाम से पता चल जाता है।

स्रोत: मुगल सम्राट, औरंगजेब, मुहम्मद शाह रंगीला, मुगल इतिहास, इस्लामिक पाबंदियाँ, दारा शिकोह, सरमद, गुरु तेग बहादुर, नादिर शाह, दिल्ली का इतिहास, अहमद शाह अब्दाली, Mughal Emperor, Aurangzeb, Muhammad Shah Rangeela, Mughal History, Dara Shikoh, Sarmad, Guru Tegh Bahadur, Nadir Shah, History of Delhi, Ahmed Shah Abdali
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