मैं बैरी, सुग्रीव पियारा।
अवगुन कवन नाथ मोहि मारा।।
बाली की इन पंक्तियों का उत्तर तो साक्षात् श्री राम के पास भी नहीं था। फिर विनोद दुआ से इसकी आशा करना तो सरासर नाइंसाफी होगी। वैसे विनोद दुआ के नाम के साथ श्री राम का नाम लेने के लिए उनसे मांफी चाहूंगा। आशा करते है विनोद जी आप बुरा नहीं मानेंगे।
हुआ है कि आजकल दुआ साहब को भारतीय राजनेताओं पर से विश्वास ख़त्म हो गया है और कन्हैया कुमार, शैला रशीद आजकल उनके व्यावसायिक भविष्य के खेवनहार बने हुए हैं। बजरंग दल और युवा वाहिनी से नफ़रत करने वाले विनोद दुआ को आजकल भीम आर्मी में kick मिल रही है। और भीम आर्मी के चंद्रशेखर में अगर उन्हें देसी ‘चे’ नज़र आने लग गया हो तो उसमें कोई आश्चर्य भी नहीं होगा। सबके अपने तर्क होते हैं, पर लगता है दुआ साहब को भीम आर्मी के बन्दूक की नली पर लगे जले बारुद से शांति की तगड़ी दुर्गन्ध मिल रही है। और भीम आर्मी भी तड़ा-तड़ सहारनपुर को शांत करके धुआं धुआं कर रही है।
कुल मिलाकर भारत किसानों का और जवानों का देश है। एक उपजाता है दूसरा उसे साजोंता है। और इस जिम्मेदारी में आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भारत के 50% से भी ज्यादा लोग लगे हुए हैं। पर ये आधिकारिक आंकड़े वास्तविकता को नहीं बताते। सही तौर पर देश में और भी कई तरह की तमाम आर्मी है। चाहे बात कश्मीर की हो या रेड कॉरिडोर में आने वाले राज्य जैसे छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखण्ड, मध्यप्रदेश, बिहार की हो। इन तमाम राज्यों में काम कर रही तथाकथित आर्मी देश की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है। इन सब के अलावा भी कुछ आतताई केरल,महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आँध्रप्रदेश जैसे राज्यों में खुलेआम घूम रहे हैं।
वामपंथियों के गढ़, कन्नूर से शुरू करें तो ये ज़िला अपने राजनितिक हत्या के लिए ही जाना जाने लगा है। पिछले 45 सालों में में यहाँ सर्वाधिक 180 राजनैतिक हत्याएँ हो चुकी हैं। स्वच्छ हवा, साफ पानी और समानता की मांग करने वाले वामपंथी शाषित राज्य के 2008 से 2016 के अपराधों के आंकड़ों की तुलना करें तो उसमें 180% तक इज़ाफ़ा हुआ है। जहां 2008 में करीब 2.5 लाख अपराध हुए वहीँ 2016 बढ़ कर ये आंकड़ा 7 लाख तक पहुच गया है।
राष्ट्रीय अपराध सूची पर राज करने वाले राज्य केरल की अंदर स्थिति बद से बद्दतर होती जा रही है। 2015 के आंकड़ों के अनुसार जँहा उत्तर प्रदेश और बिहार में प्रति 1 लाख लोगों में अपराध दर क्रमशः 112 और 171 है, वहीँ इस सूची पर राज करने वाले केरल में इसकी संख्या 723 है। और ये सूची तब है जब ये संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है।
यदि बात करें राज्यों की GSDP तो जँहा महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटका क्रमशः पहले दूसरे और तीसरे पायदान पर आते हैं वही इन राज्यों का पड़ोसी राज्य केरल नौंवे पायदान पर आता है। नव निर्मित राज्य तेलेंगाना भी इस सूची में केरल से ऊपर आता है। भारत के पांचवें सबसे बड़े समुद्री तट वाले राज्य केरल के निम्नतर स्थिति का कारण किसी से छिपा नहीं है। नेशनल जियोग्राफी चैनल के सर्वे अनुसार केरल विश्व के 10 बेहतरीन समुद्र पर्यटन में आता है। बावजूद इसके वहां की हिंसा की वजह से विदेशी पर्यटक की अगुवाई में वो आठवें नंबर पर आता है। वही उसके पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र और तमिलनाडु उससे कहीं ऊपर हैं। यहाँ तक की बिहार और उत्तरप्रदेश भी कम संसाधन के बावजूद इस सूची में उससे ऊपर हैं। इस हिंसा का ही कारण है कि केरल को छोड़ भारत के सारे राज्यों ने अपने मानव विकास सूचकांक में तीव्र वृद्धि की है और उसके उलट केरल में इस सूचकांक में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गई है।
हाल ही में केरल में केंद्र सरकार के विरोध का बड़ा क्रूर और बर्बर तरीका सामने आया है, जँहा एक निरीह पशु की हत्या करके विरोध दर्ज कराया गया। खैर, जिस राज्य में मनुष्यों का ऐसा हाल हो उस राज्य में पशु हित की बात करना तो बेमानी ही लगता है।
इस पूरे प्रकरण में गौर करने लायक यह है कि ये कृत्य उनके द्वारा किया गया है जो भारत में लोकतंत्र बहाल करने का तथाकथित तमगा लिए घूमते है। वैसे ऐसे बर्बर और घिनौने कृत्य के बावजूफ भारत के किसी भी पशुचिन्तक ने इसकी निंदा करने की जहमत तक नहीं उठाई, विरोध तो बहुत दूर की बात है।
ये बड़ा चिंता का विषय है कि हमारे लिए हमारी सरकार की कामयाबी इसी पर निर्भर करती है कि कौन कितनी बर्बादी रोक पाता है। दुर्भाग्यवश पिछले कुछ सालों में सरकार ने इनसे निपटने के लिए बीच का रास्ता निकल लिया। सरकार ने इन उपद्रवियों से सुलह कर ली। उनको भरोसे में लेने के लिए उनके तमाम बेबुनियाद मांगों को माना गया। उन्हें खैराते बाटी गई। जिसका भुगतान अब हमें करना पड़ रहा है। कश्मीर में जिस तरह हुर्रियत नेता 400 करोड़ में हिंसा को भड़काने का सौदा करता है वो इसका ताज़ा उदाहरण है। एक चैनल के किये स्टिंग में हुर्रियत नेता नईम खान ने खुद गिलानी के पाकिस्तान और हाफिज सईद से सम्बंध को उजागर किया है। दरअसल ये वाकया सिद्ध करता है कि कश्मीर में दिख रहा आतंक वहां के कश्मीरियों के द्वारा नहीं है, बल्कि ये तो पाकिस्तान आयातित है। और जब इसका खुलासा पुरे विश्व के सामने हो रहा है तब सारे सेक्युलर बधुओं की कलई खुलती नज़र आ रही है। खैर अभी एन आई ए ने जांच शुरू कर दिया है और इस सड़ान्ध से और और बदबू निकालनी बाकि है।