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एक देश एक बोर्ड: भारत में व्याप्त समस्त बोर्डों का विलय कर एक बोर्ड का निर्माण 

Dev Desai द्वारा Dev Desai
6 July 2017
in समीक्षा
शैक्षणिक बोर्ड
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1 जुलाई की मध्यरात्रि को जब सारी दुनिया मीठी नींद सो रही थी, तब भारत फिर जागा था, अब की बार अपनी आर्थिक स्वतन्त्रता का सीधा प्रसारण देखने के लिए, उसी संसद के केन्द्रीय भवन, जहां से हमारी स्वतन्त्रता की घोषणा हुई थी। ये निश्चिंत ही हमारे स्वतन्त्रता के पश्चात सबसे व्यापक आर्थिक सुधारों में से एक है।

जीएसटी ने वो प्राप्त किया जो सरदार पटेल ने राष्ट्रीय स्तर पर भूमि के मसले में किया था – सम्पूर्ण एकीकरण। ऐसे ही आवश्यकता है हमें अब शैक्षणिक बोर्डों के वर्तमान मायाजाल को हटाकर एकमुश्त बोर्ड बनाने का, जिससे ये एकीकरण सबसे मूलभूत स्तर पर भी प्राप्त हो सके, जब हमारे देश के भावी नागरिकों की नींव रखी जा रही हो।

वर्तमान परिदृश्य और समस्याएँ :-

अभी वर्तमान में 50 से भी ज़्यादा मान्यता प्राप्त शैक्षणिक बोर्ड व्याप्त हैं भारत में, जिनमें राज्य स्तर के शिक्षा बोर्ड्स, आईसीएसई और सीबीएसई जैसे राष्ट्रीय बोर्ड, आईबी और आईजीसीएसई जैसे अंतर्राष्ट्रीय बोर्ड एवं एनआईओएस जैसे ओपेन स्कूलिंग बोर्ड शामिल हैं। हर बोर्ड का अपना समय सारिणी, अपना पढ़ाने का तौर तरीका और अपनी ही करीकुलम होता है, जिससे कई मोर्चों पर समस्याएँ आती है।

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प्रथमत्या, इन शैक्षणिक बोर्डों के अलग अलग शैड्यूल होते हैं [जैसे राष्ट्रीय बोर्ड अपनी कक्षाएँ अप्रैल में शुरू करते हैं, जबकि महाराष्ट्र का राज्य बोर्ड जून से अपनी कक्षाएँ शुरू करवाता है ], जिससे विद्यार्थियों को देश में एक जगह से दूसरे जगह जाना पड़ता है अपनी समस्याओं का निस्तारण करने। दूसरा, भाषा किस तरह पढ़ाई और कितनी पढ़ाई, इसकी नीतियाँ बनाने में ज़मीन आसमान का फर्क पड़ता है। जैसे सीबीएसई 8वीं दर्जे तक 3 भाषा वाले नियम पर चलता था, और फिर बाद में सिर्फ दो भाषाओं वाले नियम का पालन करते हैं, जबकि राजकीय बोर्ड 3 भाषाओं वाले नियम को 12वीं कक्षा तक बरकरार रखते हैं, जिसमें अंग्रेज़ी, हिन्दी और राजकीय भाषा पढ़ाने और पढ़ने को मिल जाती है, जो सीबीएसई वाले विद्यालयों को बिरले ही नसीब होता है। यहाँ तक की आईसीएसई शेक्सपियर जैसे कलाकारों के कृत्य गिनाते हैं। तीसरा, मूल्यांकन योजना में भी इन बोर्डों में ज़मीन आसमान का अंतर है – जहां कुछ बच्चों पर खूब उदारता दिखा उन्हे 90 पार के स्कोर देते हैं, वहीं कई कई जगह पर 90 लाना किसी जंग जीतने से कम दुष्कर नहीं प्रतीत होता। ये एक ऐसा मैदान बनाती है जो बिलकुल भी समतल नहीं है, खासकर जब ऐसे कॉलेज में प्रवेश लेना हो, जहां एंट्रैन्स एग्ज़ाम्स न लिए जाते हों।

सबसे अहम है इन बोर्डों में व्याप्त शैक्षणिक असमानता , जो कई स्तर पर समस्याएँ खड़ी करता है। सर्वप्रथम समस्या है आप्रवासी विद्यार्थियों के लिए। दूसरी, इतिहास जैसे विषयों में, राज्य बोर्ड का केंद्र राज्य के इतिहास पर ज़्यादा होता है, जबकि सीबीएसई या आईसीएसई के विद्यार्थी काफी कुछ नहीं पढ़ पाते हैं, और शिवाजी महाराज, पूर्वोत्तर के नायकों और क्रांतिकारियों के किस्से, विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय की कहानियाँ भी नहीं पढ़ पाते। तीसरा, जब बात आती है नीट जैसे परीक्षाओं की , तो राजकीय बोर्ड के विद्यार्थियों को ज़्यादा दिक्कतें उठानी पड़ती हैं, क्योंकि नीट की परीक्षा का पाठ्यक्रम अधिकतम एनसीईआरटी के सिलैबस से उठाया जाता है,। हैरानी की बात है की हमने परीक्षाओं को एकमुश्त बनाया, बजाए की पहले पाठ्यक्रम सभी विद्यार्थियों के लिए एकमुश्त बनाने के।

आगे बढ्ने की संभव दिशा:-

ऐसे परिदृश्य में ये अवश्यंभावी है की देश के समस्त विद्यालय एक ही शैक्षणिक बोर्ड की छत्रछाया में आ जाएँ। जीएसटी काउंसिल की तरह केंद्र, राज्य और विशेषज्ञों की एक टोली के आपसी बातचीत और चर्चे से इसके गूढ समस्याओं का हल निकाला जा सकेगा। जैसे जीएसटी ने देश को एकमुश्त बाज़ार का उपहार दिया है, वैसे ही यह कदम इस बात की पुष्टि करेगा की सारे विद्यार्थियों को समान शिक्षा  और उन्हे कल के भावी नागरिकों में परिवर्तित किया जा सके।

सामाजिक अध्ययन और भाषाओं के मामले में कुछ अडचने आ सकती है, सो ऐसे में एकमुश्त 3 भाषा की नीति को देश में लागू करना चाहिए। अंग्रेज़ी और हिन्दी के अलावा बच्चा अपने राज्य की स्थानीय भाषा भी पढ़ेगा और समझेगा और जिनकी मातृभाषा ही हिन्दी हो, वो कोई और भारतीय भाषा भी पढ़ सकते हैं। इतिहास का पाठ्यक्रम भी इस तरह विस्तृत किया जा सकता है, जिससे कश्मीर से कन्याकुमारी और डिब्रुगढ़ से द्वारका तक भरपूर प्रतिनिधित्व का अवसर मिले।

जब इन कदम पर अमल किया जाएगा, तब ये सुनिश्चित करेगा की कोई लड़का, जिसके माँ बाप का दिल्ली से मुंबई अगर तबादला हुआ है, तो वो उन्ही किताबों और कोर्स में नए स्कूल में प्रवेश ले सकता है जिसमें वो पहले था। फिर एक बोर्ड का दूसरे बोर्ड के परीक्षा से ज़्यादा नंबर देने का सिस्टम भी चला जाएगा, और इस तरह अखंड भारत का जो स्वप्न सरदार पटेल ने देखा था, उसे पूरा करने की दिशा में ये अगला कदम होगा। ये जीएसटी के पश्चात मोदी जी का अगला अहम सुधार हो सकता है।

Tags: शैक्षणिक बोर्ड
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