ऐसे समय में जहां सोच को बदलते पलक भी नहीं झपकती, वहाँ पर एक अनिल कुंबले का इस्तीफा, जो भारतीय क्रिकेट को प्रगति के पथ पर चलाने नहीं, दौड़ाने वाला था, खटकेगा तो ज़रूर। आप एक बार के लिए ये भी सोचने के लिए एक पल ही सही, पर रुकेंगे, और इस बात पर गौर भी करेंगे की इस निर्णय के पीछे असल में कारण क्या है?
भारतीय क्रिकेट में विराट कोहली एक काफी दिलचस्प अध्याय, जो हाल में उभर कर सामने आया हैं। जो अकेले दम उसने भारतीय क्रिकेट को नित नए आयामों पर पहुंचाया है, उसका अभी के लिए कोई सानी नहीं दिख रहा। पर जिस टीम में कुछ ही सालों में विश्वविजेता बनने का दमखम है, उसके लिए इनकी अपने कोच से मतभेद, जो चैपल युग की यादें ताज़ा करता है, बिलकुल भी उपरयुक्त नहीं है, और विराट भाई की छवि को भी धूमिल करने के लिए काफी है।
बहरहाल बात चाहे जो हो, कुम्ब्ले तो अब निकल चुके है, वो करते हुये जो कोई भी समझदार क्रिकेटर अपनी प्रतिष्ठा बरकरार रखने के लिए करता है। एक पाठक के तौर पे आप स्वतंत्र रूप से कुंबले के इस निर्णय का आंकलन कर सकते हैं, और ये भी सोच सकते हैं की कहीं कुंबले का अहम भारत को क्रिकेट में बढ़ता देखने की जीजीविषा पर भारी तो नहीं पड़ गया? पर चूंकि एक हद भारतीय क्रिकेट की जनता का प्रतिनिधित्व करने की प्रतिबद्धता भी संदेहास्पद है, इसलिए इस विषय में आप को कुंबले के बारे में सोचना अवश्यंभावी है।
वहीं दूसरी तरफ कोहली इस पूरे मसले पर चुप्पी साधे बैठे हैं और किसी आदर्शवादी ढोंगी की भांति कुछ भी बोलने से इंकार कर रहे हैं, ये ज़ाहिर करते हुये की अनिल भाई के लिए उनके मन में बड़ा सम्मान है। अगर एक तटस्थ दृष्टि से देखा जाये तो ये काफी समझदारी भरा निर्णय है। 20 साल के बाद जब ये अपनी आत्मकथा लिखेंगे, तब ये कहानी खूब बिकेगी, पर अभी के लिए इस रैसिपि के इनकी इज्ज़त का फ़लूदा बनना नहीं रुकेगा।
इन सबके बीच में, एक आदमी ऐसा भी हैं, जो इस पूरे नाटक का सूत्रधार है। वही व्यक्ति, जिसके जोशीले, मुखर आवाज़ ने यह घोषणा की थी, ‘धोनी हैस फ़िनिश्ड इट ऑफ इन स्टाइल”, जब महेंद्र सिंह धौनी ने गगनचुंबी छक्का लगाते हुये भारत को 28 साल बाद विश्व कप में विजय दिलाई थी। रवि शास्त्री इनका नाम है, जो टीम के इर्दगिर्द हमेशा घूमते रहे हैं।
इनका प्रस्तुतकर्ता और कमेंटेटर के तौर पर भूमिका हमेशा इनको इसी बिरादरी के साथ रखता है, और साथ ही साथ इनकी टीम के साथ भी अच्छी ख़ासी दोस्ती है, विशेषकर कप्तान कोहली के साथ। कभी कभी इनकी वाचाल प्रवृत्ति, जो इन्हे कोच के पद के लिए अनुपयुक्त बना सकती है, क्योंकि इस कार्य में थोड़े राज़ रखना भी अवश्यंभावी होता है, परंतु शास्त्री का बतौर टीम निर्देशक इनका कार्यकाल काफी सफल रहा।
जो आक्रामकता रवि शास्त्री इस मंच पर लाये, वो कमाल का था, खासकर ऑस्ट्रेलिया में, जहां कोहली की कप्तानी में भारत ने ज़ुबान से सही, पर ऑस्ट्रेलिया के छिछोरेपन को मुंह तोड़ जवाब दिया।
पर जैसे ही कार्यकाल खत्म हुआ, वैसे ही बीसीसीआई ने नए आवेदनों के लिए पद को सार्वजनिक किया। क्योंकि रवि शास्त्री आवेदकों में से एक थे, इसलिए तब तक सब कुछ बढ़िया था, और तो और नई क्रिकेट सलाहकार समिति में कप्तान का भी बोलबाला था। पर जैसे ही कुंबले ने आवेदक के तौर पर प्रवेश किया, पूरा पासा पलट गया। जिसने भी तमीज़ से 90 के दशक का क्रिकेट देखा और समझा है, बड़े अच्छे से जानता है की अनिल कुंबले की क्या अहमियत है देश और टीम दोनों के लिए। सिर्फ खिलाड़ी के तौर पर नहीं बल्कि एक आदर्श मिसाल के रूप में कुंबले का कोई सानी नहीं, और जब ऐसा नाम सामने हो, तो इनके हमसाथी और समिति के मुख्य चयनकर्ता:- सौरव गांगुली, सचिन तेंदुलकर और वीवीएस लक्ष्मण कैसे माना कर सकते? बस, कुंबले के अपार अनुभव ने उन्हे कोच के पद के लिए उपयुक्त बनाया।
रवि शास्त्री बस इसी को नहीं पचा पाये। अफवाहें उड़ी की समिति के इस निर्णय से वो काफी खफा थे और गांगुली ने ये इंटरव्यू विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवायी। अब नोच खसोट शुरू हुई।
बहरहाल, कुंबले ने पीछे की बंदरबाट को धता बताते हुये बतौर कोच टीम में प्रवेश किया। तब एक ट्वीट में बड़ी गर्मजोशी से कोहली दद्दा ने इनका स्वागत किया, और इसी साल इस विवाद के इसे हटा भी दिया। इनके अंदर भारत हर श्रंखला में विजय श्री प्राप्त करने लगी। सब कुछ सही जा रहा था।
पर अचानक से, पता नहीं कहाँ से, अफवाहें उड़ाने लगी की कोहली और कुंबले में चॅम्पियन्स ट्रॉफी से पहले मतभेद उभर रहे हैं। जहां कोहली ने इन्हे तुरंत दरकिनार किया, कुंबले के इस्तीफे ने इसमें आग में घी डालने के समान कार्य किया। अब नए कोच के लिए तलाश फिर शुरू हो गयी, जिसमें कई विदेशी नामों ने आवेदन किया। बहती गंगा में हमारे विस्फोटक बल्लेबाज़ वीरेंद्र सहवाग भी हाथ धो लिए, और एक दिन जब बीसीसीआई ने आवेदनों की डैडलाइन आगे बधाई, तभी अचानक से रवि शास्त्री ने फिर से आवेदन भरा।
अब ज़रा आप कड़ियों को जोड़े, तो ज़्यादा सोचने की आपको ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी। कोहली की आक्रामकता और रचनात्मक विचारों चाहे जितनी अपार हो, वे अभी तक रवि शास्त्री के ड्रेस्सिंग रूम में बिताए गए दिनों से उभरे नहीं है। अगर कोच या निर्देशक के तौर पर इनकी वापसी होती है, तो निश्चिंत तौर पर कोहली सबसे प्रसन्न होंगे। पर कुंबले की शास्त्री जगह लें, ये तो कुछ ज़्यादा ही हो जाएगा। ये एक बड़ी साजिश की तरफ भी संकेत देती है। कुछ को यह महसूस हो रहा है की कुंबले के कार्यकाल में कोहली और कोच के बीच खटास कुछ ज़्यादा ही बढ़ गयी थी।
और अब क्योंकि रवि शास्त्री ने दोबारा से आवेदन किया है, तो चक्कर क्या है भाई? बीसीसीआई को ऐसी ओछी राजनीति से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए? जिसने कोच के पद से एक महान क्रिकेटर को हटने पर मजबूर किया, ऐसी ओछी राजनीति का क्या काम?
क्या हम रवि शास्त्री के आगे नहीं बढ़ सकते, और ऐसे व्यक्ति को ढूँढे, जिसके पास नयी सोच, नए विचार हों? अगर खबर पक्की है, तो सहवाग को अंदरूनी क्षेत्र से मदद मिल सकती है। पर क्या इन्हे अनदेखा किया जा सकता है? हो सकता है, क्योंकि कोहली ने तो अपनी असलियत जगजाहिर कर दी है, और वे शास्त्री की जेब में समा गए हैं। चौंकिएगा मत अगर शास्त्री साहब, जिनहे पता है की टीम को क्या चाहिए, अगले महीने से कमेंटरी बॉक्स से नदारद मिले।