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69 वर्षों के बाद मिला, हैदराबाद को उसका नया निज़ाम

Mayura Rao द्वारा Mayura Rao
17 November 2017
in मत
के-चंद्रशेखर-राव-निजाम-तेलंगाना
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पूरा विश्व अविश्वास के नजरिए से देख रहा है- सऊदी अरब में एक राजकुमार के बाद दूसरा राजकुमार हिरासत में लिया जा रहा है, वहीँ हमारे अपने के चंद्रशेखर राव, भारत के २९ वें राज्य तेलंगाना के मुख्यमंत्री, अपने छोटे राज्य को छोटा सऊदी अरब बनाने के लिए तैयार हैं। जबकि राज्य अभी नया है, इस राज्य के राजनेता राजनीति के खेल में नौसिखिए नहीं हैं।

के. चंद्रशेखर राव शासित तेलंगाना ध्रुवीकरण की राजनीति का नया अखाड़ा है, उन्होंने अपने नागरिकों की मूल-निवासिता का पता लगाने के लिए तेलंगाना में जातीय वर्गीकरण जैसे एक सर्वेक्षण की रूपरेखा खींचने का आदेश दिया।

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सर्वेक्षण मूल रूप से लोगों की सूची तैयार करने के लिए और उनकी जन्मभूमि की पहचान करने के लिए सोंचा गया था, ताकि तेलंगाना के मूल निवासियों को राज्य की योजनाओं का लाभ मिले।

भेदभावपूर्ण और अलगाववादी सर्वेक्षण पर बहुत हंगामा हुआ, हो-हल्ले के बाद फार्म में से कुछ प्रश्नों को खारिज कर दिया गया, इस बेहुदे सर्वेक्षण की वजह से तेलंगाना को २ दिनों तक बंद करने का आदेश दे दिया गया। ऐसा आदेश लोकसभा चुनाव के दौरान भी नहीं दिया गया था।

राज्य ने न केवल इस सर्वेक्षण में जनता के करोड़ों रूपए खर्च किए बल्कि बाजारों ने २ दिन की बंदी के कारण आर्थिक नुकसान भी उठाया, हालांकि, सर्वेक्षण की उपयोगिता के बारे में मंथन के बाद ऐसा कोई नतीजा सामने नहीं आया की इस सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त डेटा से सरकार को कोई सहायता मिली भी या नहीं।

भारतीय राजनीति में जाति और उप-जातियों की राजनीति नई नहीं है, लेकिन अगर किसी को तेलुगु भूमि में जाति की राजनीति की जटिलता को समझना है, तो निजाम के रेड्डी और वेलमा जमींदारों के द्वारा करवाए गए दमनकारी और क्रूरता भरे शासन को आज के दिनों में भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

के चंद्रशेखर राव वेलम्मा जाति के हैं, जो आसफजाही वंश (निजाम) के प्रति वफादार थे, जिन्होंने पहले निजाम के शासन (बहामनी सुल्तान) की स्थापना में बड़ी भूमिका निभाई थी। यह निजाम और हिंदू जमींदारों के बीच एक व्यवस्था थी, जो सत्ता और धन के लिए अपने लालच में कमजोर हिंदू भाइयों का साथ छोड़ देते थे। हैदराबाद की रियासत में निजाम के माध्यम से दमनकारी हिंदू जमींदारों का शासन था और आज भी इसका ही एक स्पष्ट उदाहरण है।

के चंद्रशेखर राव को उनकी मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति के कारण हैदराबाद के नए निजाम के रूप में संदर्भित किया जा रहा है।

मुख्यमंत्री के रूप में अपने ३ वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने मुस्लिम समुदाय पर पहले से ही बहुत रकम बरसाई है। उन्होंने एक विशेष औद्योगिक एस्टेट और मुसलमानों के लिए एक अलग आईटी कॉरिडोर की मांग की है (यह नहीं भूलना चाहिए कि वह नायडु के नेतृत्व वाली टीडीपी सरकार के दौरान आईटी लॉबी के खिलाफ थे), उन्होंने खुद के पेशे में लगे मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए १०० % सब्सिडी की पेशकश की हैं, मुस्लिम क्षेत्रों (पुराना शहर) के पुनर्निर्माण और मरम्मत के लिए भी धन देने की घोषणा भी की है।

इन क्रांतिकारी मुख्यमंत्री ने १० एकड़ में फैले हैदराबाद इस्लामी सांस्कृतिक कन्वेंशन सेंटर का निर्माण करने का वादा किया है, राव साहब पहले ये टिप्पणी कर चुके हैं कि तेलंगाना निजाम के काल में सुनहरे पल बिता रहा था, लेकिन अब भारतीय शासन के अंतर्गत यहाँ बड़ी गरीबी है। जबकि उनकी बेटी सोचती है कि कश्मीर और तेलंगाना अलग-अलग संस्थाएं हैं, मुख्यमंत्री होते हुए भी उन्होंने व्यक्त किया कि हैदराबाद के निजाम जो विभाजन के बाद भी पाकिस्तान में शामिल होना चाहते थे, वह विकासपुरुष थे। के चंद्रशेखर राव की मुस्लिम निष्ठा जिन्ना को शर्मसार कर सकती है।

लेकिन इस मुस्लिमपरस्ती का क्या कारण है?

भारत पाकिस्तान के विभाजन के बाद भी, हैदराबाद जो निजाम द्वारा शासित था, वह भारत में सम्मिलित होने के लिए तैयार नहीं था। आज के आईएसआईएस की समतुल्य रजाकार सेना ने निजाम के देख रेख में राजनीतिक और प्रशासनिक विरोध का नेतृत्व किया। निजाम की वास्तविक सेना में केवल २२००० लोग शामिल थे, जबकि अनौपचारिक सेना रजाकार में लगभग ३००००० लोग शामिल थे। हैदराबाद की राज्य की आबादी, जिसमें महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में ८५ % हिंदू शामिल थे, १२ % मुस्लिम उन पर हावी थे, क्योंकि सभी सत्तारूढ़ पदों पर केवल मुसलमान ही शासक थे।

यह हिंदू बहुमत के बीच सत्ता के संचालन के लिए निवेशित धार्मिक आस्था की कट्टरता और क्रूरता के बारे में बताता है। दुर्भाग्य से यह विघटन, विभाजन, सहिष्णुता या हिंदुओं की रक्षात्मक निराधारता को भी दर्शाता है जिसका निजाम के शासन के २५० वर्षों में एक धर्मनिरपेक्ष दासता के लिए उपयोग किया गया था।

स्वतंत्रता के बाद भी हैदराबाद के निजाम ने एक स्वतंत्र संवैधानिक राजतंत्र रहने में संयुक्त राष्ट्र संघ से सहायता की माँग की थी, ताकि मौका मिलते ही कुछ समय बाद पाकिस्तान में शामिल हुआ जा सके। विराम समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भी जिसपर साफ़ लिखा था कि हैदराबाद पाकिस्तान में शामिल नहीं होगा, निजाम ने दो अध्यादेशों को पारित किया, पहले अध्यादेश में हैदराबाद के सभी निर्यातों को भारत के अन्य हिस्सों में अवरूद्ध करने की माँग की गई थी, जबकि दूसरे अध्यादेश में हैदराबाद में भारतीय मुद्रा को अवैध घोषित करने की माँग की गई थी। उपरोक्त तथ्य न केवल भारत के प्रति उनके विश्वासघात को दर्शाता है बल्कि उस सिद्धांत को भी खोखला साबित करता है जिसमें निजाम रजाकरों के सामने स्वयं को असहाय बताता था दरअसल में रजाकारो का इस्तेमाल सिर्फ उसके दमनकारी शासन के खिलाफ हिंदू जनता के किसी भी विद्रोह को रोकने के लिए था।

निजाम के अत्याचारों के खिलाफ किसानों के विद्रोह के लगभग ७० साल बीत चुके हैं, जिन्होंने उसको झुकने पर मजबूर कर दिया था, लेकिन कोई सबक नहीं सीखा गया है और सामंतवादी दिमाग अभी तक सामंतवादी हिंदू प्रशासकों के रूप में निरंतर शासन कर रहा है, जिनको इस्लामिक और ईसाई अलगाववादियों द्वारा निर्देशित किया जाता है।

१२ प्रतिशत (अल्पसंख्यकों) वालों को जिन्होंने ८५ प्रतिशत वाले हिन्दू समुदाय को दशकों तक दबा कर रखा था, उन्हें के चंद्रशेखर राव में एक अलगाववादी  मसीहा दिख रहा है. के चंद्रशेखर राव  ने उर्दू को दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में घोषित किया है, वे वक्फ अधिनियम के लिए तथा शिक्षा और रोजगार में मुसलमानों के लिए १२ प्रतिशत आरक्षण के लिए प्रयास कर रहे हैं।

पाकिस्तान के निर्माण में एक महत्वपूर्व भूमिका निभाने वाले जिन्ना, ब्रिटिशों की तरह कपड़े पहनते थे और देखने में ईसाई लगते थे, उनके अन्दर एक हिन्दू का रक्त था, एक मुस्लिम की तरह सोंचते थे, फिर भी उन्होंने विभाजन पर जोर दिया क्योंकि यह सत्ता चलाने के बारे में अधिक और धर्म के बारे में कम थी जो कि आज राव सरकार के बारे में सत्य प्रतीत होता है।

Tags: के. चंद्रशेखर रावतेलंगानानिजाममुस्लिम तुष्टिकरणहैदराबाद निजाम
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