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क्या गडकरी बन सकते हैं वह भगीरथ जिसकी प्रतीक्षा गंगा कर रही है?

Sanghamitra Purohit द्वारा Sanghamitra Purohit
5 December 2017
in Uncategorized
गंगा गडकरी
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गंगा नदी को सनातन धर्म में बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। अति प्राचीन समय से गंगा नदी ने न केवल अपने जल से बल्कि अपने क्षेत्र में फसलों द्वारा लाखों भारतीयों का पालन पोषण किया है।  गंगा नदी को देवी माँ के रूप में सम्मान दिया गया है। जो हमें जीवन प्रदान करती हैं, हमारे पापों को धोती हैं और हमारी आत्मा को पवित्र करती हैं। दुनियाभर के हिंदुओं के लिए गंगा नदी देवत्व से समागम का एक मार्ग है। हमारी मृत्यु कहीं भी हो लेकिन यदि हमारी राख को गंगा में प्रवाहित किया जाता है तो हमें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

प्राचीन शास्त्रों में हमें राजा भगीरथ की कठिन तपस्या के बारे में एक रोचक कहानी मिलती हैं, जो अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलवाने के लिए गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने में सफल होते हैं।Gadkari Ganga

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गंगा नदी का महत्व और इनका विशेष आदर हमेशा से ही  सनातन धर्म का एक विशिष्ट लक्षण रहा है लेकिन एक कटु सत्य यह भी है कि इस नदी का प्रदूषण और इसके आसपास के क्षेत्रों का प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है।

लगातार बढ़ते हुए जनसंख्या के स्तर और औद्योगीकरण के घातक प्रभाव ने गंगा में दम घोटने वाला प्रदूषण पैदा कर दिया है।  १९८५ में प्रदूषण का स्तर  पहली बार राष्ट्रव्यापी रूप से ध्यान में आया जब नदी में आग लग गई। हाँ, कानपुर में एक धूम्रपानकर्ता द्वारा माचिस की तीली फेकने से नदी में एक बड़े पैमाने पर आग लग गयी। नालों से छोड़े गये गंदे पानी में ठोस कचरा और ज्वलनशील विषाक्त गैसें बहुत अधिक मात्रा में थीं जिससे कि आग बुझाने में लगभग ३० घंटे लग गए। इसके बाद पर्यावरणविद, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता एम.सी. मेहता ने एक प्रसिद्ध जनहित याचिका दायर की, जिसे “एम.सी. मेहता” बनाम “भारत का संघ” के नाम से जाना जाता है। उन्होंने कानपुर के सभी ७५ चमड़े के कारखानों, उत्तर प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और कानपुर नगर निगम को इसके लिए उत्तरदायी ठहराया। एक ऐतिहासिक निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी समितियों को आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा और कानपुर के चमड़े के कारखानों को ये निर्देश दिया कि या तो कानूनों का पालन करें या फिर इन कारखानों को बंद कर दें।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, कई अन्य सरकारों ने भी सम्बन्धित कार्यक्रमों की शुरुआत की और गंगा को साफ़ करने के मिशन के साथ जुड़ गये। इन सभी योजनाओं पर अरबों रुपये खर्च किए गए लेकिन जमीनी स्तर पर इसका कोई महत्वपूर्ण बदलाव दिखाई नहीं दिया। इसके बावजूद भी उद्योगों और चमड़े के कारखानों ने ठोस अपशिष्ट, जहरीले पानी और जैव-कचरे को छोड़ना जारी रखा। किसी भी कठोर कार्यवाही और जागरूकता अभियानों की कमी के कारण लोगों ने घरेलू अपशिष्ट, धार्मिक मूर्तियों और आधे जले शवों को नदी में विसर्जित करना जारी रखा। अतः सभी कार्यक्रमों और समारोहों के बाद भी जमीनी स्तर पर इसके परिणाम अभी भी शून्य थे।

गंगा की सफाई करने के लिए न तो धनराशि की कमी रही और न ही योजनाओं और मिशनों की कमी रही। गंगा की सफाई योजना या जीएपी चरण-1 को अस्सी के दशक में राजीव गांधी द्वारा शुरू किया गया था, इसके बाद १९९३ में जीएपी चरण २ शुरू किया गया लेकिन इसके कोई प्रत्यक्ष परिणाम नहीं मिले। गंगा प्रदूषित ही रही, यह इस धरती की पांचवी सबसे प्रदूषित नदी है।

इसके पर्यावरण, जनसांख्यिकीय और जैविक प्रभाव बहुत ही वृहत्काय हैं। निम्नलिखित को धयान मे रखते हुए:

–>ये नदी उत्तराखंड में गो-मुख से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में समाप्त हो जाती है। ये कुल २५०० किलोमीटर का जलमार्ग है।

–>मुख्य सहायक नदियों सहित गंगा नदी की घाटी का कुल क्षेत्रफल ८,६०,०० वर्ग किलोमीटर है।

–>सहायक नदियों, कृषि और औद्योगिक निर्भरता को देखते हुए पूरी भारतीय आबादी का लगभग ४०% भाग गंगा पर ही निर्भर है।

–>सभी उद्योगों, कृषि और आजीविकाओं की ७०० अरब अमेरिकी डालर की जीडीपी इसी नदी पर आश्रित है।

यदि उपर्युक्त बिंदुओं ने गंगा का आर्थिक महत्व स्पष्ट किया है, तो आइए इन बिंदुओं पर विचार करें:

–>विश्व बैंक के एक सर्वेक्षण के अनुसार, उत्तर प्रदेश में १२ प्रतिशत बीमारियाँ गंगा के प्रदूषित जल के कारण फैलती हैं।

–>लगभग १.७ बिलियन लीटर घरेलू कचरा हर रोज गंगा नदी में गिराया जाता है।

–>लगभग ३.८९ मिलियन लीटर गन्दे नाले (सीवेज) ऐसे हैं जिन्हें अनुपचारित रुप से हर दिन गंगा नदी में बहाया जाता है।

–>उसी विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार गंगा नदी में प्रदूषकों का स्तर “स्वस्थ पानी” के स्तर से ३००० गुना ज्यादा दूषित है।

सरकारी नीतियां –

जैसा कि मैंने पहले भी बताया था कि गंगा नदी की सफाई को लेकर भारत सरकार द्वारा की जा रही कागजी कारवाई में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं हुई है। लेकिन उनके परिणाम अभी भी न्यूनतम और संदेह के घेरे में हैं। मनमोहन सरकार ने गंगा नदी की सफाई को लेकर राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का गठन किया। इसके अलावा स्वामी निगमानंद सरस्वती और अन्ना हजारे ने भी गंगा की सफाई से संबंधित आंदोलन किए, लेकिन एक स्वच्छ और अविरल बहने वाली गंगा का सपना केवल एक सपना ही रहा।

भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सफाई एजेंडों में गंगा की सफाई को सबसे पहले स्थान दिया। इसलिए, नरेंद्र मोदी ने २०१४ में प्रधान मंत्री का पदभार संभालने के बाद ही उमा भारती को ये प्रभार सौंपा और उन्हें जल संसाधन मंत्री बनाया। २०१६ के आंकड़ों के अनुसार गंगा से संबंधित विभिन्न परियोजनाओं के लिए भारत सरकार द्वारा २,००० करोड़ रुपये से अधिक का वितरण किया गया है। लेकिन दुर्भाग्य से, जैसा कि अन्य सरकारों के साथ हुआ, स्वच्छ गंगा का सपना एक सपना ही बना रहा। निष्क्रियता के लिए आलोचनाओं के बीच, मंत्रालय का प्रभार भाजपा सरकार के “गो गेटर”(व्यक्ति, जो अपने लक्ष्य को आसानी से पा लेता है) मंत्री श्री नितिन गडकरी को दिया गया।

क्या नितिन गडकरी गंगा को बचा सकते हैं?

नितिन गडकरी एक बेहतरीन निर्वाहक हैं जो अपने काम को समय पर पूरा करने के लिए तत्पर रहते हैं। उनके द्वारा काम करने की शैली को राष्ट्रीय राजमार्ग के विस्तार में देखा गया था। “रिमूवल रोड़ ब्लाक” उन्हीं के द्वारा उठाया गया कदम है। वह कई बड़ी परियोजनाओं को कम से कम समय में पूरा करने और अधिकतर अंतर विभागीय एवं अंतर एजेंसी ब्लॉक को भंग करने के लिए जाने जाते हैं। वह तकनीक की समझ रखने वाले व्यक्ति हैं और आर्थिक रूप से कुशल भी हैं।

पदभार संभालने के कुछ ही दिनों के भीतर, गडकरी जी ने शहरी विकास, पेयजल और स्वच्छता के लिए जल संसाधन मंत्रालय से कर्मियों के गठन के लिए एक टॉस्क फोर्स की घोषणा कर दी। जबकि उमा भारती के काम को लेकर बहुत सारी आलोचनाएं हुई थीं। लेकिन गडकरी जी ने उमा भारती द्वारा कई मूलभूत कार्यों का आधार बनाने के लिए उनकी प्रशंसा की, जहाँ से वह अब इन कार्यों को आगे बढ़ा सकते हैं। गडकरी ने अभी तक सभी परियोजनाओं को तेजी से पूरा किया है। 2020 तक 20,000 करोड़ तक की राशि के अगले आवंटन के लिए प्रधानमंत्री मोदी की एक घोषणा के बाद, इस मिशन पर आने वाले वह पहले व्यक्ति हैं।

अक्टूबर 2017 में, श्री गडकरी ने क्रमशः हरिद्वार और वाराणसी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्थापित करने के लिए निजी क्षेत्र के साथ त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने एक शानदार हाइब्रिड एन्यूटी मॉडल के अनुसार अपनी अनूठी शैली में परियोजनाएं स्थापित की हैं। इस मॉडल के अनुसार, एसटीपी का निर्माण, संचालन और रखरखाव, बोली लगाने वाले विजेता द्वारा किया जाना है। इस मॉडल के अनुसार, बताई गयी पूंजीगत लागत का 40% भुगतान निर्माण पूरा होने पर किया जाएगा, जबकि शेष 60% लागत का भुगतान 15 वर्षों में प्रति वर्ष के अनुसार किया जाएगा। इसमें संचालन और रखरखाव के खर्च शामिल होंगे।

ये गडकरी की कार्य शैली है – वार्षिक भुगतान और ओ एंड एम के भुगतान एसटीपी के प्रदर्शन से जुड़े हैं, यानी खराब पर पैसा नहीं मिलेगा। श्री गडकरी ने इस मॉडल को पहले से ही राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं में कार्यान्वित किया है और इन परियोजनाओं पर यह मॉडल बेहद सफल रहा है। इस योजना के तहत १४ सीवेज ट्रीटमेंट प्लान कानपुर, प्रयाग, भागलपुर, कोलकाता और हावड़ा इत्यादि शहरों में लागू किए जाएंगे। बोली लगाने की प्रक्रिया को दिसंबर तक पूरा किया जाना है और उसके कार्यान्वयन के आदेश अगले साल मार्च तक जारी किए जाएंगे।

गडकरी यहीं पर नहीं रुके। नमामि गंगे मिशन एक बहुत ही व्यापक और समावेशी कार्यक्रम है जो जन जारुकरता को बढ़ावा देता है, सतत विकास, औद्योगिक विनियमन तथा स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करता है। पहले से ही ४५०० गांवों में नदी के किनारे पौधों को लगाने का कार्य किया जा रहा है। पौधों को जियो टैग किया जा रहा है ताकि उनका विकास और रखरखाव वास्तविक समय पर किया जा सके।

अपने हाल ही के ब्रिटेन दौरे पर श्री नितिन गडकरी ने स्वच्छ गंगा परियोजना को एक नया आयाम देने के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) का आह्वान किया। उन्होंने इस परियोजना में निवेश करने के लिए वैश्विक व्यापारिक शक्तियों के लिए दरवाजा खोल दिया है। केवल ब्रिटेन ने अकेले ही इस परियोजना में करीब ५०० करोड़ का निवेश किया है। वेदांत ग्रुप के अध्यक्ष श्री अनिल अग्रवाल ने पटना रिवरफ्रंट के पुनर्निर्माण का वादा किया है, इसी प्रकार शिपिंग टाइकून रवि मेहरोत्रा ने कानपुर के रिवरफ्रंट के पुनर्निर्माण का वादा किया है। हिंदुजा ग्रुप, हरिद्वार के घाटों का रखरखाव करेंगे और इंदौरमा ग्रुप के प्रमुख श्री प्रकाश लोचिया कोलकाता में गंगा सागर के विकास कार्यो में सहयोग करेंगे।

आखिरकार, लंबे समय के बाद एक नई आशा जागी है कि भविष्य में हम स्वछ और अविरल गंगा को देख सकते हैं। स्वच्छ और अविरल गंगा आने वाली अनगिनत पीढ़ियों के लिए आशा और सकारात्मकता का प्रतीक साबित होगी। एक महार्षि भगीरथ थे जो गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाए थे, शायद दुसरे भगीरथ बनने का मौका भाग्य ने गडकरी को दिया है।

Tags: गंगागडकरीनितिन गडकरी
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