भारत में दूध पीने की परंपरा प्राचीन समय से ही रही है। प्राचीन ग्रन्थों में गायों की महत्ता के बारे में बताया गया है। लेकिन क्या आपको पता है कि दूध मुख्यतः 2 प्रकार के होते हैं? क्या आपने A1 और A2 दूध के बारे में कभी सुना है? ये किस प्रकार का दूध होता है, क्या अलग-अलग गाय A1 और A2 दूध देती हैं, इस दूध की क्या विशेषता है, क्या फायदें हैं, नुक्सान हैं, A1 और A2 दूध में क्या अंतर होता है?
आईए देखते इन सभी प्रश्नों के उत्तर।
विश्व में मुख्यतः 2 प्रकार की गायें पायी जाती हैं। पहले नस्ल की गाय A-2 होती हैं और दूसरे नस्ल की गाय विदेशी होती हैं जिन्हें A-1 कहा जाता है। गाय के सभी दूध ए2 ही हुआ करते थे। यूरोप की गायों में कुछ जेनेटिक बदलाव होने से यह ए1 और ए2 हुआ है। दोनों ही गायों के दूध भी अलग अलग-अलग प्रकार के होते हैं।
गाय के दूध में पाए जाने वाले प्रोटीन 2 प्रकार के होते हैं। एक ‘केसीन’ और दूसरा है ‘व्हे’ प्रोटीन। गाय के दूध में पाए गए प्रोटीन में लगभग एक तिहाई ‘बीटा कैसीन’ नामक प्रोटीन होता है। अलग-अलग प्रकार की गायों में अनुवांशिकता (जैनेटिक कोड) के आधार पर ‘केसीन प्रोटीन’ अलग-अलग प्रकार का होता है जो दूध की संरचना को प्रभावित करता है, या यूं कहें कि उसमें गुणात्मक परिवर्तन करता है।
देसी नस्ल की गायों में A2 टाइप दूध प्रोटीन प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। ये कई बीमारियों जैसे कि हृदय रोग, डायबिटिज एवं न्यूरोलॉजीकल डिसऑर्डर से बचाता है एवं शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा करता है। यही नहीं दुनियाभर की गायें ए2 श्रेणी का ही दूध देती हैं। इसमें बीटा कैसिन प्रोटीन होता है।
न्यूजीलैंड में प्रोफेसर डा. वुडफोर्ड ने शोध पत्र में साफ किया है कि भारत की सभी गायों में बीटा कैसिन-दो पाया जाता है, जिसमें स्वास्थ्य एवं बुद्धिवर्धक समस्त गुणधर्म हैं। न्यूजीलैंड के डा. कीथ वुडफोर्ड ने एशिया एवं यूरोपीय नस्लों पर शोध कर निष्कर्ष निकाला कि प्राचीन काल में यूरोपीय नस्ल की गायों में म्यूटेशन होने की वजह से दूध में बीटा कैसिन ए-दो खत्म हो गया और इसकी जगह बीटा कैसिन-एक नामक एक ऐसा प्रोटीन बनने लगा जो हानिकारक है, जबकि भारतीय नस्लों में म्यूटेशन न होने से दूध की गुणवत्ता बनी रही।
ए1 बीटा कैसिन में पेप्टाइड्स को अमीनो एसिड्स में ब्रेक नहीं किया जा सकता। इसी कारण से ये पचाने योग्य नहीं होता है, जो कई तरह के रोगों को जन्म देता है। बीसीएम-7 नामक एक छोटा-सा प्रोटीन होता है, जो ए2 दूध देने वाली गायों के यूरीन, ब्लड या आंतों में नहीं पाया जाता है, लेकिन यही प्रोटीन ए-1 गायों की दूध में पाया जाता है, इस कारण से ए1 दूध को पचाने में तकलीफ होती है। दोनों ही दूध में लैक्टोज तो रहता है, लेकिन ए-2 दूध में लैक्टोज पचाया जा सकता है। साथ ही इसमें प्रोलिन नामक अमीनो एसिड है, जो इसे गुणकारी बनाता है।
भारत सरकार अभी भी A1 और A2 दूध के बीच अंतर को पहचान कर उन्हें अलग करने के लिए कदम उठाने में पीछे है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने अभी तक विभिन्न प्रकार के दूध को अलग कर उन्हें प्रमाणित करने के लिए किसी प्रकार का कदम नहीं उठाया है। अभी तक सिर्फ Tamil Nadu Veterinary and Animal Sciences University एकमात्र एजेंसी है जो दूध की विविधता पर पशुओं को प्रमाणित करती है। बता दें कि अधिकांश भारतीय गाय और भैंस A2 प्रकार के दूध का उत्पादन करती हैं। इसी वजह से भारत सरकार को A2 प्रमाणित पैकेज्ड दूध का निर्यात करके इसका लाभ उठाना चाहिए था।
A2 प्रमाणित दूध भारत में दो से तीन गुना अधिक कीमत पर बेचा जा रहा है, और विदेशों में यही A2 प्रमाणित दूध सामान्य दूध की तुलना में कई गुना अधिक दामों में मिलता है।
कई पश्चिमी देशों में A2 दूध की बिक्री दुगने रफ्तार से बढ़ रही है। ब्रिटेन और आयरलैंड में, ए 2 दूध की बिक्री प्रति वर्ष 10 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। वहीं ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जो सबसे अधिक दूध निर्यातक देशों में से हैं, वहां ए-2 दूध एक नया शब्द है। इस क्षेत्र में भारत अपनी वर्चस्वता स्थापित कर सकता है।
लेकिन आज गाय की देसी नस्लों में से कई विलुप्त हो गईं हैं और कुछ विलुप्त होने के कागार पर हैं। गीर गाय को भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय माना जाता है। यह गाय गुजरात के गीर जंगलों में पाई जाती हैं, जिस वजह से इनका नाम गीर गाय पड़ गया। भारत के अलावा इन गायों की विदेशों में भी काफी मांग है। इजराइल और ब्राजील में भी मुख्य रुप से इन्हीं गायों का पाला जाता है। साहिवाल गाय मुख्य रुप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पाई जाती हैं। लाल सिंधी गाय भारत में अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए जानी जाती हैं। यह गाय पहले सिर्फ सिंध इलाके में पाई जाती थीं। मध्य प्रदेश के सतना जिले में गोवंश विकास एवं अनुसंधान केन्द्र में देश की विलुप्त हो रहीं देसी गायों की नस्लों के संरक्षण और नस्ल सुधार पर काम किया जा रहा है। यह केंद्र पिछले 25 वर्षों से देसी गायों की नस्लों के संरक्षण और विकास के लिए शोध कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया है, जिसमें देसी नस्ल की गाय आदि के वध पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गयी है।
भारतीय गायों की नस्ल को संरक्षित करने की आवश्यकता है, उनके दूध का पेटेंट होना चाहिए, इसके साथ ही FSSAI को चाहिए कि वह A-2 दूध को अलग से प्रमाणित करे। इसी तरह से हम अपनी विरासत को संरक्षित कर सकते हैं, इससे व्यापार को बढ़ावा भी दिया जा सकता है। सरकार को चाहिए कि वे लोगों को भी इस बारे में जागरूक करें। जिससे वे अपने बच्चों को हानिकारक दूध A-1 नहीं बल्कि देसी गाय की दूध A-2 पिलाएं।