‘पत्थर से ठोकर तो सब खाते है, पत्थर को जो ठोकर मारे, वो मराठा!’ जब हम बाहुबली, केजीएफ, अवने श्रीमन नारायण जैसी फिल्में देखते हैं, तो हमें गर्व भी होता है और दुख भी। हमेशा हम तंज कसते हैं कि बॉलीवुड हेट्स टू बी ओरिजिनल। पर तान्हाजी पेश कर मानो अजय देवगन ने कहा हो – फिर से कहना ज़रा!
नमस्कार, आज हमने देखी ओम राऊत द्वारा निर्देशित फिल्म ‘तान्हाजी – द अनसंग वॉरियर‘, जिसमें मुख्य भूमिका में है अजय देवगन, काजोल, सैफ अली खान और उनका साथ दिया है शरद केलकर, ल्यूक केनी, पद्मावती राव, देवदत्त नागे, शशांक शेंदे, नेहा शर्मा इत्यादि जैसे कलाकारों ने। ये फिल्म वीर मराठा योद्धा सूबेदार तानाजी मालुसरे के शौर्य को बयान करती एक अहम ऐतिहासिक कथा है।
अब रिव्यू के बारे में कुछ भी बोलने से पहले एक वैधानिक चेतावनी, फिल्म देखने से पहले हमारे लिबरल भ्राता और बहनें अपना अपना हर प्रकार का insurance करा लें, क्योंकि हॉल से निकलने के बाद इन्हे किस किस प्रकार के दौरे लगेंगे, इसका पता तो स्वयं इनके आराध्य कार्ल मार्क्स भी नहीं लगा पाएंगे। जितना डर ‘लिबरल गैंग’ को ‘The conjuring’ से भी नहीं लगा होगा, उससे ज़्यादा ‘तान्हाजी’ देखकर तो अवश्य लगेगा, आखिर भारत के सच्चे नायकों को ऑन स्क्रीन देख हमारे देश के लिबरल लोग फूले तो नहीं समाने वाले!
अब बात करें मूवी की तो फिल्म खत्म होने के कुछ समय तक तो मैं स्तब्ध था। आखिर क्या देखा था मैंने? क्या ऐसे भी फिल्म हो सकती है? नरवीर सूबेदार तानाजी मालुसरे को जिस तरह से ‘तान्हाजी’ में जीवंत किया गया है, उसकी हम जितनी तारीफ करें, उतना कम पड़ेगा। हर दृश्य पर आपके रोंगटे अवश्य खड़े होंगे।
पटकथा पर प्रकाश कपाड़िया ने बहुत जोरदार काम किया है। एक क्षण के लिए यदि आप स्क्रीन से अपनी नजर ना हटा पाए, तो समझ जाइए कि पटकथा बेहद उत्कृष्ट है। जिस तरह से ओम राऊत ने इस फिल्म को निर्देशित किया है, उसे देखकर कोई इस बात पर विश्वास नहीं करेगा कि यह उनकी पहली हिंदी फिल्म है। जब अजय देवगन ने कहा था कि इस फिल्म का वीएफएक्स बॉलीवुड के आम फिल्मों की तरह नहीं है, तो काफी लोगों ने उपहास उड़ाया था। पर यदि आप ‘तान्हाजी’ के विजुअल इफेक्ट्स को देखेंगे, तो आप भी कह उठेंगे – ‘अदभुत’!
अब बात करते हैं अभिनय की, तो अजय देवगन ने सूबेदार तानाजी मालुसरे के रोल को निभाया नहीं, अपितु जिया है। उन्होने भारतीय इतिहास के सच्चे नायकों को उनका उचित सम्मान दिलाने के लिए जो बीड़ा उठाया है, उसके लिए समस्त देश उनका कृतज्ञ रहेगा। मराठा साम्राज्य के शूरवीर योद्धा तानाजी मालुसरे के रूप में जब वे युद्ध के लिए निकलते हैं, तो उनके साथ मानो हम सब भी निकल पड़ते हैं। उदयभान राठौड़ के रूप में सैफ़ अली खान ने अपनी अलग ही छाप छोड़ी है। उन्हें रणवीर सिंह से तुलना करने की भूल कदापि न करें, क्योंकि सैफ़ ने उदयभान के रूप में एक अलग ही खल चरित्र जिया है, जिसे देखे आप सिहर भी उठेंगे और कभी कभी तो उसके बावले स्वभाव पे हंस भी पड़ेंगे।
छत्रपति शिवाजी महाराज के रूप में शरद केलकर ने वीर मराठा योद्धा को एक सच्ची श्रद्धंजलि अर्पित की है। अब से जो भी फिल्म मराठा शिरोमणि पर फिल्माई जाएगी, उसके लिए शरद केलकर के चित्रण को बेंचमार्क माना जाएगा। पद्मावती राव ने राजमाता जीजाबाई के चित्रण के साथ पूर्ण न्याय किया है। संजय मिश्रा ने सूत्रधार के रूप में इस फिल्म में एक अलग छाप छोड़ी है। बस इस फिल्म से एक ही शिकायत है – काजोल और नेहा शर्मा के रोल थोड़ा ज़्यादा विस्तृत होने चाहिए थे। इसके बावजूद कम समय में भी उन्होंने अपनी अदाकारी से सभी को चकित कर दिया।
लेकिन इस फिल्म के बारे में बुरी बात यह है कि टिकेट के लिए लंबी लाइन को झेलना पड़ा। अगर आपको फिल्म देखते वक्त शांत माहौल चाहिए होता है, तो भी आपको थोड़ा कष्ट पहुंच सकता है क्योंकि दर्शक सीटियाँ और तालियाँ बजाना कभी बंद ही नहीं करेंगे।
यदि आपने ‘तान्हाजी’ नहीं देखी, तो आपने कुछ नहीं देखा। इसे हम कोई रेटिंग नहीं देंगे, क्योंकि ऐसा करना इस फिल्म के उद्देश्य और इसके शौर्य का अपमान होगा।
जय भवानी जय शिवाजी!
हर हर महादेव!