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‘हम ऐसे कोरोना से नहीं लड़ सकते’, नौकरशाही के चंगुल में फंसकर रह गयी है सेना में नियुक्तियां

लालफीताशाही को और कम किया जाए क्योंकि अब बात देश की सुरक्षा की है

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
2 May 2020
in मत
नौकरशाही
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कोरोना के समय में देश की सेना जी जान लगा कर इस महामारी से लड़ाई लड़ रही है लेकिन ऐसा लगता है कि ऐसे मुश्किल समय में भी वह नौकरशाही के चंगुल में फंस कर रह गयी है। सेना के कई महत्वपूर्ण पद पिछले तीन महीनों से रिक्त पड़े हैं और उन्हें भरने के लिए कोई कवायद शुरू नहीं की जा रही है।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार Armed Forces Medical Service के Directorate General  में Additional Director General (procurement and stores) का पद तीन महीनों से खाली पड़ा हुआ है। इसके साथ ही दो महीने से पाकिस्तान और चीन के साथ भारत की सीमाओं को कवर करने वाले महत्वपूर्ण उत्तरी कमान में किसी भी अधिकारी को मेजर जनरल (मेडिकल) के रूप में नियुक्त नहीं की गयी है।

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इंडिया टुडे के अनुसार, सरकार के सूत्रों ने बताया है कि सेना के भीतर इन दो शीर्ष चिकित्सा पदों की नियुक्ति में देरी का कारण शीर्ष नौकरशाही और सेना के एक खास वर्ग के बीच आपसी तनातनी है। इन पदों पर होने वाली नियुक्ति की फाइलें केंद्रीय रक्षा मंत्रालय और सेवा मुख्यालय के बीच ऊपर-नीचे होती रही हैं लेकिन एक्शन नहीं लिया जाता।

इंडिया टुडे ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि, “ऐसे समय में जब भारत कोरोनवायरस से युद्ध स्तर पर लड़ाई लड़ रहा है, तब उत्तरी कमान में ADG procurement और MG Medical जैसे पदों पर और साथ में पश्चिमी कमान में अन्य महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियों का न होना दुर्भाग्यपूर्ण है। सेना द्वारा बार–बार रक्षा सचिव के पास पहुंचने की कोशिश की गयी लेकिन फाइलें नौकरशाही के चंगुल से बाहर नहीं आ पायी।“

यहाँ पर मेजर जनरल रैंक जैसे ये शीर्ष स्तर के अधिकारी के बारे में बात की जा रही है। इस तरह के महत्वपूर्ण नियुक्तियों को रोकने से भारतीय सेना की क्षमताओं को ही नुकसान होता है। नौकरशाहों के आपसी तनातनी के कारण इन नियुक्तियों के न होने से सेना जितनी क्षमता काम कर सकती है, उससे कहीं कम क्षमता में काम करने के लिए मजबूर है। इसका अर्थ यह हुआ कि वर्तमान समय में इन पदों को एक ब्रिगेडियर रैंक का अधिकारी बिना नियमित नियुक्ति के रूप में कार्य कर रहा है जबकि एक अधिक अनुभव और प्राधिकरण वाले मेजर जनरल रैंक के अधिकारी की नियुक्ति की जा सकती है। अगर नियुक्ति होती तो निश्चित रूप से कोई भी निर्णय त्वरित और अधिक प्रभावी होता।

हालांकि, इस बीच रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, “कई मेजर जनरल स्तर के अधिकारियों के तबादले सरकार के विचाराधीन हैं और जल्द ही आदेश जारी होने वाले हैं।” लेकिन इस तरह की शीर्ष स्तर की नियुक्तियों में देरी के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया जिसका प्रभाव सेना की दक्षता पर पड़ता है।

यह रिपोर्ट वास्तव में एक उदाहरण है कि कैसे नौकरशाही की लेटलतीफी सशस्त्र बलों के साथ-साथ देश का नुकसान पहुंचा सकती है, खासकर कोरोना जैसी महामारी के दौरान।

तथ्य यह है कि भारतीय सेना में शीर्ष स्तर की चिकित्सा सेवाओं की नियुक्तियों के साथ-साथ खरीद और भंडार से जुड़े पद अत्यंत आवश्यक हैं जिससे न सिर्फ सेना को बल्कि देश को भी COVID-19 से लड़ने में मदद मिलेगी।

रक्षा मंत्रालय को ऐसे मामलों पर तुरंत एक्शन लेना चाहिए और मंत्रालय के नौकरशाहों को सेना के साथ किसी भी प्रकार के आपसी तनातनी संघर्ष से बचने की कोशिश करनी चाहिए। यह समय आपसी रंजिश का नहीं है और इस मामले में तथा भविष्य में किसी भी सैन्य नियुक्तियों में इस तरह के नौकरशाही बाधाओं को दूर करने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को एक्शन लेना होगा।

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