एक तरफ विश्व चीन को दुत्कार रहा है तो वहीं दूसरी तरफ चीन प्रासंगिक रहने के लिए नई-नई तिकड़म ला रहा है। कल हुए G 20 देशों की बैठक में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने विश्व के देशों से बॉर्डर खोलने और फिर से यात्रा प्रारम्भ करने की अपील की और इसके लिए अपने देश में चल रही QR Code की तकनीक अपनाने का प्रस्ताव दिया।
दरअसल, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वायरस महामारी के बीच लोगों की सीमा पार आवाजाही को सक्षम करने के लिए एक वैश्विक क्यूआर कोड प्रणाली का उपयोग करने का प्रस्ताव दिया है।
शनिवार की रात को वर्चुअल जी 20 शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए, शी ने कहा कि क्यूआर कोड के रूप में न्यूक्लिक एसिड परीक्षण के परिणामों सहित स्वास्थ्य प्रमाणपत्रों की पारस्परिक मान्यता वाले वैश्विक तंत्र का उपयोग बॉर्डर पार यात्रा को सक्षम करने के लिए किया जा सकता है।
समाचार एजेंसी Xinhua द्वारा प्रकाशित एक प्रतिलेख के अनुसार उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि अधिक देश इस तंत्र में शामिल होंगे। हमें लोगों के आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए नीतियों को और अधिक फास्ट ट्रैक करने की आवश्यकता है।”
इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन का यह प्रस्ताव दुनिया भर के देशों के चीन को बहिष्कार से हुई अपनी क्षति को पूरा करने के लिए लाया गया है। विश्व भर के देशों का बॉर्डर खुलने से एक बार फिर से व्यापार व्यवस्था उसी ढांचे में लौटने लगेगी जिसमें सभी चीन पर निर्भर थे और चीन के खिलाफ चल रही मुहिम ढीली पड़ जाएगी ।
जब भूमंडलीकरण हुआ और विश्व के देशों की दूरी कम हुई तो इसका सबसे अधिक फायदा चीन को हुआ। अपना बॉर्डर खोल अपने सस्ते श्रम के कारण यह दुनिया की फ़ैक्टरी बन गया और धीरे-धीरे वैश्विक सप्लाइ चेन, चीन आश्रित हो गयी। जब कोरोना शुरू हुआ था तब विश्व भर के देशों का पारा चीन के खिलाफ चढ़ गया था और लगभग सभी ने चीन का बहिष्कार शुरू कर दिया था। परंतु जब बहिष्कार शुरू हुआ तब चीन पर सप्लाइ चेन तथा मैनुफेक्चुरिंग की वैश्विक निर्भरता सामने आई। इसके बाद विश्व भर के देशों ने आत्मनिर्भरता और अपने देशों में निर्माण को बढ़ाने की नीतियों पर काम करना शुरू किया जिसमें अमेरिका, भारत और जापान कुछ उदाहरण हैं। भारत ने तो अपने “आत्मनिर्भर भारत” के तहत कई चीनी वस्तुओं का बहिष्कार कर “लोकल फॉर वोकल” पर काम किया। यह भूमंडलीकरण से बिल्कुल विपरीत है जो किसी भी देश को विश्व से निर्भरता समाप्त कर अपने देश में प्रोडक्शन बढ़ाने पर ज़ोर देता है।
कोरोना के बाद अमेरिका ट्रेड-वार कर चीन पर अंकुश लगा रहा था तो ताइवान जैसे चीन पर निर्भर देश उसके खिलाफ प्रखर रूप से सामने आए थे तो वहीं कनाडा और फ्रांस ने भी चीन के खिलाफ एक्शन लेना शुरू कर दिया था। अपने खिलाफ बढ़ते रोष को देख कर पहले तो चीन ने Captive Diplomacy की कोशिश की और कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के नागरिकों को बंदी बना कर उन्हें धमकाने की कोशिश की। परंतु किसी भी देश ने अपने कदम पीछे नहीं खिंचे , उल्टे अपने नागरिकों को चीन की यात्रा पर चेतावनी दे कर रोक लगा दी। विश्व भर के देशों से पहले तो व्यापार में बहिष्कार से चीन को नुकसान हुआ उसके बाद यात्रियों के रोक लगने से उसके पर्यटन सैक्टर को भारी नुकसान सहना पड़ा। दुनिया भर के अब लगभग सभी देश चीन पर न तो निर्भर रहना चाहते हैं और न ही उसके किसी झांसे में आना चाहते हैं। इन विश्व भर के देशों की चीन से दूरी को “Decoupling with China” का नाम दिया गया। यह भूमंडलीकरण से बिल्कुल विपरीत है और लगभग सभी देश इसी नीति पर काम कर रहे हैं जिससे चीनी प्रासंगिकता समाप्त होती जा रही है।
इसी प्रासंगिकता को वापस पाने के लिए अब चीन नए-नए तिकड़म ला रहा है जिससे विश्व के देश उसके प्रस्ताव को मान बॉर्डर खोले और व्यापार फिर से शुरू हो जाए। एक बार व्यापार शुरू हुआ तो चीन अपने सस्ते सामानों से विश्व के बाजार को एक बार फिर से भरने की कोशिश करेगा। यही कारण है कि शी जिनपिंग ने खुद G20 देशों की वर्चुअल बैठक में QR Code की प्रशंसा कर उसका प्रचार किया। वैश्विक QR Code प्रणाली के प्रस्ताव का कदम चीन की बाकी दुनिया के साथ जुड़े रहने और अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने की हताशा भरा कदम है।