आज अपनी घटिया कोरोना वैक्सीन और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ट्रेड वॉर में मुंह की खाने के कारण चीन पूरी दुनिया में हंसी का पात्र बना हुआ है। ब्राज़ील में चीनी वैक्सीन Sinovac के ट्रायल के बाद उसकी efficacy महज़ 50 प्रतिशत ही दर्ज की गयी है, जबकि ऑस्ट्रेलिया के कोयले पर बैन लगाने के बाद चीन की स्टील इंडस्ट्री को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। ऐसे में अब मुंह छिपाने की जगह ढूंढ रहे चीन ने दुनिया को गुमराह करने और अपनी जनता को भ्रमित करने के लिए बेतुके बहाने बनाने शुरू कर दिये हैं।
उदाहरण के लिए अपनी Sinovac वैक्सीन के एक्स्पोज होने के बाद चीन के सरकारी अखबार Global Times ने 50 प्रतिशत की efficacy के बावजूद उसे दुनिया की सबसे बढ़िया वैक्सीन सिद्ध करने की भरपूर कोशिश की है। चीन ने ब्राज़ील में हुए ट्रायल्स को लेकर यह दावा किया था कि Sinovac की efficacy 78 प्रतिशत से ज़्यादा दर्ज की गयी है, जबकि बाद में ब्राज़ील द्वारा सूत्रों के हवाले से जारी किए गए आंकड़ों में उसकी efficacy महज़ 50 प्रतिशत ही दर्ज की गयी थी। ऐसे में अब Global Times ने लिखा है कि चूंकि ब्राज़ील के ट्रायल में सभी भागीदार High-risk category से थे, तो ऐसे मामले में भी 50 प्रतिशत efficacy आना कोई बुरी बात नहीं है।
Global Times के मुताबिक हल्के-फुल्के संक्रमण के मामले में चीनी वैक्सीन की Efficacy 78 प्रतिशत तक पहुँच जाती है, जो कि इसे बेहद सफल वैक्सीन बनाती है। GT ने यह भी लिखा कि इस वैक्सीन को लेने के बाद करीब 78 प्रतिशत लोगों को अस्पताल में भर्ती होने की कोई ज़रूरत नहीं पड़ेगी। हालांकि, ऐसे में उन बाकी बचे 22 प्रतिशत लोगों के साथ क्या होगा, चीनी अखबार यह बताने में पूरी तरह अक्षम साबित रहा।
इसी प्रकार चीन ने कोयले की कमी से जूझ रहे अपने स्टील उद्योग को लेकर भी दुनिया को भ्रमित करने की कोशिश की है। बता दें कि चीन ने अभी ऑस्ट्रेलिया पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए हुए हैं, जिसके तहत चीन ने पहले ही ऑस्ट्रेलिया से आयात होने कोयला, गेंहू, चीनी, शराब और लकड़ी पर पाबंदी लगाई हुई है। ऑस्ट्रेलिया के उच्च गुणवत्ता वाले कोयले पर पाबंदी लगाने के बाद चीन के उद्योगों और चीन के एनर्जी सेक्टर पर इसका बड़ा दुष्प्रभाव पड़ा है। स्टील उद्योग को सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ है, जो Coking कोयले के लिए पूर्णतः ऑस्ट्रेलियाई कोयले पर ही निर्भर था। स्टील उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले करीब 40 प्रतिशत Coking कोयले के लिए भी चीन ऑस्ट्रेलिया पर ही निर्भर था। अब एक झटके में इस कोयले पर पाबंदी लगाने के कारण चीन में उथल-पुथल होना स्वाभाविक सी बात है। चीन में स्टील उत्पादन में कमी आने के कारण अब चीनी सरकार स्टील के आयात करने को भी बढ़ावा दे चुकी है। हालांकि, ट्रेड वॉर में अपने ही हाथ जलाने वाला चीन अपनी इज्ज़त बचाने की कोशिश करता हुआ दिखाई दे रहा है।
Global Times ने लिखा है “चीनी सरकारी कंपनियों ने 5 वर्षीय योजना के तहत वर्ष 2025 तक हरित ऊर्जा में निवेश करने का प्लान बनाया है। वर्ष 2030 में हम वर्ष 2005 के मुक़ाबले GDP के परस्पर अपना कार्बन एमिशन 65 प्रतिशत तक कम करना चाहते हैं और वर्ष 2060 तक हम कार्बन न्यूट्रल देश बनना चाहते हैं। स्टील उद्योग देश में कुल कार्बन एमिशन का करीब 15 प्रतिशत हिस्सा अकले एमिट करता है, ऐसे में पर्यावरण को लेकर अपनी प्रतिबद्धता के कारण ही हमारी स्टील इंडस्ट्री पर इतना दबाव आया हुआ है।”
स्पष्ट है कि अपनी घटिया वैक्सीन के कारण दुनिया के निशाने पर आने वाला और ऑस्ट्रेलिया के साथ ट्रेड वॉर में हार का मुंह देखने वाला चीन अब propaganda फैलाकर अपनी नाक बचाने की जद में जुट चुका है। इस propaganda के कारण चीन बेशक अपनी जनता को तो पागल बना सकता है, लेकिन यह दुनिया इतनी बेवकूफ नहीं है।