भारत में कुछ राजनीतिक दलों ने उद्यमियों को गालियां देना अपना राजनीतिक कार्यक्रम बना लिया है। कांग्रेस, लेफ्ट तथा अन्य विपक्षी दल सरकार को घेरने के लिए उद्यमियों और सरकार के आपसी सहयोग को निशाना बनाते हैं। पहले अम्बानी और अडानी की छवि धूमिल की गई और अब विपक्षी दल सीरम इंस्टिट्यूट के CEO के पीछे पड़े हैं। केंद्र सरकार ने 1 मई से सभी वयस्कों के लिए वैक्सीन लगवाने की प्रक्रिया शुरू करने का फैसला किया है। इसके लिए राज्यों को 50% वैक्सीन केंद्र उपलब्ध करवाएगा, शेष की व्यवस्था उन्हें स्वयं करनी है। सीरम इंस्टिट्यूट ने केंद्र को अब तक जो वैक्सीन दी है उसकी अपेक्षा राज्यों को मिल रही वैक्सीन का दाम अधिक है। हालांकि, इसके स्वाभाविक कारण है।
केंद्र पहले ही सीरम इंस्टिट्यूट को उसकी उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए आर्थिक मदद दे रहा है, इसके अतिरिक्त केंद्र जो वैक्सीन खरीद रहा है उसकी मात्रा किसी राज्य द्वारा खरीदे जा रहे वैक्सीन की मात्रा से बहुत अधिक है। ऐसे में दोनों के दाम में अंतर आना स्वाभाविक सी बात है। लेकिन सीरम इंस्टिट्यूट को अनावश्यक रूप से बदनाम किया जा रहा है।
राहुल गांधी ने आरोप लगाते हुए कहा है की “आपदा देश की, अवसर मोदी मित्रों का, अन्याय केंद्र सरकार का।” वहीं बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी राज्य और केंद्र के लिए दी जा रही वैक्सीन के दाम में अंतर को लेकर सवाल उठाया है।
आपदा देश की
अवसर मोदी मित्रों का
अन्याय केंद्र सरकार का!#VaccineDiscrimination pic.twitter.com/oOTC77AmkB— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 21, 2021
इसे संयोग ही समझा जाना चाहिए कि कुछ दिनों पहले तक लेफ्ट लिबरल जमात सीरम इंस्टिट्यूट की तारीफ कर रहा था। किंतु कुछ दिन पहले दो प्रकरण हुए। इंस्टिट्यूट के CEO पूनावाला ने प्रधानमंत्री की तारीफ कर दी, और वैक्सीन के लिए आवश्यक कच्चे माल की आपूर्ति रोकने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति और लिबरल जमात के मसीहा जो बाइडन की आलोचना की। इसके बाद अचानक भारतीय लेफ्ट लिबरल जमात और कांग्रेस की भाषा बदल गई, और पूनावाला को खलनायक बनाकर दिखाया जाने लगा। वहीं, ममता बनर्जी द्वारा सवाल उठाया जाना, बंगाल चुनाव में TMC की खराब होती हालत का नतीजा है।
जिस समय दुनिया वैक्सीन को लेकर जद्दोजहद कर रही थी और उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखाई दे रही थी, उस समय सीरम इंस्टिट्यूट ने ऑक्सफ़ोर्ड के साथ मिलकर कोविशिल्ड बनाने का निर्णय किया था। उस समय सीरम इंस्टीट्यूट ने अपनी ओर से 750 करोड़ रुपये का निवेश किया था, जबकि इसकी कोई गारंटी नहीं थी कि यह वैक्सीन काम भी करेगी अथवा नहीं। सीरम इंस्टिट्यूट ने इतना बड़ा खतरा उठाया, जो किसी भी उद्योगपति के लिए बड़ी बात है।
उस समय कांग्रेस नेता और वामपंथी जमात ने अपनी जेब से पैसे नहीं खर्च किए। न ही मांग उठाई कि सरकार इसकी फंडिग करे। आज जब कोविशिल्ड सफल हो गई है तो सीरम इंस्टिट्यूट से अपेक्षा की जा रही है कि वह बिल्कुल भी लाभ न कमाए। जबकि ऐसा भी नहीं है कि सीरम इंस्टिट्यूट धन की उगाही कर रहा है। पूनावाला का कहना है कि एक वैक्सीन डोज बनाने में 200 रुपये के लगभग खर्च होते हैं। इंस्टिट्यूट चाहे तो विदेशों को अपनी वैक्सीन बेचकर अधिक लाभ कमा सकता है, किन्तु वह भारतीयों को सस्ते में वैक्सीन उपलब्ध करवाने को अपनी प्राथमिकता समझ रहा है।
विदेशी वैक्सीन की कीमतों की तुलना में सीरम इंस्टिट्यूट की वैक्सीन का दाम बहुत कम है। अमेरिका की Pfizer vaccine 1,431 रुपये की है। Moderna की वैक्सीन का दाम 2,348 से 2,715 के रुपये के बीच में है। Johnson & Johnson की वैक्सीन 734 रुपये और चीनी फर्म Sinovac की वैक्सीन 1,027 रुपये की है।
मोदी सरकार के आने के बाद से भारतीय राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन यह हुआ है, निजी क्षेत्र का महत्व भी बढ़ रहा है। उद्योगपतियों को वह सम्मान मिल रहा है जिसके वह हकदार हैं। अमेरिका, यूरोप, जापान, चीन, द० कोरिया किसी भी उदाहरण को देखें, यही पता चलता है कि देश के विकास की कहानी वहाँ के उद्योगपति ही लिखते हैं।
भारतीय उद्योगपतियों ने हमेशा अपनी राष्ट्रभक्ति दिखाई है। इस राष्ट्रीय आपदा में उद्योगपतियों ने खुलकर जनसेवा की है। रिलायंस और टाटा ने ऑक्सिजन सप्लाई शुरू की है। अडानी ग्रुप ने केंद्र को 100 करोड़ और अलग अलग राज्यों को 22.5 करोड़ रुपये का अनुदान किया है। गुजरात को 100 वेंटिलेटर दिए हैं और दिल्ली में 1 लाख लोगों को भोजन करवाने की व्यवस्था की है। महिंद्रा ग्रुप की ओर से PM केअर फंड में 50 करोड़ रुपये के और L&T की ओर से 150 करोड़ रुपये दान किए गए।
प्रश्न करने वाले वामपंथी धड़े, आंदोलनजीवी लोगों, राहुल और उनकी पार्टी, TMC जैसे क्षेत्रीय दल ने क्या दान किया है इसपर चर्चा करना व्यर्थ है। मुफ्त सेवा मांगने और मुफ्त सुझाव देने के अतिरिक्त इसके पास कोई काम नहीं है।