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आखिर क्यों तालिबान के खिलाफ युद्ध में भारत को अफगानिस्तान की मदद करनी चाहिए?

तालिबान ISIS से भी अधिक तेज़ी से फैल रहा है

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
13 August 2021
in चर्चित, विश्व
अफगानिस्तान भारत
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अफ़ग़ानिस्तान में स्थिति भयंकर हो चुकी है। अफगानिस्तान के 34 बड़े ठिकानों में से 11 सीधे-सीधे तालिबान के कब्जे में आ चुका है। अफगानिस्तान के तीसरे सबसे बड़े शहर, हेरात को भी तालिबान ने छीन लिया है। यानि देखा जाए तो तालिबानी आतंकियों ने एक सप्ताह में आधे से अधिक देश पर कब्जा कर लिया है। अशरफ घनी अधिकांश उत्तर, दक्षिण और पश्चिम अफगानिस्तान को प्रभावी रूप से खो चुके है और राजधानी को छोडकर चुनाव लड़ने वाले ज्यादातर शहरों की कम भी तालिबानी कब्जे में है। हफ्तों तक घेराबंदी करने के बाद, सरकारी बलों से तालिबानी लड़को ने सिल्क रुट के पुराने शहर हेरात को कब्जे में ले लिया है। जिस तरह तालिबान के कदम बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए अब भारत को अफगानिस्तान की जल्द से जल्द मदद करनी चाहिए।

तालिबान ISIS से भी अधिक तेज़ी से फैल रहा है

तालिबान की मजबूत होती पकड़ आईएसआईएस से भी तेज है। सदी के पहले दशक में जब अमरीकी फौज इराक से बाहर हुई थी, तभी इस्लामिक स्टेट की नींव पड़ी, कई समूहों का यह मानना है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी रक्षा का वापस जाना तालिबान के लिए वह काम करेगा। तालिबान के बढ़ते कदम से विश्व के दूसरे देश चिंतित हो गए है। अमेरिकी सरकार ने यह भी चेतावनी दे दी है कि तालिबान के आक्रामक तेवर सिर्फ अफ़ग़ानिस्तान के सीमा में नही रुकेंगे। Reuters की खबर के अनुसार, ब्रिटिश और अमेरिकी सरकर अपने दूतावास को खाली करने का निर्णय ले चुके है। बुधवार को, एक अमेरिकी रक्षा अधिकारी ने अमेरिकी खुफिया जानकारी का हवाला देते हुए कहा कि तालिबान 30 दिनों में काबुल को देश से अलग कर सकता है और संभवतः इसे 90 दिनों के भीतर अपने नियंत्रण में सकता है।

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भारत के लिए क्या चिंता का विषय है?

भारत अपने पड़ोसियों को कभी मुसीबत में नहीं छोड़ता। जब वॉर अगेंस्ट टेरर जैसी योजना चली रही थी और वैश्विक नेता तालिबान से लड़ने के लिए नॉर्थन अलायंस की ओर मुड़े, तब उन्हें यह संगठन सक्रिय मिला था। यह सक्रियता इसलिए थी क्योंकि ईरान, भारत और रूस कबीलाई लड़ाकों को वित्तीय सहायता दे रहे थे।

जब अफगानिस्तान में लोकतान्त्रिक सरकार बनी तब भारत ने सरकार के साथ कई कदम को आगे बढाया। यही नहीं भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में पैसा निवेश किया। कई महत्वपूर्ण सड़कों, बांधों, बिजली लाइनों और सब-स्टेशनों, स्कूलों और अस्पतालों आदि का निर्माण भारत ने अफगानिस्तान में किया। आंकड़ों को देखा जाए तो अफगानिस्तान में भारत की विकास सहायता 3 अरब डॉलर से अधिक होने का अनुमान है। अन्य देशों के विपरीत भारत द्वारा बनाए गए बुनियादी ढांचे धरातल पर दिखाई देते हैं।

अफगानिस्तान में भारत की प्रमुख संपत्ति में 218 किलोमीटर डेलाराम-जरंज राजमार्ग, भारत अफगानिस्तान मैत्री बांध (जिसे सलमा बांध भी कहा जाता है) और अफगान संसद भवन भी शामिल हैं। वर्ष 2011 के भारत-अफगानिस्तान रणनीतिक साझेदारी समझौते के अंतर्गत भारत ने अफगानिस्तान के बुनियादी ढांचे और संस्थानों के पुनर्निर्माण में मदद करने का आश्वासन दिया था और अफगानिस्तान के सभी 34 प्रांतों में लगभग 400 से अधिक परियोजनाएं तैयार की थीं।

एक बार फिर भारत को अब सक्रिय भूमिका निभानी होगी। वहां पर निवेश किये पैसों के आलावा हिन्दू और सिख समुदाय की आबादी भी बड़ी संख्या में हैं। भारत में कई लोग वहां को सिख और हिन्दू नागरिकों को वापस लाने की मांग कर चुके हैं। तालिबानी ताकतों के सत्ता में आने के बाद वहां के अल्पसंख्यकों की जिन्दगी बद्दतर हो जाएगी। अफगानिस्तान की सरकार भी भारत सरकार से हवाई सहायता की मांग कर चुकी है। हालांकि, भारत ने उत्तरी शहर मजार-ए-शरीफ में अपने दूतावास से लगभग 50 अधिकारियों और सुरक्षा अधिकारियों को हटा दिया है। परंतु जिस तरह से तालिबान लड़ाके इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहे है, उसे देखते हुए भारत सरकार को एक कड़ा निर्णय लेते हुए त्वरित एक्शन लेना होगा।

और पढ़े: पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान को बर्बाद कर रहा, अब अफगानियों ने उससे बदला लेने की ठान ली है

भारत का हित इसमें ही है कि वह कुटनीतिक रास्तों से समस्या का हल निकाले।अगर तालिबान भारत के बगल में पूरे क्षेत्र में कब्जा कर बैठ गया तो उसके कदम सिर्फ वही तक तक सीमित नहीं रहने वाले हैं। एक तरह पाकिस्तान और दूसरे तरफ चीन की उपस्थिती पहले से ही भारत के लिए कठिनाई पैदा करते हैं। इसके बाद अब तालिबान का भारतीय उपमहाद्वीप में पाँव फैलाना भारत के लिए सबसे बड़ी समस्या उत्पन्न करेगा। इसलिए यह आवश्यक है कि भारत त्वरित एक्शन ले और अफगानिस्तान की मदद करे।

Tags: अफ़ग़ानिस्तानचीनतालिबानपाकिस्तान
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