हमारे घर के वृद्धजनों ने कहा था ‘रघुकुल रीति सदा चली आई प्राण जाई पर वचन न जाई’। पाकिस्तानियों ने लगता है इसका अलग ही रूप धारण किया है, ‘जिन्ना रीति सदा चली आई, प्राण जाई पर एजेंडा न जाई’। ऐसा हम नहीं कह रहे, बल्कि पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर शाहिद अफरीदी तालिबान के बचाव में अपने ‘बेजोड़’ तर्कों से सिद्ध कर रहे हैं।
तालिबान के प्रति अपना प्रेम जग ज़ाहिर करने में पाकिस्तान ने कोई कसर नहीं छोड़ रखी है। अर्थव्यवस्था गर्त में है, परंतु तालिबान के आतंकी शासन को मान्यता मिलनी चाहिए इसके लिए पाकिस्तान हर संभव कोशिश में जुटा है। इसी बीच शाहिद अफरीदी ने न केवल अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के प्रखर समर्थक के तौर पर अपने आप को सिद्ध किया है, अपितु उसका मानना है कि इस बार तालिबान अपने साथ सकारात्मकता की एक नई लहर लेकर आया है।
"Taliban came with lots of positively, allowing women to work, loves cricket" #ShahidAfridi meant he was known as boom boom , so the Talibs do same. Much in common. pic.twitter.com/DXquKGxgaF
— The Hawk Eye (@thehawkeyex) August 31, 2021
शाहिद अफरीदी के अनुसार, “तालिबान बड़े पॉजिटिव फ्रेम ऑफ माइंड के साथ आए हैं। ये चीजें हमें पहले नजर नहीं आईं… माशाअल्लाह… ये चीजें… बड़ी जबर्दस्त पॉजिटिविटी की तरफ नजर आ रही हैं। लेडीज को काम करने की इजाज़त, पॉलिटिक्स और बाकी जॉब्स की इजाज़त। वो क्रिटिक्स को सपोर्ट करते हैं, क्रिकेट को सपोर्ट कर रहे हैं। मुझे लगता है कि वो क्रिकेट को काफी ज्यादा पसंद करते हैं”।
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महिलाओं को काम करने की इजाज़त? पॉलिटिक्स, और बाकी जॉब्स की इजाज़त? अफरीदी जी, ट्वाडे मुंह से इतना झूठ न सुहाता! अभी हाल ही में जिस तालिबान की इतनी तारीफ शाहिद अफरीदी कर रहे हैं, उसी तालिबान ने अफगानिस्तान में सह शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया है। उसके ऊपर से शाहिद अफरीदी का खुद का रिकॉर्ड भी इस क्षेत्र में बहुत उज्ज्वल नहीं रहा है।
सर्वप्रथम तो अपने आप को ‘महिला सशक्तिकरण’ के ‘पुरोधा’ के रूप में यहाँ चित्रित कर रहे शाहिद अफरीदी अपनी स्वयं की पत्नी और बेटियों को सार्वजनिक तौर पर बाहर नहीं आने देते हैं। कुछ लोग इसे चाहे जो कहें, पर पाकिस्तान में महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है, ये सर्वविदित है। इसके अलावा एक और घटना है, जिससे इस क्रिकेटर की दकियानूसी सोच जगज़ाहिर होती है। इनका वर्षों पुराना एक वीडियो वायरल हुआ था, जहां ये बड़े गर्व से बता रहे थे कि कैसे जब उनकी बेटी ने एक हिन्दी टीवी सीरियल के तर्ज पर आरती उतारने की नकल की, तो उन्होंने न केवल उसे खरी खोटी सुनाई, बल्कि उस टीवी को भी तोड़ दिया। इससे महिलाओं के प्रति अफरीदी की घृणित सोच और सनातन धर्म के प्रति उनकी निहित घृणा दोनों एक साथ सामने आई।
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शाहिद अफरीदी की बेशर्मी यहीं तक सीमित नहीं है। उन्होंने न केवल भारत के विरुद्ध नियमित रूप से विष उगला है, अपितु अपने देश में गैर मुस्लिम क्रिकेटरों के साथ भी उन्होंने जबरदस्त भेदभाव किया, और ये बात पूर्व क्रिकेटर दानिश कनेरिया से बेहतर कोई नहीं जानता। दानिश के अनुसार,
“मैं उनकी वजह से अधिक वनडे नहीं खेल सका और उन्होंने मेरे साथ गलत व्यवहार किया। जब हम डोमेस्टिक क्रिकेट (घरेलू क्रिकेट) में खेलते थे तब वह कप्तान थे। वह मुझे हमेशा टीम से बाहर रखते थे और एकदिवसीय टीम में भी हमेशा मेरे साथ ऐसा ही करते थे। वह बेवजह मुझे टीम से बाहर रखते थे” ।
ऐसे में जब शाहिद अफरीदी तालिबान के गुणगान में यहाँ तक कहने लगते हैं कि महिलाओं को उचित अधिकार भी मिलने लगेंगे, तो गुस्सा कम, हंसी अधिक आती है। हंसी इसलिए भी आती है कि इन पाकिस्तानियों को लगता है कि आज भी कोई उनकी बकवास को सहर्ष स्वीकारने के लिए तैयार है। हालांकि, अब जब तालिबान के 31 अगस्त वाले अल्टिमेटम से पहले ही अमेरिका अफगानिस्तान खाली कर दे, तो कुछ भी हो सकता है।