किसी भी देश के उद्योगपति उस देश में रोजगार सृजन करने और उस देश की आर्थिक तरक्की की कहानी लिखने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कोरोना महामारी के दौरान भारत के उद्योगपतियों ने जिस प्रकार कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में प्रथम रक्षापंक्ति की भूमिका निभाई, वह अद्भुत है। ऑक्सीजन की किल्लत के समय रिलायंस, टाटा, जिंदल ग्रुप आदि कई बड़े औद्योगिक महाशक्तियां आगे आईं। इसी प्रकार PPE किट से लेकर वेंटीलेटर की समस्या को सुलझाने का काम भी उद्योगपतियों ने बढ़-चढ़कर किया। इस पुरे प्रकरण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है सिरम इंस्टीट्यूट ने, जिसने वैक्सीन के बड़े पैमाने पर उत्पादन द्वारा 140 करोड़ की आबादी वाले देश को वैक्सीन उपलब्ध करवाई है। जहां एक ओर विदेशी वैक्सीन का दाम आसमान छू रहा है वहीं कोविशिल्ड और कोवैक्सीन दुनिया में सबसे सस्ते दाम पर मिलने वाली वैक्सीन है।
फाइजर की वैक्सीन जिसे अमेरिका, इजराइल और यूरोप में इस्तेमाल किया जा रहा है उसका दाम 14.70 डॉलर (यूरोप के लिए) से लेकर 19.50 डॉलर के बीच है। मोडर्ना की वैक्सीन का दाम 25 डॉलर से 37 डॉलर के बीच है। जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन का दाम EU के लिए 8.50 डॉलर निर्धारित हुआ है।
Leftist journalists were running a cleverly orchestrated anti-Indian vaccine campaign possibly at the behest of global Big Pharma.
In the first phase of the campaign, they excessively criticised the vaccines. Narrative about general efficacy, and side effects were pushed.
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) September 6, 2021
कोविशिल्ड और कोवैक्सीन दोनों सरकारी अस्पतालों में निशुल्क और निजी अस्पतालों में ₹780 प्रति डोज मिल रही है। ऐसे समय में जब विश्व वैक्सीन की किल्लत से जूझ रहा हो, एक निजी संस्थान सरकार को मात्र 350 रुपये में वैक्सीन उपलब्ध करा रहा है। जबकि सिरम इंस्टीट्यूट के पास यह अवसर था कि अपनी वैक्सीन को ऊंचे दाम पर बेचे। ऐसे में Economic Times के हवाले से आया अदार पूनावाला का यह बयान कि ‘उन्होंने कई बिलियन डॉलर के लाभ का बलिदान किया है’, बिल्कुल सही है।
जो लोग सिरम इंस्टीट्यूट के मालिक अदार पूनावाला के बयान पर उनका मजाक उड़ा रहे हैं, शायद यह भूल गए हैं कि इसी देश में ऑक्सीजन किल्लत के समय ऑक्सीजन सिलेंडर की ब्लैक मार्केटिंग हो रही थी। जिस ऑक्सीजन सिलेंडर की रिफिलिंग का दाम अधिकतम ₹500 होना चाहिए था उसकी रिफिलिंग ₹5000 तक हो रही थी। दो चार हजार रुपये की दवाई ₹50000 में बेची जा रही थी। नकली दवाओं का व्यापार तेज हो गया था।
जो लोग अदार पूनावाला का मजाक उड़ाते हैं वह समाजवाद की विकृत मानसिकता के कारण बीमार हो चुके हैं। समाजवादी इकोसिस्टम बॉलीवुड की उन कहानियों की तरह है जहां जमींदार का मतलब अत्याचारी ठाकुर और पुजारी का मतलब लोभी ब्राह्मण होता है।
वास्तव में लिबरल जमात के कथित पत्रकारों और विचारकों ने अपनी पढ़ाई की उम्र में ठीक से पढ़ाई नहीं की। इसके बजाए चाय की दुकानों पर बैठकर बॉलीवुड की कहानियों पर दार्शनिक चिंतन किया है। इसीलिए इन्हें लगता है कि हर उद्योगपति भ्रष्टाचारी ही होता है और हर गरीब इमानदारी का पुतला।
इनकी विकृत मानसिकता इन्हें गरीबी का महिमामंडन करना सिखाती है जिस कारण यह एक मूलभूत बात नहीं समझ सके हैं कि विश्व में किसी भी देश का विकास उद्योगपतियों ने ही किया है। अदार पूनावाला ने अगर पुणे में 464 करोड रुपए का कोई फ्लोर खरीदा है तो इससे क्या फर्क पड़ता है। उनके पास जो पैसे हैं वह उन्होंने इतने बड़े इंस्टिट्यूट का संचालन करके कमाया है, ऑक्सीजन की ब्लैक मार्केटिंग करके नहीं।
एक कहावत है कि हर समाजवादी का एक पूंजीपति बाप होता है। अर्थात समाजवाद की विचारधारा का महिमामंडन करने वाला हर व्यक्ति किसी पूंजीवादी के हितों की सुरक्षा के लिए ऐसा करता है। भारतीय लिबरल जमात के विषय में भी यह बात सही साबित होती दिख रही है। शायद यही कारण है कि इन लोगों ने पहले भारतीय वैक्सीन के विरुद्ध दुष्प्रचार अभियान शुरू किया और विदेशी वैक्सीन का समर्थन किया। फिर भारतीय वैक्सीन के दाम को लेकर विवाद पैदा किया, फिर उपलब्धता को लेकर भ्रम फैलाया और अब जबकि वैक्सीनेशन तेजी से आगे बढ़ रहा है और इन्हें कुछ भी सूझ नहीं रहा तो अदार पूनावाला को निशाना बनाकर #NO_Comment अभियान चला रहे हैं।
#NoComment https://t.co/WEbH6gpp1g pic.twitter.com/Mfw0TKAtdd
— Sucheta Dalal (@suchetadalal) September 5, 2021
ऐसे भी लिबरल जमात नो कमेंट अभियान ही चला सकेगी क्योंकि उनके पास बोलने के लिए तर्कों और सोचने के लिए बौद्धिक क्षमता का अभाव है।