दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर यह सूचना दी है कि देश की राजधानी जल्द ही बिजली संकट की समस्या का सामना करने वाली है। अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री से इस मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है। उन्होंने ट्विटर पर जानकारी देते हुए लिखा कि “दिल्ली को बिजली संकट का सामना करना पड़ सकता है। मैं व्यक्तिगत रूप से स्थिति पर कड़ी नजर रख रहा हूं। हम इससे बचने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। इसी बीच मैंने माननीय पीएम को पत्र लिखकर उनसे व्यक्तिगत हस्तक्षेप की मांग की।”
केजरीवाल के बाद दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन ने भी यह बात दोहराई की दिल्ली अगले दो दिनों में पावर शॉर्टेज की समस्या का सामना करने वाली है। सत्येंद्र जैन ने कथित पावर शॉर्टेज की समस्या की तुलना कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हुई ऑक्सीजन की कमी से की है। हालांकि, केंद्रीय मंत्री आरके सिंह ने ऐसी किसी भी संभावना से इनकार किया है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उन्होंने टाटा पावर पर कार्रवाई की चेतावनी दी है, यदि वे ग्राहकों को बिजली की कमी के आधारहीन संदेश भेजते हैं। साथ ही उन्होंने गैर जिम्मेदाराना रवैया के लिए सरकारी कंपनी गेल पर भी निशाना साधा।
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कोयला संकट के कारण
यह सत्य है कि इस समय वैश्विक स्तर पर कोयले की कमी देखने को मिल रही है। इसके दो प्रमुख कारण हैं। पहला चीन की नीतियां और दूसरा कोयला उत्पादक देशों द्वारा मांग की पूर्ति नहीं कर पाना। चीन ने ऑस्ट्रेलिया से आयात होने वाले कोयले पर प्रतिबंध लगाकर रूस और अफ्रीकी देशों से कोयला आयात करना शुरू कर दिया। जिसके कारण यूरोप तथा अन्य ऐसे देश, जो कोयले के आयात के लिए रूस और अफ्रीकी देशों पर ही निर्भर थे, वहां कोयले की आपूर्ति कम हो गई है। साथ ही चीन को भी महंगे दाम पर कोयला खरीदना पड़ रहा है।
दूसरी ओर वैश्विक अर्थव्यवस्था में जिस तेजी के साथ सुधार हो रहा है इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। इस कारण कोयला उत्पादक देशों ने कोयले के उत्पादन में कमी कर दी थी और अब जबकि कोयले की मांग अचानक बढ़ गई है, तो वे इसकी पूर्ति करने में फिलहाल सक्षम नहीं दिख रहे हैं।
भारत में पास पर्याप्त कोयला
वहीं, भारत की बात करें तो भारतीय बाजार में भी कोयला उत्पादन तेजी से नहीं बढ़ सका है क्योंकि इस वर्ष मानसून के दौरान भारी बारिश हुई है जिसके कारण कई कोयला खदानों में पानी भर गया था। इस कारण सरकार समय पर कोयले को स्टॉक नहीं कर पाई। हालांकि, केंद्रीय कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी ने सभी को आश्वस्त करते हुए कहा है कि बिजली आपूर्ति बाधित होने का बिल्कुल भी खतरा नहीं है। कोल इंडिया लिमिटेड के पास 24 दिनों की कोयले की मांग के बराबर 43 मिलियन टन का पर्याप्त कोयला स्टॉक है।
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केंद्र सरकार के कदम
केंद्रीय मंत्री के बयान से स्पष्ट हो गया है कि भारत में ब्लैकआउट का कोई खतरा नहीं है। दूसरी ओर केंद्र सरकार कोयले की आपूर्ति के लिए कई कदम उठा रही है। चीन के बंदरगाहों पर कोयले से भरे ऑस्ट्रेलियाई जहाजों से भारत कोयला खरीद रहा है। वहीं, कैपटिवमाइन्स को आदेश दिया गया है कि वह अपना 50% कोयला खुले बाजार में बेच सकती हैं। कैपटिवमाइन्स ऐसी खदानें होती हैं जो केवल अपने उपयोग के लिए कोयले को खदान से निकालती हैं। अब तक कैपटिवमाइंस को खुले बाजार में कोयला बेचने की अनुमति नहीं थी किंतु केंद्र सरकार के आदेश के बाद कोयले की कमी की समस्या सुलझ सकती है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस समय भारत के 135 पावर स्टेशन में 107 पावर स्टेशन ऐसे हैं जहां 1 सप्ताह से कम का कोयला स्टॉक बचा है। जबकि सरकारी गाइडलाइंस के अनुसार कम से कम 2 सप्ताह से अधिक स्टॉक रखना हर पावर स्टेशन के लिए अनिवार्य है। हालांकि, स्टॉक कम है किंतु सप्लाई लगातार बनी हुई है। केंद्र सरकार ने औद्योगिक इकाइयों के साथ बातचीत करके फिलहाल उद्योगों के लिए इस्तेमाल होने वाले कोयले को भी पावर स्टेशन को सप्लाई करने का निर्णय किया है।
दिल्ली, पंजाब और राजस्थान में मुफ्तखोरी
बताते चले कि दिल्ली सरकार द्वारा लोगों के बीच भय का संचार करने के लिए इस प्रकार की खबरें चलाया जाना कोई नई बात नहीं है। इसके पूर्व भी ऑक्सीजन की समस्या के दौरान केजरीवाल सरकार यही कर रही थी। हालांकि, बाद में जब केंद्र सरकार ने ऑक्सीजन ऑडिट शुरू किया तो पता चला कि ऑक्सीजन की कमी, आपूर्ति की समस्या के कारण ना होकर कालाबाजारी के कारण हो रही थी।
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों ने फ्रीइलेक्ट्रिसिटी की जो लत आम लोगों को लगाई है उसके कारण बिजली की बर्बादी बहुत अधिक बढ़ गई है। दिल्ली तो पहले से भी बिजली चोरी की समस्या से जूझ रही थी उस पर केजरीवाल सरकार द्वारा फ्री बिजली की सुविधा देकर इस समस्या को और बड़ा कर दिया गया है। अब जबकि कोयले की किल्लत की संभावना दिखी रही है, तो केजरीवाल सरकार के हाथ-पांव फूलने लगे हैं।
दिल्ली के साथ-साथ राजस्थान, पंजाब और कुछ गैर-बीजेपी राज्यों में भी यहीं समस्या है। कई राज्य इस मामले पर लचीला रवैया अपनाते हैं। कई राज्यों में बिजली की खुलेआम चोरी होती है, बिजली फ्री करने या बिजली बिल आधे करने के वादे होते हैं। कई राज्यों में बकाया बिजली बिलों को माफ कर दिया जाता है। जिससे जनता के बीच मुफ्तखोरी बढ़ती है लेकिन राज्य सरकारों का क्या, उन्हें तो अपना वोटबैंक बनाना है, लोगों को फ्री की लत लगानी है और फिर जब ऐसी समस्याएं सामने आए तो हांथ-पांव खड़े कर देने हैं या सारा ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ देना है।
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