शस्त्र और शास्त्र, ये दोनों ही राष्ट्र निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन जिसे अपने शास्त्रों का आभास नहीं, वो समय आने पर शस्त्रों का भी अनुकूल उपयोग नहीं कर पायेगा। इसीलिए शायद आचार्य चाणक्य ने कहा था, “जो राष्ट्र अपने मूल शास्त्रों को त्याग देता है, उस राष्ट्र का विनाश निश्चित है।” ऐसा क्यों कहा था आचार्य चाणक्य ने? आज यदि अपने आधुनिक इतिहास के कुछ लोगों पर एक दृष्टि डालें, तो उनके कार्यों को देखते हुए आपको भी लगेगा, गलत नहीं थे चाणक्य!
हॉलीवुड फिल्म ‘द गॉडफ़ादर’ का एक बड़ा ही प्रसिद्द और कचोटता हुआ संवाद है, ‘आपको पता है विश्वासघात की सबसे दर्दनाक बात? ये शत्रु से कभी नहीं आता’ यह बात हमारे देश के शिक्षा मंत्रियों पर शत-प्रतिशत लागू होती है। यह सत्य है कि लार्ड मैकाउले ने भारत के शिक्षण तंत्र को ध्वस्त करने का प्रयास किया था, परन्तु देश के स्वतंत्र होने के पश्चात हमारे पास इस भूल को सुधारने का एक सुनहरा अवसर भी था। परन्तु इस सुनहरे अवसर को मिटटी में मिलाने में कई लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। आइये देखते हैं उन लोगों को, जिन्होंने हमें अपने ही इतिहास से घृणा करना सिखाया और हमारे देश की शैक्षणिक व्यवस्था में गलत और भ्रामक तथ्यों से ठूंसने में कोई कसर नहीं छोड़ी –
5)सैयद नूर उल हसन –
दूर से देखा, तो अमन की मशाल थे, पास जाकर देखा तो जी का जंजाल थे! जितनी बुरी ये शायरी है, उससे भी बुरी इनकी शैक्षणिक व्यवस्था थी। लेकिन चाटुकारिता के लिए मियां को पुरस्कार देना तो बनता ही है। भारतीय शिक्षा व्यवस्था में इनका केवल एक योगदान रहा है, और वो है 10+2+3 शैक्षणिक व्यवस्था का सुझाव देना।
इसके अलावा 1972 से 1977 के बीच इन्होने इस बात को सुनिश्चित किया कि भारत में कभी भी वैकल्पिक शैक्षणिक व्यवस्था पनपने न पाए, और जब आपातकाल के दौरान संविधान में ज़बरदस्ती ‘समाजवाद’ (Socialism) और ‘पंथनिरपेक्षता’ (Secularism) जैसे शब्द जोड़े गए, तो इन्हें शैक्षणिक व्यवस्था में भी आत्मसात करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। आज यदि वामपंथी खुलकर देश को नीचा दिखाने में समर्थ हैं, तो इसमें इनका भी महत्वपूर्ण योगदान है।
4) अर्जुन सिंह –
मिर्जापुर में एक बड़ा ही कचोटता हुआ संवाद बोला गया है, ‘बहुत तकलीफ होती है, जब आप योग्य हों, और आपकी योग्यता कोई न पहचाने!’ कहीं न कहीं इसका नाता अर्जुन सिंह से अवश्य रहा होगा। भोपाल गैस काण्ड से लेकर आरक्षण और हिन्दू आतंकवाद तक, हर जगह अर्जुन सिंह ने अपने कार्यों से देश को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन इनकी इस योग्यता को बहुत कम लोगों ने ही पहचाना।
जब ये मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तो 1984 में सिख-विरोधी दंगे भी हुए और भोपाल गैस त्रासदी भी। किसी भी घटना में न तो इन्होने पीड़ितों की कोई सहायता की, और न ही इन्होने अपराधियों पर कोई कार्रवाई की, उलटे वारेन एंडर्सन को अमेरिका भागने देने में इन्होने राजीव गाँधी की भरपूर सहायता की। शायद इसीलिए इन्हें दो बार देश का शिक्षा मंत्री भी बनाया गया – एक बार 1991 में और दूसरी बार 2004 में।
हिन्दू आतंकवाद के झूठे सिद्धांत का प्रचार-प्रसार भले ही पलानीअप्पन चिदंबरम ने किया, परन्तु नींव इसी व्यक्ति ने रखी थी। 2006 में इन्होने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर हुए आतंकी हमले का आरोप उन्ही पर मढ़ने का प्रयास किया। इतना ही नहीं, विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा चलाये जा रहे एकल विद्यालय, जिनका उद्देश्य था जनजातियों का उत्थान, उन्हें भी सांप्रदायिक ठहराने का प्रयास किया। अर्जुन सिंह केवल नाम के अर्जुन थे, वरना शैक्षणिक व्यवस्था के लिए वे दुर्योधन समान थे।
3) कपिल सिब्बल–
यदि अब आपने मन बना लिया है कि अर्जुन सिंह ही इस देश के सबसे निकृष्ट शिक्षा मंत्री थे, तो तनिक ठहरिये, ये तो अभी प्रारंभ है। एक समय इस पद पर कपिल सिब्बल जैसे व्यक्ति भी विद्यमान रहे हैं, जिन्होंने 2G स्पेक्ट्रम घोटाले पर ‘जीरो लॉस थ्योरी’ का सिद्धांत बड़े प्रेम से समझाया था।
निस्संदेह कपिल सिब्बल को भी चाटुकारिता का पुरस्कार मिला था, परन्तु उन्होंने शिक्षा मंत्री के रूप में जो देश की शिक्षा व्यवस्था का कबाड़ा किया, उसे साफ़ करने में दशकों लग जायेंगे। चाहे CBSE का CCE प्रणाली हो, या फिर IIT में प्रवेश हेतु अजीबोगरीब नियमावली हो, आप बोलते जाइये और कपिल सिब्बल ने वो सब किया है।
2)प्रकाश जावड़ेकर–
जिस व्यक्ति ने गर्व से कहा हो कि हमने इतिहास की पुस्तकों में कोई बदलाव नहीं किया है, उसकी निष्क्रियता का और क्या प्रमाण दें? प्रकाश जावड़ेकर यूं तो इस सूची में प्रथम स्थान पर होते, पर निष्क्रियता महापाप की श्रेणी में तनिक कम होती है।
3 वर्ष तक शिक्षा मंत्री के पद पर रहने के बावजूद भारत की जीर्ण-शीर्ण पड़ चुकी शिक्षण व्यवस्था को सुधारने की दिशा में कुछ नहीं करना गर्व का नहीं, शर्म का विषय है। लेकिन ये बात प्रकाश जावड़ेकर को कभी समझ में नहीं आई। शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने वामपंथियों को अपना विष फैलाने की खुली छूट दी, जिसके कारण आज उनमें इतना सामर्थ्य है कि वे NCERT पर अमेरिकी शैली में वोक कल्चर की शिक्षा नीति लागू करने का दबाव डाल रहे हैं।
रमेश पोखरियाल निशंक और स्मृति ईरानी सीमित थे, पर उन्होंने जुबानी तौर पर ही सही, परन्तु शैक्षणिक व्यवस्था में व्यापक बदलाव के लिए आवाज़ भी उठाई, और पोखरियाल ने शिक्षा नीति 2021 में व्यापक बदलाव की नींव भी रखी थी लेकिन जावड़ेकर ने क्या किया था, उसे जानने की कोशिश अब भी जारी है।
1) मौलाना अबुल कलाम आज़ाद–
आपको याद तो होगा, जब 5 वर्ष पूर्व कांग्रेस ने पूरे इकोसिस्टम सहित PM मोदी के शैक्षणिक क्वालिफिकेशन पर प्रश्नचिन्ह लगाया था और उनकी डिग्री को फर्जी बताने का पूरा प्रयास किया था। लेकिन क्या आपको पता है कि हमारे देश का प्रथम शिक्षा मंत्री एक मदरसाछाप है? और उसकी शैक्षणिक योग्यता भी कुछ नहीं थी! यदि आपको विश्वास नहीं होता, तो कभी इतिहास के पन्ने पलट के देखिये, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे देशभक्त के पीछे एक राष्ट्रद्रोही दिखाई पड़ेगा, जिसने जिन्ना से भी गहरे घाव भारत को दिए हैं।
वो देश क्या कर सकते हैं, जिसका प्रथम शिक्षा मंत्री ही मदरसे की देन हो? मौलाना आज़ाद ने कभी भी एक अधिकारिक विद्यालय में पढ़ाई नहीं की, बल्कि सारी शिक्षा उन्होंने या तो घर पर या फिर मदरसे में ग्रहण की। ऐसे व्यक्ति के हाथ में देश की शैक्षणिक व्यवस्था सौंपकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने स्पष्ट कर दिया कि वे वास्तव में देश के लिए कितने चिंतित थे। यदि आज देश में गुरुकुल के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग चुका है, यदि आज देश में अपनी संस्कृति पर गर्व करना पाप और उसे गाली देना फैशन है, तो ये सब मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की देन है। शायद मोहम्मद अली जिन्ना या अल्लामा मुहम्मद इकबाल से भी ज्यादा कट्टरपंथी और विषैली सोच मौलाना अबुल कलाम आज़ाद रखते थे। ऐसे शिक्षा मंत्रियों के कारण ही हम अपने शास्त्रों से विमुख हुए हैं, और इनका वास्तविक स्वरुप उजागर करना हमारा प्रथम कर्तव्य है।