आज के समय में समाज को रंगों में बांट दिया गया है। हिंदुओं को भगवे रंग में सीमित कर दिया गया है, तो वहीं हरे रंग को एक विशेष समुदाय का प्रतीक बना दिया गया है। हालांकि, सृष्टि के सृजन के बाद से ही सनातन धर्म में प्रकृति का अहम स्थान है और हरे रंग का भी। बावजूद इसके इन रंगों पर समुदाय विशेष का एकाधिकार हो गया है। वहीं, एक समुदाय विशेष में प्रत्येक धार्मिक प्रतीक हरे रंग का ही है। अगर यह कहा जाए कि आज के दौर में, इस्लाम और हरा रंग को एक दूसरे का पर्याय बना दिया गया है, तो यह गलत नहीं होगा। यह केवल भारत के लिए नहीं है, बल्कि दुनिया भर में यही देखा जाता है।
समुदाय विशेष को हरा रंग पर इतना गुरुर क्यों?
दरअसल, अधिकांश इस्लामिक राष्ट्रों के राष्ट्रीय झंडों में हरा रंग ही है। इनके पासपोर्ट भी हरे रंग के होते हैं। मस्जिदों और दरगाहों पर चढ़ाए जाने वाले चादर में भी हरे रंग की प्रमुखता होती है। ऐसे में, यह खूबसूरत रंग एक हद तक हिन्दू समुदाय से वर्जित-सा हो चुका है। हिंदू अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में हरे रंग का उपयोग करने से कतराते हैं, क्योंकि उसे लोग एक समुदाय विशेष के अर्थ से जोड़ देते हैं। ये कहीं से भी सही नहीं है। हरे रंग पर किसी एक समुदाय या धर्म का कॉपीराइट नहीं होना चाहिए। यह रंग सार्वभौमिक है। हिंदुओं के लिए ऐतिहासिक रूप से हरे रंग का महत्वपूर्ण मूल्य है। सनातन संस्कृति में इस रंग की महत्ता तब से है, जब इस्लामी प्रथाओं, मस्जिदों या घरों में इसका उपयोग लोकप्रिय भी नहीं हुआ था।
आज, हरे रंग को ‘हिंदू‘ रंग के रूप में नहीं देखा जाता है, हालांकि अब हिंदुओं को हरे रंग को पुनः प्राप्त करने की तत्काल आवश्यकता है। कई हिंदू प्रार्थना अनुष्ठानों में हरे रंग की वस्तुओं जैसे पत्तियों का उपयोग किया जाता है। चूंकि देवता हरे रंग से जुड़े होते हैं। यह रंग खुशी, शांति और सद्भाव का प्रतीक है। वहीं, हरा रंग प्रकृति में पाए जाने वाले उर्वरता, जीवन और पुनर्जन्म का भी प्रतिनिधित्व करता है।
हिन्दुओं को हरे रंग का उपयोग बढ़ाना चाहिए
भारत हमेशा से कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था रहा है। हरा रंग भारत की जीवन रेखा यानी खेती को दर्शाता है। हरा रंग हिंदुओं और उनकी संस्कृति के लिए आवश्यक है। प्रकृति की पूजा करना सनातन धर्म का एक अभिन्न अंग है। नवरात्रि के नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में एक दिन हरे रंग के कपड़े पहनने का होता है। यही नहीं, पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार हिन्दु केले के पत्तों पर भोजन करते हैं, जो हरे रंग के होते हैं।
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वास्तव में, यह रंग हिंदुओं से अधिक संबंधित है। अब समय आ चुका है कि सभी हिन्दू इस समृद्धि के रंग को अपनाए और एक समुदाय के वर्चस्व को समाप्त करें। ज्योतिषशास्त्र में बुधवार को हरे रंग का दिन माना जाता है। घर में हरे पौधे रखना, हरे कपड़े पहनना और बुधवार के दिन बीन्स और गोटा मूंग दाल खाना कुछ मानक हिंदू प्रथाएं हैं। ऐसे तथ्यों के आलोक में, हिंदुओं के लिए इस रंग से खुद को दूर करना समझ से परे है। हरे रंग पर एक समुदाय का एकाधिकार, आंशिक रूप से, हिंदुओं द्वारा इसे छोड़ने का ही परिणाम है। अब समय आ गया है कि हिंदुओं को हरे रंग को अपनाना चाहिए और इसके उपयोग को बढ़ाना चाहिए।