गोवा में राजनीति इस समय अभूतपूर्व प्रवाह और पहेली की स्थिति में है। हर दिन, भारत के पश्चिमी तट पर इस छोटे से राज्य के नेता और विधायक राजनीतिक निष्ठा बदल रहे हैं। आने वाले कुछ ही महीनों में राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। राजनीतिक पार्टी जोर-शोर से अपनी तैयारियों में लग गई हैं। आगामी चुनाव को लेकर राज्य की राजनीतिक गलियारों में हलचले तेज हो गई है। आरोप-प्रत्यारोप के दौर शुरु हो गए हैं और साथ ही साथ प्रदेश में दल बदल का खेल भी शुरु हो गया है, जिसने गोवा के लोगों को एक गहरी दुविधा में डाल दिया गया है कि आखिर 2022 के सबसे चर्चित विधानसभा चुनाव में वोट किसे दिया जाए।
पिछले तीन महीनों में, 40 सदस्यीय विधानसभा के करीब 15 विधायकों ने अपनी राजनीतिक संबद्धता बदल ली है। इसके अलावा, स्थानीय राजनीतिक नेता और पूर्व विधायक लगातार दल बदल कर रहे हैं, जिससे राजनीतिक दल भी यह अनुमान नहीं लगा पा रहें हैं कि आखिर गोवा चुनाव 2022 में कौन करेगा कमाल, किसके हिस्से में जाएगी सत्ता की चाबी और कौन बनेगा राज्य का अगला मुख्यमंत्री। मौजूदा समय में राज्य में प्रमोद सावंत के नेतृत्व में भाजपा की सरकार है, जो राज्य के विकास के लिए तत्पर होकर लगातार काम कर रही है।
गोवा में विधानसभा चुनावों के ऐलान से पहले कई नेताओं ने अपनी पार्टी बदल ली। पार्टी बदलने वालों में सबसे ज्यादा विधायक कांग्रेस (Congress) से रहे, जिनको भाजपा में अपना भविष्य उज्जवल नजर आया। इसके अलावा, तृणमूल कांग्रेस, गोवा फॉरवर्ड पार्टी और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी भी ऐसी पार्टियां रहीं, जहां से कई विधायकों ने भाजपा का रुख कर लिया। मौजूदा समय में राज्य में कांग्रेस की लुटिया गोल होती दिख रही है, जबकि आम आदमी पार्टी और टीएमसी अपनी स्थिति सुधारने के लिए चुनाव लड़ने वाले हैं। इस आर्टिकल में हम आगामी चुनाव को लेकर गोवा में भाजपा, आप, टीएमसी और कांग्रेस की स्थिति पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
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गोवा में भाजपा का वर्चस्व
वर्ष 2017 में भाजपा ने गोवा फॉरवर्ड पार्टी (GFP) और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (MGP) जैसे क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन कर गोवा में सरकार बनाई। पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता मनोहर पर्रिकर इस गठबंधन के मुख्य नायक रहें और इस नींव में दरार के बावजूद उन्होंने गठबंधन को एकजुट रखा था। हालांकि, 2019 में पर्रिकर की मृत्यु के बाद भाजपा ने पॉलिटिकल इंजीनियरिंग से खुद को सत्ता में बनाए रखा। मौजूदा समय में 12-सदस्यीय मंत्रिमंडल में सात दलबदलुओं की उपस्थिति से यह स्पष्ट होता है कि इस बार भी सत्ता की चाबी भाजपा के हाथों में ही है। ध्यान देने वाली बात है कि 27 साल में पहली बार ऐसा होगा कि गोवा चुनाव के लिए भाजपा के पास पर्रिकर नहीं होंगे। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मत है कि भगवा पार्टी अव्यवस्थित है, परंतु आरएसएस के नियंत्रण और मोदी की नीतियों के कारण पार्टी का चुनावी अभियान पुनः पटरी पर लौट रहा है। कई ओपिनियन पोल के अनुसार भाजपा इस बार औसतन 25 सीटों के साथ सरकार बनाने में सफल होगी।
गोवा अक्सर भाजपा खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ है। वर्ष 2002 के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की ऐतिहासिक बैठक गोवा में ही हुई थी, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी नरेंद्र मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री के पद से हटाना चाहते थे पर, लाल कृष्ण आडवाणी और पार्टी के अन्य नेताओं ने उन्हें बचा लिया!
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री मोदी बनने की नींव भी यहीं से पड़ी जब गोवा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने नरेंद्र मोदी को भाजपा लोकसभा अभियान का चेहरा बनाने की खुली मांग की।
AAP का बढ़ सकता है वोट शेयर
गोवा विधानसभा चुनाव 2017 में आम आदमी पार्टी (AAP) ने लगभग 6 फीसदी वोट शेयर हासिल किया था। इस बार पार्टी अधिक संसाधनों और कार्य योजना के साथ मैदान में उतरी है। हालांकि, पिछले पांच वर्षों में, पार्टी एक भी ऐसे नेता का पोषण नहीं कर पाई, जो राज्य में पार्टी का नेतृत्व कर सके। पार्टी के पास अभी भी ऐसा कोई नेता नहीं है, जो पूरे गोवा में प्रसिद्ध हो। पार्टी के राज्य संयोजक राहुल म्हाम्ब्रे अपने गृहनगर मापुसा से इतर कहीं लोकप्रिय नहीं हैं और इसी तरह, अमित पालेकर को ज्यादातर लोग एक वकील के रूप में जानते है न कि एक राजनेता के रूप में।
आप का गोवा अभियान तीन प्राथमिक कारकों पर टिका है, जिसमें राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की छवि, अन्य दलों के लोकप्रिय नेताओं को शामिल करना और विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं का झूठा और फ्री का वादा शामिल है। इसके लिए पार्टी ने दयानंद नार्वेकर, महादेव नाइक, अलीना सलदान्हा, प्रतिमा कौटिन्हो और पूर्व भाजपा नेता गणपत गांवकर जैसे नेताओं को पहले ही शामिल कर लिया है।
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टीएमसी के पास नहीं है चेहरा
टीएमसी की गतिविधि पूरी तरह से राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर के नेतृत्व वाली कंसल्टेंसी फर्म, इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) द्वारा संचालित है। नेताओं के साथ बातचीत करने, टीएमसी में शामिल करने, अभियान की रूपरेखा तैयार करने और यहां तक कि दैनिक प्रचार में संभावित उम्मीदवारों की सहायता करने तथा अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन करने तक, सब कुछ I-PAC द्वारा निर्धारित किया जाता है। गोवा की सबसे पुरानी पार्टी, महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (MGP) के साथ हाथ मिलाने का TMC का हालिया निर्णय दोधारी तलवार साबित हो सकता है, क्योंकि MGP अध्यक्ष दीपक धवलीकर और विधायक सुदीन धवलीकर ने सनातन संस्था जैसे दक्षिणपंथी संगठनों का सार्वजनिक रूप से समर्थन किया है।
इसके अलावा, पिछले दस दिनों में दो MGP उम्मीदवार, प्रवीण अर्लेकर और प्रेमेंद्र शेत ने पार्टी के गढ़ पेरनेम और मयेम निर्वाचन क्षेत्रों से “टीएमसी-एमजीपी गठबंधन” का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया है। जबकि शेत पहले ही भाजपा में शामिल हो चुके हैं, दूसरी ओर अर्लेकर भगवा पार्टी के साथ उन्नत बातचीत कर रहे हैं। राज्य की मौजूदा राजनीतिक स्थिति को देखते हुए यह तो तय हो गया है कि गोवा में ममता की दाल नहीं गलने वाली। गोवा में टीएमसी के पास न तो चेहरा है और न ही कैडर। इसके साथ-साथ उनमें गोवा के विचारधारा की कमी भी है। महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के साथ गठबंधन करने से मुस्लिम और क्रिश्चियन वोट बैंक भी उनसे छिटक जायेंगे। रही बात भगवा वोटों की, तो TMC से गठबंधन के कारण वो सारे वोट भाजपा के खाते में जाना निश्चित है। अतः इस चुनाव में ममता सिर्फ मुसलमानों का वोट काटकर भाजपा को फायदा पहुंचाने वाली हैं।
कांग्रेस की डूबती नैया
सालसेट, मोरमुगाओ, तिस्वाड़ी, क्यूपेम और बर्देज़ तालुकाओं में, लगभग 17 सीटें हैं, जहां अल्पसंख्यक मतदाता 40 फीसदी से अधिक हैं और जहां वे चुनावी परिणामों को महत्वपूर्ण रूप से निर्धारित करते हैं। इतना ही नहीं, राज्य में ऐसी सात और सीटें हैं, जहां अल्पसंख्यकों के पास 25 प्रतिशत से अधिक वोट हैं। कांग्रेस को जीत के लिए प्रेरित करने हेतु यह पर्याप्त है या नहीं, यह देखा जाना बाकी है? हम ऐसा इसलिए कह रहें है, क्योंकि ममता बनर्जी और AAP की एंट्री ने गोवा में कांग्रेस को छिन्न-भिन्न कर दिया है। ममता ने जहां उनके संगठन को ध्वस्त करते हुए लुईजिन्हो फलेरियो (गोवा के पूर्व कांग्रेस सीएम) के पूरे खेमे को TMC में मिला लिया, तो वहीं AAP उनके कैडर वोटर और विचारधारा को खा रही है। लाचार और अशक्त आलाकमान सिर्फ कांग्रेस की डूबती नैया को देख रहा है। ऐसे में यह अनुमान है कि आगामी चुनाव में कांग्रेस मात्र 4-5 सीटों पर सिमट जाएगी।
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गोवा में भाजपा की जीत पक्की
बताते चलें कि मनोहर पर्रिकर के स्वर्गवास से पार्टी में एक लोकप्रिय राजनेता का निर्वात सा उत्पन्न हो गया है। हालांकि, पार्टी इसको भरने के लिए पीएम मोदी और प्रमोद सामंत का भरपूर प्रयोग कर रही है, पर गोवा की राजनीतिक विविधता को देखते हुए मनोहर पर्रिकर जैसा कोई नहीं लगता। ओपिनियन पोल में भाजपा जीतते हुए दिखाई दे रही है, लेकिन उसे पश्चिम बंगाल की गलतियों को न दोहराते हुए जमीन से जुड़े अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं पर भरोसा करना होगा। भाजपा जीत तो रही है, लेकिन उसे यह ध्यान रखें होगा को चुनाव जीत सत्ता पाने से भी जरूरी पर्रिकर के पोजिशन को भरना है। संभावनाओं पर बात करें तो आम आदमी पार्टी राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी बनती दिख रही है। वहीं, तृणमूल कांग्रेस भी इस बार एक अच्छा विकल्प साबित हो सकती है, जबकि कांग्रेस का सिमटना तय है। गोवा में भाजपा पिछले 10 सालों से सत्ता में है। हालांकि, इस बार किसकी तकदीर में सिहांसन होगा, ये तो जनता ही तय करेगी।